कुरआन मुसलमानों को क्या सिखाता है

और इसे जानना हम हिन्दुओं के लिए कितना आवश्यक है

स्तुति / समर्पण

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु में देव शुभकार्येषु सर्वदा।।

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता,
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर् देवैस्सदावन्दिता
,
सा माम् पातु सरस्वती भगवती निश्शेषजाड्यापहा।।

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

कायेन वाचा मनसेन्द्रिऐवा बुध्यात्मना वा प्रकृते स्वभावात।
करोमि यद् यद् सकलं परस्मै नारायणायेति समर्पयामि।।

भूमिका

कुरआन को आप अधिकांशतः कुरान के नाम से जानते हैं। मेरे पास दो कुरान हैं और दोनों पर कुरआन मजीद लिखा हुआ है। इसका अर्थ हुआ सही उच्चारण कुरआन है। अतः हम कुरआन वर्तनी (स्पेलिंग) का ही प्रयोग करेंगे, कुरान का नहीं। पहली कुरआन मजीद है बड़े साइज के बारह सौ पचास पृष्ठों की। इसके प्रकाशक हैं दरिया गंज, नई दिल्ली के मक्तबा अल-हसनात। इसका ISBN है 81-86632-00-X (संस्करण 2003)। इसमें अरबी मूल ग्रंथ सहित हिंदी व अँग्रेज़ी अनुवाद दिए हुए हैं। हिंदी अनुवाद मुहम्मद फ़ारुक खाँ के एवं अँग्रेज़ी अनुवाद मु0 मा0 पिक्थाल के। दूसरी कुरआन मजीद है बड़े साइज में छः सौ बारह पृष्ठों की। इसमें अरबी के साथ-साथ हिंदी अनुवाद भी दिए गए हैं। अनुवादक हैं नागपुर के हज़रत मौलाना अब्दुल करीम पारेख साहब। प्रकाशक हैं लाल कु आँ दिल्ली के Educational Publishing House और नागपुर के India Religious Book Centre

कुछ समय से एक नई हवा चल पड़ी है। समाचार पत्रों, सिनेमा, टीवी सीरियलों द्वारा यह छवि आँकने की चेष्टा की जाती रही है कि इस्लाम अमन-चैन का मज़हब है। अधिकांशतः व्यक्ति जो कुरआन की वास्तविकता से अनभिज्ञ हैं वे इस बात को सच मान बैठते हैं। इस कारण यह आवश्यक जान पड़ता है कि सत्य को आपके सामने नग्न रूप में प्रस्तुत किया जाये। मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि जिनके पास धन है वे संचार माध्यम का प्रयोग कर बड़ी सहजता से असत्य को सत्य का जामा पहना कर आपके सामने प्रस्तुत कर सकते हैं। मेरे पास ऐसे साधन नहीं हैं क्योंकि मैंने 48 वर्ष की आयु में जीविकोपार्जन हेतु किए जाने वाले कार्यों से निवृत्ति लेकर सत्य को जानने तथा जन मानस तक पहुँचाने का संकल्प लिया है। नारायणी माँ भवतारिणी ने मुझे जो कार्य भार सौंपा है उसे, बिना किसी फल की अपेक्षा किए, उन्हीं के चरणों में नैवेद्य स्वरूप अर्पित करता जा रहा हूँ। मेरी शक्ति का स्रोत श्री नारायण हैं तथा भौतिक रूप से आप हैं - जनता जनार्दन। अतः सत्य को अन्यों तक पहुँचाने का बीड़ा आपको उठाना है। मुझे आपसे धन की अपेक्षा नहीं है, केवल सत्य को आगे बढ़ाने का अनुरोध है।

सत्य का अपना आधार भी होना चाहिए। मैं जो सत्य आपके सामने प्रस्तुत करने जा रहा हूँ उसका आधार है मुहम्मद फ़ारुक खाँ के द्वारा किया गया कुरआन मज़ीद का अरबी-हिन्दी अनुवाद तथा कोलकाता उच्चन्यायालय में प्रस्तुत की गई रिट याचिका 227 ऑफ 1985। यह याचिका अंग्रेज़ी में प्रस्तुत की गई थी। इस याचिका में सरकार से अनुरोध किया गया था कुरआन पर प्रतिबन्ध लगाया जाये। याचिका में कुरआन की जिन आयतों का उल्लेख था, सुनवाई के दौरान उनकी सत्यता पर कोई प्रश्न चिह्न नहीं खड़ा किया गया। प्रांतीय सरकार की ओर से ऐडवोकेट जनरल तथा केंद्रीय सरकार की तरफ़ से महान्यायवादी (ऐटॉर्नी जनरल) ने यह  दलील दी कि वे सभी आयतें अल्लाह से पैगंबर तक पहुँची अतः उनपर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है। इस रिट याचिका को स्वर्गीय सीता राम गोयल जी ने अपनी पुस्तक The Calcutta Quran Petition में सम्मिलित किया है। तीन सौ पचीस पृष्ठों की इस पुस्तक के प्रकाशक हैं नई दिल्ली के Voice of India तथा इसका ISBN है 8185990581 (संस्करण 1999)। उनमें से कुछ आयतें मैंने इस छोटी सी पुस्तिका प्रस्तुत की हैं।  

