राम मंदिर तुम्हें पुकारता (पाठकों की राय)

महामण्डलेश्वर श्रोत्रिय ब्रहमनिष्ठ परमहंस परिव्राजकाचार्य, श्री श्री 1008 डॉ स्वामी शिव स्वरूपानन्द सरस्वती, 
भागवत, ज्योतिष, वेदान्त, षडदर्शनाचार्य (पी-एच.डी.), आनन्द कृष्ण धाम, सन्यास मार्ग, कनखल, हरिद्वार 249 408
30 अप्रैल 2006
परमप्रिय आत्म स्वरूप मानोज जी
जय श्री राम।
गंगा मैया एवं भगवत कृपा से आप सभी के साथ स्वस्थ व सानन्द होंगे।
मैं अभी बाहर भ्रमण के बाद आया, आपका पत्र व दो पुस्तकें (कहानी एक षड़यंत्र की व हमारे बुद्धिजीवी, हमारी मीडिया, हमारे न्यायाधीश) मिली। पुस्तकों को पढ़कर अत्यधिक प्रसन्नता हुई कि कोई व्यक्ति अभी भी है जो सनातन धर्म, राम मन्दिर व मन्दिर बनने में व्यवधान के बारे में सटीक व न्यायोचित विचार व्यक्त कर सकता है। आपके ऊपर भारत वासी व प्रत्येक सनातन धर्मी को गर्व करना चाहिये।
मैने आपकी पूर्व पुस्तक जो शिक्षा से संबंधित थी उन सभी को प्रवचनों व कथाओं में लिया, लोगों ने बहुत पसंद भी किया। आशा है समाज की सोच में बदलाव होगा तथा वह प्राचीन भारत जो विश्व गुरु कहलाता था, पुनः समाज के सामने स्थापित होगा।
आप अपने विचार अवश्य ही मेरे तक पुस्तक या पत्र के माध्यम से पहुँचाते रहें जिससे आपके विचारों का लाभ समाज को प्राप्त होता रहे।
मैं आपका हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ तथा आशा करता हूँ कि समाज को अपने हिन्दूवादी व सनातन विचारों से अवश्य लाभान्वित कराते रहेंगे।
आपका
महामण्डलेश्वर डॉ स्वामी शिवस्वरूपानन्द सरस्वती
स्वामी नर्मदानन्द सरस्वती 'हरिदास', जबलपुर, 8-7-2006
आपकी सभी पुस्तकें सनातन धर्मियों की आखें खोलने वाली, सुन्दर रूप में उत्तम विचार-प्रणाली को लेकर, पुष्ट तर्क से संपुटित सरल, बोधगम्य भाषा में लिखित हैं जिससे समाज समाधान की दिशा में अग्रसर हो सकता है। आपके इस जनता को चैतन्य करने के कार्य में हार्दिक शुभकामनायें हमारी आपके साथ हैं और सदैव रहेंगी। शेष श्री हरिकृपा।
श्री रवि कान्त खरे (बाबाजी), डी एस 13 निराला नगर, लखनऊ 226-020
14-12-2005 "राम मंदिर तुम्हें पुकारता" एवं "उठो अर्जुन" का अध्ययन करने से मन गद्गद हो गया। सही है कि बिना अपने अन्दर तेजस्विता लाये कुछ नहीं हो सकता। सत्य को आत्मसात करना वांछित है। यथार्थ एवं वास्तविकताओं को नज़रअन्दाज़ नहीं किया जा सकता। सामान्य जनता बहुत सी बातों से अनभिज्ञ है। उस तक ऐसा साहित्य पहुँचना चाहिए। मैं गाँवों का भ्रमण करना और वहाँ इस प्रकार का साहित्य वितरित करना जरूरी समझता हूँ। विशेषकर नवयुवकों एवं नवयुवतियों को इस प्रकार के साहित्य से परिचित कराना आवश्यक है। राम मंदिर तुम्हें पुकारता की तीन पुस्तकों के आवरण पृष्ठ पर अंकित सन्देश/अभिव्यक्ति को मैं अपनी पुस्तक 'दोषी कौन? उपचार क्या?' में छाप रहा हूँ।
मैं आपकी भूरि-भूरि प्रशंसा करता हूँ, आपकी कर्मठता का आदर करता हूँ और आपकी लेखनी का समादर करता हूँ। चाहता हूँ कि इसी प्रकार निर्भिकता से लिखते रहें। प्रार्थना करता हूँ कि प्रभु आपको स्वस्थ रखें और दीर्घायु करें।
