ललकार  [2003]

अतीत के गर्भ से ही वर्तमान जन्म लेता है

अपने अतीत को अनदेखा करें क्योंकि
अतीत
के गर्भ से ही वर्तमान जन्म लेता है और
वही
वर्तमान हमारे विष्य को दिशा देता है।

हम उसे सहिष्णुता कहने की भूल तो नहीं कर सकते

न्याय की सीमा को पार करने के बाद,
उसे
सहते रहना कायरता ही कहलाएगी।
हम
उसे सहिष्णुता कहने की भूल तो नहीं कर सकते।

जब पिता बूढ़ा हो जाता है

धर्म हमारा पिता है, जो हमें हमारी सोच देता है,
हमारा
विवेक देता है, हमें सही पथ पर चलने की सीख देता है।
जब
पिता बूढ़ा हो जाता है, तो जवान संतानों का क्या कर्तव्य बनता है?

भूलें कि जो अपने इतिहास से नहीं सीखते

ठग रहा है वह अपने आप को, जो अनदेखा करे अपने इतिहास को।
इतिहास
वो दर्पण है जिसमें चाहें तो देख सकते हैं हम,
अपने
आने वाले कल की छवि।
भूलें कि जो अपने इतिहास से नहीं सीखते,
दोहराता
है उनका इतिहास, अपने-आपको, उनके लिए।

अब समय गया है कुछ करने का

आज आवश्यकता है उन कर्मठों की
जो
कहने में कम और करने में ज्यादा विश्वास रखते हैं।

किसके लिए लिख रहे हैं हम यह सब

हमें तो तलाश है उनकी,
जिनके
दिन या रात चाहे सड़क पर बीतते हों या खेतों में मज़दूरी कर,
पर
आज भी जलती जिनके हृद में मशाल है।
जो
हिंदू अपने को जानते हैं, जो हिंदू अपने को मानते हैं,
और
जिनकी साँस में बसती है हिंदुत्व की धारा।
जिनका
ख़ून हिंदू है, जिनका ईमान हिंदू है, जिनकी सोच हिंदू है!

कवित्व की आवश्यकता है हमारी ललकार में

वह कवि ही होता था, जो सेना में उत्साह का संचार करता था।
क्योंकि युद्ध हमारे लिए, शौर्य का प्रदर्शन हुआ करता था।
युद्ध के मैदान में हम उतरते थे, अपनी आन के लिए।
आज
वह मय फिर गया है।
अंतर
केवल इतना है कि अभी भी
आव
श्यकता नहीं कि हम वो शस्त्र उठायें, जो संहारक होती हैं।
आज
यदि आवश्यकता है तो उठ कर खड़े होने की,
ललकारने
की उन्हें, जिन्होंने दुरुपयोग किया है
आपके
मान का, आपके सम्मान का,
आपकी
भद्रता का, आपकी सहिष्णुता का।

यदि आप राजनीति से घृणा करते हैं क्योंकि राजनीति कीचड़ है,
तो किसी को तो उस कीचड़ में
,
अपनी धोती उठाकर उतरना ही होगा उसे साफ करने के लिए
,
क्योंकि अधिकांशतः व्यक्ति जो राजनीति के अखाड़े में उतरते हैं
,
वे उस कीचड़ के ही अंग बन कर रह जाते हैं।

यह मत भूलिए कि राजनीति के क्षेत्र में जो कुछ भी होता रहा है,
वह इस राष्ट्र के प्रत्येक व्यक्ति के जीवन को किसी न किसी रूप में

प्रभावित अवश्य ही करता है
,
यद्यपि हम-आप बहुधा इस बात को प्रत्यक्ष रूप से अनुभव नहीं कर पाते।

ज्ञान आपकी क्ति, अज्ञान बना अभिशाप रे

क्रांति की आवश्यकता देश में नहीं, हमारी सोच में है।
पर
हमारी सोच बदले कैसे, जब सच्चाई का हमें भान नहीं।
मत
भूलिए कि ज्ञान बनेगी क्ति आपकी,
और
अज्ञान बना है अभिशाप आपके लिए।

आपका पुरुषार्थ आज आपसे आपका कर्म माँगता है

आयेगा वह दिन जब श्री नारायण स्वयं आएँगे, अवतार लेकर,
पर
तब तक, आपको हाथ पर हाथ धरे बैठे नहीं रहना है।
आपका
पुरुषार्थ आज आपसे, आपका कर्म माँगता है।
धरती
माँ का इतना तो, ऋण बनता है आप पर!