कुरआन से जो उद्धरण यहाँ प्रस्तुत किये जायेंगे उनमें सूरा तथा आयतों का ज़िक्र होगा। सूरा 4 अन-निसा को आप अध्याय 4 शीर्षक अन-निसा तथा आयत 56 को श्लोक 56 मान सकते हैं। पंजीकृत प्रकाशकों द्वारा निर्दिष्ट अंतर्राष्ट्रीय मानक पुस्तक संख्या विश्व भर में प्रकाशित पुस्तकों की अनूठी पहचान होती है। उद्धरणों के साथ आइ-एस-बी-एन तथा पृष्ठ संख्या भी दी जायेगी ताकि आप चाहें तो उनकी सत्यता की जाँच स्वयं कर सकते हैं। शब्दार्थ प्रामाणिक शब्दकोशों पर आधारित हैं। स्पष्टता के लिए भावार्थ एवं टिप्पणियाँ मेरी ओर से जोड़ी गई हैं। मेरा उद्देश्य है कि आप विषय को सहजता के साथ समझें ताकि उसकी प्रासंगिकता को, अपने जीवन एवं अपने परिवार के संदर्भ में रख कर, देख सकें। 

कुरआन

कुरआन सूरा 4 अन-निसा आयत 56 - वे जो अल्लाह के आदेश को नहीं मानते हैं, हम उन्हें आग में झोंक देंगे और जब उनकी चमड़ी पिघल जाए तो हम उनकी जगह नई चमड़ियाँ डाल देंगे ताकि उन्हें स्वाद मिले यंत्रणा काअल्लाह सबसे अधिक शक्तिमान हैं एवं विवेक पूर्ण हैं - ISBN 81-86632-00-X, पृष्ठ 231  

मुसलमान कुरआन को अल्लाह का पैगाम मानते हैं। उसमें जो कुछ भी लिखा है, उसे अल्लाह का आदेश मान, उसका अक्षरशः पालन करना, प्रत्येक मुसलमान अपना प्रमुख कर्तव्य मानता है। हम हिंदू तो ईसाई-अँग्रेज़ी शिक्षा के प्रभाव में अपने धर्म के प्रति उदासीन होते जा रहे हैं, पर मुसलमानों ने ईसाई-अँग्रेज़ी शिक्षा को सर्वदा शक की नज़रों से देखा है। इस कारण उन्होंने अपनी पहचान बनाये रखी है।

कुरआन सूरा 33 अल-अहज़ाब आयत 36 - जब अल्लाह एवं उसके पैगंबर ने निर्णय कर लिया है, किसी भी बात पर, तो किसी मुसलमान मर्द या औरत को यह हक नहीं, कि वह उस बारे में, कुछ भी कह सके - ISBN 81-86632-00-X, पृष्ठ 752

अल्लाह के आदेश को कौन नहीं मानता? वह जो इस्लाम को अपनाने से इंकार करता है। इस्लाम को अपनाने से इंकार कौन करता है? वह जो अपने आप को हिंदू कहता है। उस बुतपरस्त काफ़िर का अंजाम क्या होगा? वही जो मंज़ूरे खुदा होगा। और खुदा का पैगाम क्या है? जिंदा झोंक दो उन्हें आग की लपटों में। चखने दो उन्हें स्वाद अल्लाह की सत्ता को न स्वीकारने का

क्या मुसलमानों ने अल्लाह के इस आदेश का पालन किया? बेशक किया, और बखूबी कियाइतिहास गवाह है। पर आपको तो वह इतिहास स्कूल की पाठ्यपुस्तकों में पढ़ाया ही नहीं जाता तो आप उसे जानेंगे कैसे? मैं परिचय कराऊँगा आपकी उस इतिहास से जिसे बड़ी खूबी के साथ आपसे छुपा कर रखा गया है और आपको उसका उल्टा ही पढ़ाया जाता रहा है।

कुरआन सूरा 69 अल-हाक्का आयत 30-33 उसे पकड़ो और उसे बाँधो। जलाओ उसको नर्क की आग में और उसके बाद बाँधो उसे एक जंजीर से, जो हो सत्तर क्युबिट लंबा, क्योंकि उसने अल्लाह को नहीं स्वीकारा, जो हैं सबसे ऊपर - ISBN 8185990581, पृष्ठ 257