देश व समाज के लिए आप द्वारा सृजित साहित्य की बड़ी उपादेयता है। सौभाग्यवश ही मैं आपके साहित्य से परिचित हुआ। मैं आप द्वारा प्रेषित पुस्तकों के लिए आभारी हूँ। अंग्रेज़ी में लिखी पुस्तकें भी देखना चाहूँगा।"
29-1-2006 "इस शोधपूर्ण उत्तम पुस्तक की प्रस्तुति के लिए साधुवाद। पुस्तक तथ्यपूर्ण होने साथ ही रुचिकर एवं प्रेरक है। इसे पढ़ कर मन उद्वेलित हुआ।"
9-2-2006 डॉ जनार्दन यादव, नरपतगंज, अररिया, बिहार 854-335
"राम मंदिर के संदर्भ में आपने जो सत्य उद्घाटित किया है, वही एकमात्र सत्य है। आपकी पुस्तक की विषय-वस्तु से मैं भी विगत दशकों से जुड़ा रहा हूँ। राम जन्मभूमि का उद्धार नये भारतीय इतिहास का सृजन करेगा और हमारी आस्था में चार चाँद लगायेगा। पुस्तक के रूप में विषय-वस्तु को समायोजित करने के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
13-2-2006 श्री अभय कुमार ओझा, सहायक व्यवहार न्यायालय, खगड़िया, बिहार 851-204 
"आदरणीय श्री रविकान्त खरे (बाबाजी) द्वारा प्रेषित आपकी पुस्तक 'राम मंदिर तुम्हें पुकारता' मिली। इस पुस्तक में आपने अपने सभी विचारों को सप्रमाण प्रस्तुत किया है। इससे आपके विचारों को बल मिलता है। पुस्तक पूरी तरह तर्कसंगत बन गई है। ... आज वैचारिक क्रांति की आवश्यकता है। आपकी पुस्तक इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगी, सोये हुए हिंदुओं को जगायेगी और उनकी रगों में शक्ति का संचार करेगी - इसमें संदेह नहीं।"
11-3-2006 आचार्य श्री अवस्थी, वैदिक अध्यात्म चेतना मिशन, वैष्णव कॉलोनी, पिपराली रोड, सीकर, राजस्थान 332001
"आपकी अनुपम सर्जना 'राम मंदिर तुम्हें पुकारता' श्री खरे (रविकान्त जी) बाबाजी द्वारा प्राप्त हुई। राम मन्दिर आन्दोलन आज राममन्दिर तक ही नहीं रहा, यह राष्ट्र की संस्कृति का स्वाभिमान और अस्मिता को लिए हुए प्रत्येक देशभक्त युवा को उठकर खड़े हो जाने का आन्दोलन था। ... आपकी कृति बहुत ही प्रेरणा वाली है। अलग-अलग सन्दर्भों सप्रमाण तथ्यों से सुसज्जित पुस्तक पाकर हार्दिक खुशी हुई। राम मन्दिर आन्दोलन में आगरा का सेन्ट्रल जेल सात दिनों तक निवास रहा - राजस्थान के प्रमुख आन्दोलन कारी भी वहीं थे।"
14-3-2006 स्वामी मुक्तानन्द सरस्वती, सर्वोदय आश्रम - साधुबेला, हरिद्वार, उत्तरांचल 249-410 
"आपकी पुस्तक 'राम मंदिर तुम्हें पुकारता' मिली। पूरी पुस्तक पढ़कर तुम्हारे हृदय की पुकार तथा मन की पीड़ा का आभास मिला। ... रामलला की जन्मभूमि पर बने नापाक ढाँचे को गिराने की जिम्मेदारी लेने में सब बगले झांक रहे हैं। मैने 1992 में ही सरेआम घोषणा की थी कि ढाँचा हमने गिराया है। तब मैं अखिल भारतीय सन्त समिति का राष्ट्रीय महामन्त्री था - विश्व हिन्दू परिषद तथा राष्ट्रीय सेवक संघ की सभी संस्थाओं को हिम्मत से कहना चाहिए था कि ढांचा हमने गिराया है। साथ ही यह भी कहना चाहिए कि उस ढांचे को गिरा कर रामलला का मन्दिर हम बना रहे हैं। क्योंकि अनेक वर्षों से वहाँ रामलला की पूजा हो रही थी। ... मुसलमान-संगठन आतंकी हमले करके उस हमले की जिम्मेवरी लेने की घोषणा स्वयं करते हैं।"
