अप्रैल 2006
आज हिन्दू अपने गुरु की ओर देखता है मार्गदर्शन के लिए। जब हमारे सभी गुरु अपने अनुयायियों को यह बताना आरम्भ करेंगे कि आज की स्थिति में आम हिन्दू का क्या कर्तव्य बनता है, तभी हम इस दिशा में तेजी के साथ आगे बढ़ सकेंगे।
हालांकि, मैं अच्छी तरह इस बात को जानता हूँ कि आज की स्थिति में सभी गुरुओं से यह आशा करना अवास्तविक होगा। मैं इसके कारण को भी समझता हूँ अतः मेरी कुछ पुस्तिकायें हमारे आदरणीय गुरुओं के लिए भी हैं।
सभी गुरु उन्हें पसन्द नहीं करेंगे। मेरी स्पष्टवादिता से कुछ चिढ़ जायेंगे (उदाहरण पुस्तक 22)। पर जिनमें सनातन धर्म के प्रति सच्ची आस्था एवं सच्चा प्रेम है, वे मेरी चुभती हुई बातों में सच्चाई की कोई झलक तो देखेंगे, और अपनी राह बदलेंगे।
मेरा काम तो बहुत सीधा-सादा है। एक कोने में बैठकर लिखते रहना, एवं उसे श्री नारायण को अर्पित करते जाना। उसके पश्चात नारायण ही चुनेंगे किसे मेरे साथ चलना है, और किसे नहीं।
जब नारायण कहेंगे कि उठ उस कोने से, और निकल पड़ उस राह पर, जो मैने तेरे लिए चुना है, तब उस दिन होगा, "शंखनाद"।
पर वह दिन अभी दूर है। जब तक भारत का जन-मानस उस युद्धघोष के पीछे एक साथ चल पड़ने का सत्साहस नहीं जुटा पाता, तब तक वह दिन दूर ही रहेगा।