अंजाम स्पष्ट है पर आप नहीं मानेंगे क्योंकि आपकी समझ से आज जमाना बदल चुका है। क्या सब कुछ सचमुच बदला है या केवल ऊपरी तौर पर दिखावे के लिए? आप तो भोले हैं, जो दिखता है उसी पर विश्वास कर लेते हैं। सोचते नहीं कि दिखता वो है जो दिखाया जाता है। और आज की दुनिया में दिखाया वो जाता है जो आम तौर पर स्वीकार्य होता है। और स्वीकार्य वही होता है जिसकी हवा चल रही होती है।

आज जमाना मीडिया का है। मीडिया जो कुछ आपको दिखाती है टीवी के द्वारा, या फिर पढ़ाती है समाचार पत्रों के द्वारा, आपकी सोच उसी साँचे में ढलती जाती है। मीडिया आपको क्या दिखाती है या फिर क्या पढ़ाती है, यह निर्भर करता है बागडोर किसके हाथ में है। मीडिया की बागडोर उसके हाथ में होती है जिसके पास बेशुमार धन होता है। वह धन चाहे किसी भी रास्ते से कमाया गया क्यों न हो। यदि गलत रास्ते से कमाया गया होता है तो उसकी उपज आपकी सोच को गलत राहों की ओर, आपके अनजाने ही ले जाती हैं।

आज जमाना अँग्रेज़ी शिक्षा का भी है। यह शिक्षा आपको जो भी सिखाती है आपकी पाठ्य पुस्तकों के द्वारा, आपकी सोच उसी साँचे में ढलती जाती है। शिक्षा आपको क्या सिखाती है या फिर क्या पढ़ाती है, यह निर्भर करता है बागडोर किसके हाथ में है। शिक्षा की बागडोर उसीके हाथ में होती है जिसके पास सत्ता होती है। वह सत्ता चाहे किसी भी रास्ते से हासिल की गई क्यों न हो। यदि सत्ता गलत रास्ते से हासिल की गई होती है तो उसकी अपनाई हुई शिक्षा पद्धति आपकी सोच को गलत राहों की ओर, आपके अनजाने में ही ले जाती हैं।

कुरआन सूरा 22 अल-हज़्ज़ आयत 19-22 आग के परिधान (वस्त्र) बनाये गए हैं उनके लिए जो इस्लाम को नहीं अपनाते। उबलता हुआ पानी उनके सर पर डाला जायेगा ताकि उनकी चमड़ी भी पिघल जाए और वह सब भी पिघल जाए जो उनके पेट में है (अँतड़ियाँ भी)। उन पर कोड़े बरसाये जाएँ, आग में तपते हुए लाल लोहे के बने कोड़ों से - ISBN 8185990581, पृष्ठ 266

हिंदुओं, आपकी खातिरदारी की काफ़ी व्यवस्था है कुरआन में। पर मुसलमान चुप हैं क्योंकि आज हवा इस्लाम के खिलाफ़ चल रही है। उनका समय आने दीजिए और फिर खेल देखिए।

जब से ईसाइयों की दुनिया पर सीधा हमला किया मुसलमानों ने, मीडिया का इस्तेमाल कर अमरीका ने बड़ी हाय-तोबा मचा रखी है। अब तो ईसाइयों का क्रूसेड और मुसलमानों का ज़िहाद चल रहा है, पर ईसाइयों की दुनिया अब बहुत चालाक हो गई है। 9/11 के बाद प्रेसिडेंट बुश के मुँह से निकल गया था क्रूसेड का ऐलान, पर अपनी गलती का एहसास होते ही वे पहुँच गए अमरीका के मस्जिद में, इबादत के लिए। मीडिया के द्वारा दिखा दिया अमरीका के मुसलमानों को कि वे इस्लाम की इज़्ज़त करते हैं। हालाँकि यह दिखावे की इज़्ज़त इसलिये थी, कि उन्हें अचानक खतरे का एहसास हुआ, उन मुसलमानों से जो अमरीका में उस समय बसे थे। बुश को समय चाहिये था अपनी पकड़ मज़बूत करने के लिए।

कुरआन सूरा 2 अल-बकरा आयत 193 - तब तक उनसे लड़ते रहो, जब तक मूर्ति पूजा बिल्कुल खत्म न हो जाये और अल्लाह का मज़हब सबपर राज करे - ISBN 8185990581, पृष्ठ 255

आप यदि हिंदू हो तो आप उनकी नज़रों में मूर्ति पूजक हो। कोई फर्क नहीं पड़ता उन्हें, आप यदि निराकार ब्रह्म को मानते हों। उनकी तलवार आपकी गर्दन पर उतनी ही तेजी से चलेगी जितनी तेजी से एक मूर्ति पूजक का सर धड़ से अलग होगा।

कुरआन सूरा 8 अल-अनफ़ाल आयत 39 तब तक उन पर हमला करते रहो जब तक मूर्ति पूजा का नामों निशाँ न मिट जाये और सब अल्लाह के मज़हब के अधीन न हो जायें ISBN 8185990581, पृष्ठ 255

