>> गुजरात उच्चन्यायालय का निर्णय
25 मार्च 2012
मातृभाषा, मातृसंस्कृति, तथा मातृभूमि, ये तीन कल्याणकारी देवियाँ हैं। हे प्रभु, इन तीनों की प्रतिष्ठा हमारे अंतःअकरण में स्थापित हो। हम विस्मृति में न जायें ।
सौजन्य —
श्रीगीता स्वाध्याय मण्डल, सोजत नगर, 306104
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ध्यान दें —
यहाँ ऋग्वेद मातृभाषा, मातृसंस्कृति, तथा
मातृभूमि की बात करता है
राष्ट्रभाषा, राष्ट्रसंस्कृति, तथा
राष्ट्रभूमि की नहीं
16 मार्च 2012, प्रातः 10:37, भारतीय समय
एक रुचिकर संवाद, रेल में यात्रा करते दो मण्डलियों के बीच, जो उन्हें अच्छी न लगे जिन्होंने अपनी सोच पर अहंकार की पट्टी बाँध ली है -
प्रथम मण्डली - यह आप बंगालियों में एक बड़ी बुरी आदत है - जब सहयात्री आपकी भाषा न समझते हों तो आपको अपनी भाषा में बात नहीं करनी चाहिए।
द्वितीय मण्डली - क्यों, अपनी मातृभाषा में बात करने में क्या बुराई है? आप भी तो अपनी मातृभाषा में ही बात कर रहे हैं न?
प्रथम मण्डली - बात मातृभाषा की नहीं बल्कि राष्ट्रभाषा की है।
द्वितीय मण्डली - आप तो भोजपुरी में बात कर रहे थे। भोजपुरी कब से राष्ट्र भाषा बन गई? उधर देखिए, कुछ लोग मैथिली में बात कर रहे हैं, तथा उस तरफ की मण्डली में लोग राजस्थानी में बात कर रहे हैं, तो ये सभी भाषायें मातृभाषा हैं, या फिर राष्ट्र भाषा हैं?
प्रथम मण्डली - हमारे कहने का मतलब था आपको हिन्दी में बात करनी चाहिए।
द्वितीय मण्डली - पर मतलब तो हिन्दी का शब्द है नहीं, वह तो उर्दू का शब्द है।
इतने में एक तमिळ भाषी से न रहा गया, वे बोल पड़े - एक मिनट, हम सभी हमारे अपने-अपने प्रांतों में, हमारे स्कूल में, हिंदी एक भाषा के रूप में सीखते हैं। आप बताइए कि आप सब अपने स्कूल में किस एक प्रांतीय भाषा को सीखते हैं?
अब एक हिन्दी भाषी से न रहा गया, वे बोल पड़े - हम भला क्यों कोई प्रांतीय भाषा सीखें? हम तो राष्ट्रभाषा में बात करते हैं।
अब एक तेलुगू भाषी से न रहा गया, वे बोल पड़े - आपको यह भ्रम कैसे हो गया कि हिन्दी राष्ट्रभाषा है?
अब बातों की जंग छिड़ गई हिन्दी भाषी तथा तेलुगू भाषी में
हिन्दी भाषी - क्यों, हर कोई जानता है कि हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा है। भोजपुरी, मैथिली, राजस्थानी भाषियों ने हामी भरी।
तेलुगू भाषी - किस आधार पर सब जानते हैं कि हिन्दी राष्ट्रभाषा है?
हिन्दी भाषी - हम बचपन से यही सुनते, पढ़ते आये हैं कि हिन्दी ही राष्ट्रभाषा है।
तेलुगू भाषी - आपने किससे सुना, अन्य हिन्दी भाषियों से? आपने कहाँ पढ़ा, किसी हिन्दी पत्रिका में? और आपने उसे सच मान लिया? सच मान उसे दूसरों को बताते रहे? आपने कभी यह सोच कर देखा कि इसमें कितना सत्य है और कितनी मिथ्या?
हिन्दी भाषी - क्या बात करते हैं, हमारे संविधान में लिखा है।
तेलुगू भाषी - संविधान में वास्तव में क्या लिखा है इसे जानने की कभी चेष्टा की आपने? या फिर तोते की तरह वही बोलते रहे जो आपने औरों से सुना?