25-3-2006 श्री ब्रजमोहन शर्मा, 20-ए प्रताप नगर-2, टोंक फ़ाटक, जयपुर, राजस्थान 302-015
"आपकी पुस्तक 'राम मंदिर तुम्हें पुकारता' श्री रविकान्त खरे (बाबाजी) से मिली। पुस्तक को मैंने गम्भीरता से आद्योपान्त पढ़ा। मैं चकित हूँ पुस्तक में दिए गए प्रमाण एवं संदर्भों से। साथ ही आपकी प्रतिभा, निर्भयता एवं भारतीय संस्कारिता ने मुझे गद्गद् कर दिया है। सर्व समर्थ दयालु प्रभु ने प्रेरणा देकर आपको राम क्रान्ति का अग्रदूत बनाकर इसके निमित्त अपना संकल्प पूरा करने का उद्घोष किया है। सफलता निश्चित है। मैं अभी तो औपचारिक रूप से सद्भावपूर्ण ये पंक्तियाँ ही लिख रहा हूँ। विशेष आपका पत्र आने पर विचार विमर्श हो सकेगा।"
23-5-2006 सुश्री शशिप्रभा शर्मा, 1936/3 पन्नापुरी, हापुड़ (गाज़ियाबाद), उ प्र 245-101
"राम मंदिर तुम्हें पुकारता को अपने मूल रूप में आपको सविस्तार प्रमाणों सहित प्रकाशित करनी चाहिए। निर्भिक स्पष्टवादिता आपकी, "व्यक्ति विशेषों" के जो चेहरे से आवरण हटा दे, हम भी तो जानें, सत्य क्या है? इसी तरह पुस्तक क्रमांक 14 एवं 15 में बेशक इस्लाम दोनों में हो, अपितु दोनों पुस्तकें अलग-अलग उपलब्ध होनी चाहिए। निर्णय पाठकों पर छोड़ दें, पाठक स्वयं ही सही गलत का विश्लेषण कर लेंगे।"
30-5-2006  श्री प्रकाश "बाबूजी", संयोजक चेतना मंच, चारभुजा, राजसमन्द, राजस्थान, पिन 313333
"जो पाठक प्रतिक्रिया भेजते हैं उनके पते अवश्य दें"
श्री आनन्द
मुझे आपके द्वारा लिखित पुस्तकें 3 पुस्तकें 1. मजहब ही सिखाता है आपस में बैर करना 2. राम मंदिर तुम्हें पुकारता 3. हमारे न्यायाविद् ......  महोदय यह पुस्तकें हमारे भ्राता डा0 ओमप्रकाश जी के करकमलों द्वारा हमारे गृह जनपद बाराबंकी से दशहरा की छुट्टियों में पढ़ने के लिए प्राप्त हुर्इं। पढ़कर अति प्रसन्नता हुई और इस बात की अनुभूति हुई कि अभी भी कोई हिन्दू इस धरा पर हिन्दू धर्म के उत्थान के लिए मौजूद है। आपके द्वारा प्रस्तुत किए गए साक्ष्य चीख-चीख कर उत्तर दे रहें हैं कि किस तरह ईसाई एवं इस्लाम धर्म के धर्म ग्रन्थ हिन्दू धर्म का खुला विरोध कर रहे हैं। हम हिन्दुओं को दिग्भ्रमित करने हेतु बाईबिल एवं कुरान को जिस रूप में प्रस्तुत किया गया है वह मात्र छलावा है। आपने हमारी आँखें खोल दी हैं और हमें यह अहसास हो रहा है कि अब वह समय गया है कि हम अपने धर्म के प्रति जागरूक होना होगा वरना हिन्दू धर्म का अस्तित्व मिटाने के लिए ये बाज ताक लगाए हुए हैं। जरा सी पलक झपकी कि ये उसका ग्रास बनाना चाहेंगे।

प्रथम मुंबई संस्करण 2003 पृष्ठ 76
द्वितीय मुंबई संस्करण 2004 पृष्ठ 128
तृतीय मुंबई संस्करण 2004 पृष्ठ 48
चतुर्थ मुंबई संस्करण 2006 पृष्ठ 56
पंचम मुंबई संस्करण 2006 नवंबर पृष्ठ 72
सप्तम मुंबई संस्करण 2010 अक्टूबर पृष्ठ 41
इनके अलावा दो संस्करण पूर्णियाँ (बिहार) से प्रकाशित

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