प्रश्न यहाँ केवल मूर्ति पूजा का ही नहीं, यद्यपि सत्य है, मूर्ति पूजा के जरिए वे आपकी पहचान जल्दी कर सकते हैं, और खतरा आपकी तरफ तेजी के साथ बढ़ सकता है। बौद्ध मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं करते, उस प्रकार से जिस प्रकार से हिंदू करते हैं। फिर भी मुसलमान आए और बौद्धों का नामों-निशाँ मिटा गए, भारत की इस धरती पर से। कारण उन्होंने देखा कि बौद्ध मंदिरों में बुद्ध की प्रतिमा है। यही काफी था उनके लिए। हालाँकि बौद्ध, भगवान की मूर्ति तो क्या, भगवान तक में विश्वास नहीं करते। वे निर्वाण की बात तो अवश्य करते हैं, पर उस आशय से नहीं, जिस दृष्टि से हिंदू मोक्ष की बात किया करते हैं। हाँ, बौद्धों में भी कुछ संप्रदाय ऐसे भी हैं, जो कुछ हिंदू देवी देवताओं को मानते हैं, पर यहाँ मैं बौद्धों की उस अवधारणा की बात कर रहा हूँ जो गौतम बुद्ध की परिकल्पना में थी।

खैर, प्रश्न यहाँ केवल मूर्ति पूजा की ही नहीं, बल्कि अल्लाह के मज़हब इस्लाम की सत्ता सारी धरती पर हो, यह उनकी सबसे बड़ी माँग है। किसी और धर्म के व्यक्ति को जीने का अधिकार इस धरती पर नहीं, यही सिखाता है मज़हब उनका।

कुरआन सूरा 9 अत-तौबा आयत 2-3 अल्लाह एवं उनके पैगंबर मुक्त हैं, किसी भी दायित्व से, मूर्ति पूजकों के प्रति... उन्हें ऐसी सजा दो कि वे शोक ग्रस्त हो जायें - ISBN 8185990581, पृष्ठ 259

कुरआन सूरा 60 अल-मुम्तहना आयत 4 - शत्रुता एवं घृणा ही रहेगी हमारे बीच तब तक जब तक तुम केवल अल्लाह के बंदे न बन जाओ - ISBN 8185990581, पृष्ठ 262

हिंदुओं, तुम्हारे लिए संदेश बहुत ही स्पष्ट है। जमाना बदले, या न बदले। तुम सपनों की दुनिया में खोये रहो, या न रहो। सर्व धर्म समभाव जैसी अवधारणाओं के भुलावे में पड़े रहो, या न रहो। हिंदू-मुस्लिम भाई-भाई कह कर उन्हें गले लगाओ या नहीं। एक बात स्पष्ट रूप से समझ लो। कयामत तक हम तुमसे दुश्मनी निभायेंगे। तुम सदा हमारे लिए घृणा के पात्र रहोगे। प्रलय तक हम तुम्हें मुसलमान बनाते रहेंगे या फिर तुम्हारी गर्दन होगी हमारे हाथ।

कुरआन सूरा 9 अत-तौबा आयत 7 अल्लाह और उनके पैगंबर मूर्ति पूजकों को विश्वास की दृष्टि से नहीं देखते ISBN 8185990581, पृष्ठ 262

जब वे आप पर विश्वास ही नहीं करते तो आपका उन पर विश्वास क्या मायने रखता है? आप चाहें मानते रहें एक-तरफा विश्वास को, एक-तरफा प्रेम को, पर वास्तविक दुनिया में इसका कोई मूल्य नहीं। हाँ, यदि आप दूसरे हिंदुओं की नज़रों में बड़ा बनना चाहते हैं, जैसा कि कई टेलिविज़न-गुरुओं के उद्गारों से जाहिर होता है, तो यह अलग बात है। यदि आपने निर्णय कर ही लिया है कि आप अपने बड़े हृदय की पहचान देंगे, बाकी हिंदुओं को एक काल्पनिक दुनिया में ले जाकर, तो ठीक है, यह आपका व्यवसाय है, करते रहिए। आपके पाँव पड़ने वालों की कतार इस बात पर निर्भर करती है कि कितने बड़े महान आत्मा आप दिखते हैं। आपके भक्तगण सदा आपकी कृपा दृष्टि की आस लगाये आपकी समस्त सुख सुविधाओं की व्यवस्था में जुटे रहते हैं। आप यह सब भोगें पर कृपया हिंदुओं को और धोखे में न रखें।

कुरआन सूरा 9 अत-तौबा आयत 39 - ऐ मुसलमानों, अगर तुम युद्ध न करो तो अल्लाह तुम्हें कड़ी सजा देगा और तुम्हारी जगह पर दूसरे आदमी को लायेगा - ISBN 8185990581, पृष्ठ 257