हिन्दी भाषी (तर्जनी दिखाते हुए) - आप मेरा अपमान कर रहे हैं। बहुत बुरा होगा, यदि आपने मेरी तुलना एक तोते से की।
तेलुगू भाषी - अपमान आप स्वयं अपनी बुद्धि का कर रहे हैं। आपको अपने जिस शरीर की शक्ति पर इतना अहंकार है, उस शरीर के ऊपर ईश्वर ने आपको एक सर दिया है। उसका प्रयोग करें। उसे एक तोते की तरह प्रयोग कर उसका दुरुपयोग न करें।
तमतमाया हुआ चेहरा लेकर हिन्दी भाषी हुंकार भरते हुए बोले - बस, एक और शब्द नहीं
रेल गाड़ी के डिब्बे में सन्नाटा छा गया। सभी यात्री उस स्थान पर एकत्र हो गए। वे नहीं चाहते थे कि हाथापाई की नौबत आये। तेलुगू भाषी चुप हो गए, उन्हें लगा वह कुछ ज्यादा ही बोल गए।
उन सभी को एकत्र देख, आश्वस्त, तमिळ भाषी ने संयत स्वर में कहा -
- संविधान में अंग्रेजी तथा हिन्दी को समान स्तर दिया गया था, तो इस आधार पर आप अंग्रेजी को भी राष्ट्रभाषा क्यों नहीं कहते? आप केवल एक ही भाषा का पक्ष क्यों लेते है? क्या इसलिए कि यह आपके अपने हित में है? क्या, यहाँ आपका स्वार्थ बोल रहा है? क्या आपका अपना स्वार्थ सर्वोपरी है, राष्ट्र से भी ऊपर?
- क्या आप नहीं जानते हैं कि संविधान में अंग्रेजी तथा हिन्दी को जो समान स्तर दिया गया था वह राष्ट्रभाषा का नहीं बल्कि राजभाषा का? क्या आप राष्ट्रभाषा तथा राजभाषा में अंतर नहीं समझते? क्या आप यह भी नहीं जानते कि संविधान ने अंग्रेजी के साथ हिन्दी को भी राजभाषा का सम्मान दिया है परन्तु एक मर्यादा में बाँध कर? क्या है वह परिधि जो उसे एक मर्यादा में बाँधती है?
- अंग्रेजी तथा हिन्दी दोनों राजकीय भाषा होंगे केंद्रीय सरकार के राजकार्यों के लिए, जबकि अन्य प्रांतो को इस बात की पूर्ण स्वतंत्रता होगी कि वे अपना राजकाज अपनी प्रांतीय भाषा में तथा कोई भी एक राजभाषा में करें।
- क्या इन सबका तात्पर्य है कि हमारे संविधान ने हिन्दी को सर्वोपरी बनाकर समस्त प्रांतों पर थोपा जैसा कि आप अभी करना चाहते थे? क्या आपका ऐसा करना उचित था?
यह कह कर तमिळ भाषी चुप हो गए तथा सारे डब्बे में पूरा सन्नाटा छा गया। ऐसा सन्नाटा कि यदि रेल गाड़ी की तथा अन्य कोई आवाज़ नहीं होती तो उन्हें शायद अपनी-अपनी दिलों की धड़कनें भी सुनाई दे जाती।
सबसे दूर बैठे एक वयस्क व्यक्ति जो सारे समय इस अनोखे बहस को सुन रहे थे, सोचने लगे -
- क्या जिसकी लाठी उसकी भैंस की कहावत यहाँ भी लागू होती है?
- क्या यही चेष्टा रही उन प्रदेशों की जो जन-बहुल थे तथा जहाँ बाहुबलियों द्वारा फैलायी हुई अराजकता की बहुतायत थी?
- उसी अराजकता से पीड़ित उन प्रदेशों की जनता, अपेक्षाकृत शांत प्रदेशों की जनता पर अपना वर्चस्व स्थापित कर, अपनी उस निष्फलता का बदला लेना चाहती रही है जो उन्हें अपने ही प्रांत के बाहुबलियों द्वारा प्रताड़ित होकर मिलता रहा है ?
