श्रीकृष्ण बोले - हाँ, आज मैंने शस्त्र उठाया है  (2002)

स्रोत — प्रथम पुस्तक "असत्य अन्याय रूपी अधर्म के विरुद्ध उठो अर्जुन — राम मंदिर तुम्हें पुकारता" का आरम्भिक अध्याय

भगवान श्री कृष्ण सो रहे थे। दुर्योधन आये, और सिराहने पर रखे एकमात्र आसन पर, अपना अधिकार जमाया। अर्जुन आये, और भगवान के पैरों के पास, हाथ बाँधे खड़े रहे। आँख खुली तो स्वाभाविक ही था, सबसे पहले नज़र पड़ती, आँखों के सामने पैरों के पास खड़े अर्जुन पर। सिराहने पर बैठे दुर्योधन पर दृष्टि पड़ी बाद में, जब अर्जुन ने उनका ध्यान आकर्षित किया उस ओर।

जिसकी जैसी भावना

दोनों चाहते युद्ध में सहायता श्री कृष्ण की।
अर्जुन ने माँगा निहत्थे कृष्ण को,
क्योंकि भगवान का रूप देखा उनमें।

दुर्योधन आनन्दित हुआ मन ही मन,
विशाल नारायणी सेना को पाकर,
क्योंकि एक ग्वाले का रूप केवल,
देखा था कृष्ण में उसने।

कुरुक्षेत्र की युद्ध भूमि में

भीष्म का भीषण तांडव देखा,
तो न रहा गया कृष्ण से।

भूले नहीं,
पर भुलाया उन्होंने,
अपना वचन,
कि मैं न उठाऊँगा शस्त्र,
इस युद्ध में।

उठा लिया उन्होंनें,
रथ का पहिया,
और दौड़ पड़े,
भीष्म पर वार करने।

भीष्म लड़ रहे थे दुर्योधन के पक्ष में,
चाहे बँधें हो अपने प्रण से,
पर दे रहे थे साथ आज अधर्म का।
भीष्म का विनय
अपना धनुष छोड़ा,
हाथ जोड़े,
मुस्कराये,
और भीष्म बोले।
 
अहोभाग्य मेरे,
जो भगवान आये,
शस्त्र उठाये,
वार करने मुझ पर।
 
तुमने तो कहा था
भगवन,
शस्त्र न उठाऊँगा,
इस युद्धभूमि में।

पर आज मैंने
विवश कर दिया प्रभु तुम्हें,
प्रण तोड़ने अपना।

श्री कृष्ण बोले

“तोड़ता हूँ
अब मैं,
सब अपने वचन,
शस्त्र सन्यास के
सब उपकरण।

धर्म रक्षा,
राष्ट्र रक्षा के लिए,
कर रहा हूँ
फिर मैं,
आयुध ग्रहण”