यहाँ धमकी का प्रावधान भी है। लड़ोगे नहीं तो तुम्हारी जगह दूसरा कोई ले लेगा। और यहीं बात खत्म न होगी। तुम्हें भी कड़ी सजा मिलेगी। अल्लाह ने इसकी व्यवस्था भी कर रखी है।

कुरआन सूरा 2 अल-बकरा आयत 216 लड़ना तुम्हारी मजबूरी है, चाहे तुम कितना भी नापसंद करो इसे ISBN 8185990581, पृष्ठ 255

ऐ मुसलमानों, अल्लाह का पैगाम है यह, चाहो या न चाहो, लड़ना तो तुम्हें पड़ेगा ही। कोई भी चारा नहीं तुम्हारे पास, इसके सिवा।

कुरआन सूरा 9 अत-तौबा आयत 41 चाहे तुम्हारे पास हथियार हों या न हो, चल पड़ो, और लड़ो अल्लाह की खातिर, अपने धन और अपने शरीर के साथ ISBN 8185990581, पृष्ठ 255

ऐ मुसलमानों, तुम्हें लड़ना है खुदा के वास्ते क्योंकि अल्लाह चाहते हैं कि तुम लड़ो, चाहे हथियार हों, या न हों तुम्हारे पास। अपना सारा धन लगा दो और अपना सब कुछ दे कर लड़ो। यदि यह पुकार अपनी रक्षा के लिए होती तो कितना अच्छा होता। यदि यही पुकार अपने धर्म, अपनी संस्कृति, अपनी पहचान, अपने माँ-बहनों, बहू-बेटियों की इज़्ज़त बचाने के लिए होती तो कितना अच्छा होता। पर इस लड़ाई की पुकार इन सबके लिए नहीं थी।

यह पुकार थी अल्लाह की ख्वाहिश को पूरा करने की। वह ख्वाहिश क्या थी? काट डालो उन्हें जो मेरे सिवा किसी दूसरे भगवान को पूजते हैं। मिटा दो उनका नामों-निशान, उनका धर्म, उनकी संस्कृति, उनकी पहचान।

कुरआन सूरा 9 अत-तौबा आयत 123 मुसलमानों, तुम्हारे आस-पास जो भी गैर-मुसलमान बसते हैं, हमला बोल दो उन पर, उन्हें जताओ कि तुम कितने कठोर हो। ISBN 8185990581, पृष्ठ 255

ध्यान दीजिए, तुम्हारे आस-पास जो भी गैर-मुसलमान बसते हैं। आप का समय भी आने वाला है। यह सत्य है कि खतरा अभी आपकी दहलीज तक नहीं पहुँचा। कारण वे अभी भी उस संख्या तक नहीं पहुँचे, जिसकी उन्हें जरूरत है, आप पर धावा बोलने के लिए। पर इन खयालों में न रहिए कि वह दिन दूर है। वे फैल रहे हैं आपके इर्द-गिर्द। आप उनके घरों में झाँक कर नहीं देखते कि कितनी तेजी से बढ़ रही है उनकी संख्या।

उन्हें पचास प्रतिशत की आवश्यकता नहीं होगी। पचीस बहुत होगा उनके लिए। उनके साथ उनका अल्लाह होगा। उनके मनों-मस्तिष्क पर जुनून छाया होगा। आप देखते रह जायेंगे, वे आपकी चौखट लाँघ कर आपकी बहू-बेटियों तक पहुँच जायेंगे

कुरआन सूरा 9 अत-तौबा आयत 73 ओ पैगंबर! जो मुझमें विश्वास नहीं करते, उनसे युद्ध छेड़ो। उन पर कठोर बनो। उनका अंतिम ठिकाना नरक है, एक दुर्भाग्य पूर्ण यात्रा का अंतिम चरण ISBN 8185990581, पृष्ठ 255

अल्लाह का पैगाम अपने पैगंबर के नाम। ओ पैगंबर! जो मुझ अल्लाह को अपना खुदा नहीं मानते, उन पर हमला कर दो। उनके साथ कठोरता का व्यवहार करो। उन्हें नर्क पहुँचाओ।

कुरआन सूरा 66 अत-तहरीम आयत 9 ओ पैगंबर! जो मुझमें विश्वास नहीं करते, उन पर हमला करो और उनके साथ कठोरता से पेश आओ। नर्क उनका निवास होगा, दुर्भाग्य पूर्ण उनका भाग्य होगा ISBN 8185990581, पृष्ठ 255

एक ही पैगाम, भिन्न-भिन्न ढंग से, भिन्न-भिन्न स्थानों पर, मिलेगा कुरआन में। अध्याय 9 में भी वही बात और फिर अध्याय 66 में भी। उद्देश्य स्पष्ट है। मुसलमान कभी भूले से भी, न भूले। चाहे वह कुरआन शुरुआत से पढ़ रहा हो, या मध्य से, या अंत में, उसे वही सब मिले बार-बार, लगातार। जब एक ही तरह की बातें दोहरायी जाती हैं तो उनका असर पढ़ने वालों के दिमाग पर गहरा होता है। जैसे कुरआन के पन्नों पर छपी होती है, वैसे ही मुसलमान के दिलो-दिमाग पर वह बात छप जाती है।