- हिन्दू समाज जो सत्य तथा न्याय के प्रति[1] अपनी असाधाराण निष्ठा के लिए जाना जाता रहा है[2] वैसे हिन्दू समाज की पुनर्स्थापना ऐसे स्वार्थों, संकुचित मनोवृत्ति, तथा छाती ठोक कर असत्य को सत्य का जामा पहनाने वालों की सहायता से हो सकती है क्या?
शुक्रवार, 9 नवंबर 2012, 17:09
गुजरात उच्चन्यायालय का निर्णय - भारतीय संविधान के अनुसार कोई भी भाषा राष्ट्रभाषा नहीं है। प्रमाण के लिए क्लिक करें [1] डेकन हेरल्ड [2] टाइम्स ऑफ़ इण्डिया
जो दावे के साथ कहते हैं कि हिन्दी राष्ट्रभाषा है वे या तो अज्ञानी हैं अथवा मिथ्याचारी।
हमारे लिए यह जानना तथा समझना आवश्यक है कि छल, बल, कौशल का प्रयोग कर हिन्दी को राष्ट्रभाषा का स्थान दिलाना, एक असत्य तथा अन्याय का पोषण करना है एवं यह चेष्टा भारतवर्ष को हिन्दूराष्ट्र बनाने में घातक सिद्ध होगा।
मुट्ठीभर हिन्दी भाषी प्रदेशों का यह प्रादेशिक स्वार्थ तथा संकीर्ण प्रान्तीय मनोवृत्ति उनकी हीन भावना का परिचायक है, जिसे त्यागकर उन्हें हिन्दी को सशक्त बनाने की चेष्टा में लगना चाहिए, जो मैं कर रहा हूँ।
आपके लिए यह जानना अत्यन्त आवश्यक है कि एक अशक्त भाषा को छल, बल, कौशल द्वारा राष्ट्रभाषा के रूप में प्रस्थापित करने का आपका यह प्रयास आपको दीन, हीन, गरिमा-रहित तथा बेईमान बनाती है।
संस्कृत एक मात्र भाषा है जिसमें राष्ट्रभाषा बनने की योग्यता है। हिन्दी साहित्य का स्थान संस्कृत साहित्य की तुलना में नगण्य है तथा कई प्रादेशिक साहित्यों की तुलना में भी हीन है। अतः हिन्दी को इतना सशक्त बनायें कि अन्य भाषा-भाषी स्वयं आगे बढकर हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने का प्रस्ताव रखें।
आज आप जो कर रहे हैं वह मुसलमानों की तरह जबरन हथियाने की, उन्हीं की तरह छल, बल, कौशल का प्रयोग कर। क्या यह उनकी संगत में इतने लंबे समय तक रहने का प्रभाव है कि आप भी उन्हीं की मनोवृत्ति से ग्रसित हो गए हैं? क्या इसीलिए आप दूसरों की माँ-बेटियों पर गन्दी नज़र डालना बुरा नहीं मानते किन्तु यदि कोई दूसरा आपकी माँ-बेटियों पर गन्दी नज़र डाले तो आप आग-बबूला हो जाते हैं? पर जब एक मुसलमान पटना के भरे बाज़ार से कंचन मिश्रा को उठा ले जाता है तो आपका सिंहत्व लुप्त होकर गीदड़त्व बन जाता है। आपकी स्थानीय हिन्दी मीडिया भी चुप्पी साध बैठती है।
याद रखें कि आप सिंहों का सिंहत्व कमज़ोर की रक्षा करने के लिए है न कि कमज़ोर पर अत्याचार करने के लिए। अपने आप को हिन्दू कहते हैं तो सत्य एवं न्याय का रास्ता अपनायें न कि हर इच्छित वस्तु या इच्छित अधिकार को छल, बल, कौशल के माध्यम से प्राप्त करने की चेष्टा करें। यही चलता रहा तो आप में तथा मुसलमानों में क्या अंतर रह जायेगा? सोचिए!