क्रांतिपर्व होली - एक समीक्षा       

संल्गन - क्रांतिपर्व होली - पीडीएफ

15 मार्च 2011

आधुनिक हिन्दू जो अपने-आपको हिन्दू तो कहना चाहता है पर विवश है अपनी वर्ण-संकर सोच की कैद से। उसे मिली है यह वर्ण-संकर सोच तथा समझ छः- पीढ़ियों की ईसाई शिक्षा-पद्धति से।

अपनी सीमित तर्क शक्ति के पाश में बँधा वह नॄसिंहावतार की घटना की एक कल्पित आधुनिक व्याख्या प्रस्तुत करता है।

वह सोचता है कि उसने अपनी तर्क-शक्ति का सदुपयोग किया है।

उसे क्या मालूम कि उसकी तर्क-शक्ति की पहुँच केवल वहीं तक सीमित है जहाँ तक उसका ज्ञान।

उसे न तो अनुभूति है ईश्वरीय आस्था की, न है उसमें ईश्वरीय सत्ता के प्रति भक्ति।

ऐसे आधुनिक हिन्दू के हाथों हिन्दू-राष्ट्र को पुनर्जीवित करने का दायित्व आ गया तो वह अपने ही जैसे वर्ण-संकर सोच का एक हिन्दू राष्ट्र बना देगा, या फिर इसे एक नास्तिक हिन्दू-राष्ट्र का स्वरूप दे देगा।

हिन्दू को ऐसे हिन्दूत्व-वादी हिताकांक्षियों से भी बचना है, केवल हिन्दू-विरोधियों से नहीं

हिन्दू-विरोधी तो फिर भी पहचान में आ जाता है या फिर ऐसा ही कोई हिन्दुत्व-वादी आपकी उससे पहचान करा देता है, पर इन जैसों की पहचान आपसे कौन करायेगा?

अतः आपको स्वयं सचेत रहना है इनसे, अन्यथा ये दिखने में हिन्दुत्व-वादी आपके हिताकांक्षी बन, आपकी जानकारी के बिना, धीरे-धीरे आपको अपनी तरह वर्ण-संकर सोच, समझ तथा वर्ण-संकर आस्था का बना देंगे।

हिन्दू-राष्ट्र को ऐसे वर्ण-संकर हिन्दुओं की आवश्यकता नहीं - कदापि नहीं ।