आपका वास्ता दो-चार अँग्रेज़ी-दाँ मुसलमानों से पड़ता होगा, जो 0.00001 प्रतिशत होंगे, और आप उन्हें ही बाकी 99.99999 प्रतिशत का प्रतिनिधि मान बैठते हैं। आपको अहसास तक नहीं होता कि बाकी के दिलो-दिमाग पर क्या छाया हुआ है क्योंकि वह आपको दिखता नहीं। और आपको वह दिखता नहीं क्योंकि आप उसकी सोहबत (संगत) में नहीं रहते।

कुरआन सूरा 47 मुहम्मद आयत 4 से 15 तक जब तुम्हारा सामना हो गैर-मुसलमानों से, युद्धभूमि पर, उनके सर काट डालो। जब तुम उन्हें कुचल डालो तो कस कर बाँधो। उनसे धन वसूल करो। उनके हथियार डलवा दो। तुम ऐसा ही करोगे। यदि अल्लाह ने चाहा होता तो वह स्वयं उन्हें नष्ट कर देता, तुम्हारी सहायता के बिना। पर उसने यह आदेश दिया है, ताकि वह तुम्हारी परीक्षा ले सके। और वे जो अल्लाह के लिए लड़ते हुए कट मरेंगे, अल्लाह उनके काम को व्यर्थ न जाने देगा। वह उन्हें जन्नत में बुला लेगा। अल्लाह का यह वचन है। मुसलमानों, यदि तुम अल्लाह की सहायता करते हो, तो अल्लाह तुम्हारी सहायता करेगा, और तुम्हें मज़बूत बनायेगा। पर जो अल्लाह का न होगा वह अनन्त काल तक नरक में सड़ेगा। अल्लाह केवल मुसलमानों की ही रक्षा करेगा। गैर-मुसलमानों का कोई भी रखवाला नहीं। जो सच्चे धर्म (इस्लाम) को अपनायेंगे उन्हें अल्लाह जन्नत में दाखिल करेगा। जो मुसलमान नहीं बनेंगे, वे वही खायेंगे जो जानवर खाते हैं, नर्क उनका घर होगा... वे वहाँ अनन्त काल तक रहेंगे, और खौलता हुआ पानी पिएँगे जो उनकी अँतड़ियों को चीर देगा ISBN 8185990581, पृष्ठ 256

ईसाइयों का कहना तो आपने सुना होगा कि जो अपनी सहायता करता है, गॉड भी उसकी सहायता करता है। यहाँ पर कुरआन कुछ और ही कहता है। यदि तुम अपनी नहीं, बल्कि अल्लाह की सहायता करोगे, तभी अल्लाह तुम्हारी सहायता करेगा, और अल्लाह अगर चाहते तो खुद ही मिटा देते उन्हें, जो अल्लाह के बंदे न बने। पर वह तो तुम्हारी परीक्षा लेना चाहता है ताकि तुम्हें जन्नत दे सके।

सीता राम गोयल लिखते हैं - सदियों से मुसलमानों को, इस्लाम की जिस बात ने आकर्षित किया है, वह बात कुछ और ही है। जन्नत की खूबसूरत कुमारियों का झुंड। कुमारियाँ जिनकी उम्र कभी नहीं बढ़ती और जिनका आकर्षण कभी नहीं घटता। जो कभी नहीं थकते नए-नए मज़े देने में और ढेर सारे मज़े देने में। यह सब मिलता है केवल उनको जो इस्लाम के लिए जीए और इस्लाम की खातिर मरे। जन्नत के बारे में कामुकता भरे और चटकीले विवरणों से भरा पड़ा है इस्लाम के ज्ञान का पूरा साहित्य, कुरआन और हदीस से आरंभ कर ISBN 8185990581, प्राक्कथन पृष्ठ 15

मैंने एक बार एक कार्टून देखा था। गधे का मालिक जो गधे की पीठ पर बैठा था, उसने एक डंडी से गाजर लटका दिया था। वह गधे की पीठ पर बैठा उस डंडी को थामे था, कुछ इस ढंग से कि उस डंडी से झूलता हुआ गाजर, ठीक गधे के नाक के सामने झूल रहा था। गाजर गधे की नज़रों के सामने था, और गधे की आस उस पर टिकी हुई थी। गधा चलता जा रहा था, इस धुन में कि कब गाजर उसके मुख में आए। पर गधे की किस्मत देखो, उसके नाक के, और गाजर के, बीच की दूरी घटती ही नजर नहीं आती। गधा तो आखिर गधा ही था, वह चलता ही चला जा रहा था, कुछ इस आस में, कि कभी तो गाजर खाने को मिलेगा।

कुरआन सूरा 8 अल-अनफ़ाल आयत 12 जो मेरे अनुयायी नहीं हैं, मैं उनके दिलों में दहशत भर दूँगा। उनके सर धड़ से अलग कर दो, उनके हाथ और पाँव को इस कदर जखमी कर दो कि वे किसी भी काम के लायक न रह जायें ISBN 8185990581, पृष्ठ 256

कुरआन सूरा 8 अल-अनफ़ाल आयत 15-18 वो तुम नहीं, बल्कि अल्लाह था, जिसने हिंसापूर्ण ढंग से उन्हें मार डाला। वह तुम नहीं थे जिसने उन पर दृढ़ता पूर्वक प्रहार किया। अल्लाह ने उन पर दृढ़ता पूर्वक प्रहार किया ताकि वह तुम जैसे अनुयायी को भरपूर पुरस्कार दे सके ISBN 8185990581, पृष्ठ 257

गाजर सदा नज़रों के सामने, पुरस्कार का वादा भी। अगर तुम मुसलमान नहीं बनते तो अल्लाह तुम्हारे दिलों मे इतना खौफ (डर) भर देगा कि तुम मजबूरन मुसलमान बनने के लिए तैयार हो जाओगे। यह संदेश है गैर-मुसलमानों के लिए, और साथ ही, संकेत है मुसलमानों के लिए कि उन्हें कैसे पेश आना चाहिए गैर-मुसलमानों के साथ।        

और उनके मन में जरा भी शंका उपजे कि यह सब उचित नहीं, उनका जमीर उन्हें कचोटे कि यह इंसानियत न होगी, तो इसकी भी व्यवस्था है कुरआन में। यह हिंसा तुम्हारा किया-कराया नहीं है, यह तो खुदा का कहर है जो बरसा उन पर, जिन्होंने खुदा का बंदा बनने से इंकार किया। मत सोचो, खुदा के बंदों, कि यह सब तुमने किया। नहीं, तुमने नहीं, अल्लाह ने किया, तुम्हारे द्वारा।

कुरआन सूरा 48 अल-फ़त्ह आयत 29 मुहम्मद अल्लाह के पैगंबर हैं। जो उनका अनुसरण करते हैं वे गैर-मुसलमानों के प्रति बेरहम होते हैं पर एक दूसरे (मुसलमानों) के प्रति कृपालु होते हैं ISBN 8185990581, पृष्ठ 258

अर्थ स्पष्ट है, मुसलमान मुसलमान का हमदर्द होगा, पर हिंदुओं के लिए बेरहम होगा। पर आजकल आधा सच कहकर, झूठ को सच का रूप देना, फैशन बन गया है। सन 2002 के आरम्भ के दिनों में मैंने लगभग एक महीने तक दैनिक एशियन एज लिया था। उसमें मलेशिया के प्रधान मंत्री का एक पत्र छपा था। उन्होंने विश्व भर के सभी मुसलमानों को एक जुट होने का आवाहन दिया था। उन्होंने कहा था कि कुरआन सिखाता है कि मुसलमान दूसरों के प्रति करुणामय हो। इसे पढ़ कर पाठक को लगता है कि कुरआन दया सिखाता है। जब पाँच लोग मीडिया का प्रयोग कर, इस प्रकार की बातें अलग-अलग ढंग से कहते हैं, तो साधारण हिंदू को लगता है कि यही सत्य होगा, क्योंकि इतने सारे लोग गलत तो नही हो सकते, विशेषकर तब जब उनमें से कई नामी-गरामी बड़े-बड़े पढे-लिखे लोग हों।

ध्यान रखें ईसाई-अँग्रेज़ी शिक्षा पद्धति एवं कॉम्युनिस्ट शिक्षा पद्धति में पढ़े-लिखे लोग ही सत्य को असत्य एवं असत्य को सत्य बनाने में सबसे अधिक माहिर होते हैं। उन्होंने आधा सत्य तो बता दिया पाठकों को कि कुरआन रहम करना सिखाता है पर यह बताना भूल गए (या फिर जान-बूझ कर छिपा गए) कि दया केवल मुसलमान-मुसलमान के लिए है, क्योंकि यदि ऐसा न हुआ तो मुसलमान-मुसलमान कट मरेंगे। वह पाठकों से यह बात साफ छिपा गए कि उसी वाक्य में कुरआन यह भी कहता है कि मुसलमान हिंदू के लिए बेरहम होगा, क्रूर होगा।

कुरआन सूरा 8 अल-अनफ़ाल आयत 12 पैगंबर, युद्ध बंदी तब तक न बनायेगा, जब तक वह, उस जमीन पर कत्लेआम न कर ले ISBN 8185990581, पृष्ठ 259

यह पर्याप्त नहीं कि यदि गैर-मुसलमान हथियार डाल दें तो उन्हें बन्दी बना लिया जाये। नहीं, बंदी तब तक न बनाये जायेंगे जब तक ढेर सारे लोगों को कत्ल न कर दिया जाये। खून की प्यास इतनी गहरी कि जीत ही काफी नहीं, बल्कि उनका कत्ल करना जरूरी है, जिनके हाथ में हथियार तक नहीं।

अन्य पुस्तिकाओं के माध्यम से, हम आपको भारत के उस इतिहास से परिचित करायेंगे, जो आपको बतायेगा, कब, कहाँ, कैसे, इस्लाम के अनुयायियों ने, इस्लाम की हर शिक्षा पर अमल कर, उन राहों पर चल कर, उन्हें वास्तविकता का जामा पहनाया।

जब और भी आगे बढ़ेंगे तो आपको आज की सत्य घटनाओं से भी अवगत करायेंगे, जो आप को बतायेगा कि यह सब केवल अतीत की भूली-बिसरी बातें नहीं हैं, बल्कि आज की सच्चाइयाँ हैं, जो आज भी घट रही हैं, आप से अधिक दूर नहीं, आपकी दहलीज के उस पार ही। केवल ये बातें आप तक पहुँचती नहीं, क्योंकि समाचार वितरण की जो संस्थायें हैं, उनके लिए इन खबरों को दबा देना अधिक लाभप्रद जान पड़ता है। खबरों को आप तक पहुँचा कर उन्हें जो मिलेगा वह कौड़ी के समान है, उसकी तुलना में जो उन्हें मिलता रहा है खबरों को दबा कर।

कुरआन सूरा 4 अन निसा आयत 91 वे जो पीठ मोड़ लें, उन्हें पकड़ो जहाँ भी उन्हें पाओ, और उन्हें हिंसा पूर्वक कत्ल कर डालो ISBN 81-900199-8-8 पृष्ठ 93

यह आयत उन लोगों के संदर्भ में है, जो इस्लाम कबूल करने के बाद, उसे छोड़ कर अपने पुराने धर्म की ओर वापस चले जाते हैं। अतः अल्लाह तक आपका रास्ता केवल एक तरफा है। आप आगे तो जा सकते हैं, पर पीछे मुड़ कर वापस नहीं आ सकते।

आप केवल जान से ही हाथ नहीं धोएंगे, बल्कि तकलीफ के साथ ही जान गवाँयेंगे। इसलिए जो एक बार मुसलमान हो गया, वह समझ लो सदा के लिए मुसलमान हो गया। क्या ये बातें सिर्फ कुरआन तक ही सीमित रही हैं, या उन्हें अंजाम तक भी पहुँचाया गया है? आइए देखें।

हदीस

इस्लाम के दो अंग हैं। एक कुरआन और दूसरा हदीस। कुरआन है अल्लाह का पैगाम हर मुसलमान के नाम। हदीस है अल्लाह के किए गए काम, पैगंबर मुहम्मद के जरिएकुरआन यदि अल्लाह की आवाज़ है तो हदीस अल्लाह का जीता-जागता नमूना। पैगंबर ने क्या किया, कब किया, कहाँ किया, कैसे किया, किसको किया, क्यों किया, यह सब बड़ी ही ईमानदारी एवं बड़े ही गर्व के साथ लिपिबद्ध किया गया है हदीस में। जो लिखा है हदीस में वह सुन्ना बन गया और हर मुसलमान का फर्ज बन गया कि कयामत तक उनका अनुकरण करे।

हदीस के उद्धरण जिस पुस्तक से दिए गए हैं उसका शीर्षक है एमिनेन्ट हिस्टोरियन्स, देयर टेक्नॉलॉजी, देयर लाइन, देयर लेखक अरून शोउरी आइएसबीएन 8190019988, 1998

साहीह बुखारी 82.794-7 एवं साहीह मुस्लिम 4130-7 पैगंबर ने उन्हें पकड़वाया। उसके बाद उन्होंने आदेश दिया कि उनके हाथ और पाँव काट दिए जायें, उनकी आँखों में गर्म लोहे के सलिए घुसेड़ दिए जायें। उन्होंने आदेश दिया कि हाथ-पाँव के जख्मों को खुला छोड़ दिया जाये ताकि खून रिसता रहे उनके मरते दम तक। और जब उन्होंने पानी माँगा, तो उन्हें पानी नहीं दिया गया ISBN 81-900199-8-8 पृष्ठ 94

यह सजा दी गई थी, उक्ल जनजाति के कुछ लोगों को, जो इस्लाम कबूल करने के बादइस्लाम को छोड़ गए।

साहीह बुखारी 84.057 जो भी इस्लाम को छोड़ दूसरा धर्म अपनाये, उसका कत्ल कर डालो ISBN 81-900199-8-8 पृष्ठ 93-94 

इस पुस्तक का अंतर्राष्ट्रीय मानक पुस्तक संख्या है ISBN 978-81-89746-14-8 एवं 81-89746-14-6