शास्त्री माधवप्रियदास, स्वामीनारायण गुरुकुल, राजकोट, गुजरात, 19 जनवरी 2006
"यह पुस्तिका
आँखों को खोलने वाली है। कुरआन की ये निष्ठुर बातें बड़ी दुःखद एवं आश्चर्यकर हैं। इस पुस्तिका को पढ़ कर अन्तर में भारी व्यथा हो रही है कि क्या कोई धर्म अपने अनुयायी को इस हद तक क्रूर एवं निष्ठुर बना सकता है?
और बनाता है तो क्या वह धर्म है?"
श्री रवि कान्त खरे (बाबाजी), लखनऊ, उ प्र, 20 दिसम्बर 2005
"आपका प्रयास सराहनीय है। यह क्रम चलता रहना चाहिए। सारांश में सभी जानने योग्य बातें इस पुस्तिका में आ गई हैं। बहुत से हिन्दू विद्वान तो इन बातों से अवगत हैं, किन्तु सामान्य हिन्दू जनता इन बातों से अनभिज्ञ है। इस तरह की पुस्तक गाँवों में भी पहुँचनी चाहिए। ... भगवान आप को शक्ति दें, स्वस्थ रखें और शतायु करें। आप इसी तरह समाज को कुछ देते रहें।"
गौरव शिंदे, इयत्ता 9, निगडी, पुणे, 13 मार्च 2006
"मनोज दादाजी, मैं गौरव शिंदे, इयत्ता 9वी में पढ़ता हूँ। मैंने आपकी पूस्तीका पढ़ी है। उसका नाम है "इस्लाम अपने अनुयायियों को क्या सिखाता है? और उसे जानना हिन्दुओं को कितना आवश्यक है"। यह इस पुस्तक का 3रा भाग है। यह पढ कर मुझे बहुत अच्छा लगा यह तिसरा भाग पढ कर मुझे इतना अच्छा लगा तो न जाने पहला और दुसरा पढने के बाद कितना अच्छा लगे। अभी ऐसे किताब लिखने में कोई धैर्य नहीं दिखाता। आप पर मुझे नाज़ है। मुझे ऐसे और किताब पढ़ने का इच्छा है। क्योंकी, मैं मेरे राष्ट्र के लिए कुछ करना चाहता हूँ। आपने ही धर्म के लोग हमारे धर्म के बारे में भूल गए है आपने इसकी (जाणीव) कराके दी है। मुझे पत्र लिखने नहीं आता है। यह मैं पहली बार आपको ही पत्र लिख रहा हूँ। भाषा में कुछ गलतियाँ हो तो माफ किजीए।"
इयत्ता 9 = छात्र कक्षा
9 एवं जाणीव = ज्ञान,
बोध। आज हमें आवश्यकता है नई पीढ़ी के इन
जागरूक बच्चों की जो बनेंगे
नव-भारत के निर्माता। इन्हें राह दिखाना एवं
सत्य से अवगत कराना हमारा कर्तव्य है।
हम यदि चूकें अपने दायित्व
से तो उन्हें दोष देने का अधिकार हम खो बैठेंगे। हमें पहले अपना कर्तव्य
निभाना है और फिर उनसे कोई आशा करनी है — लेखक
श्री भूपेन्द्र प्रसाद सिंह (व्याख्याता), पूर्णियाँ, बिहार, जनवरी 2006
"इस्लाम अपने अनुयायियों को क्या सिखाता है" एवं "यदि सत्य का ज्ञान होता आपको" सौ बार से अधिक ही पढ़ा है। पर मन नहीं भरा है। जिज्ञासा शांत नहीं हो रही है; और बढ़ती ही जा रही है। इस मन को कैसे बुझाऊँ, यह समझ में नहीं आ रहा है। हे हिन्दू धर्म विशारद! तेरा कल्याण हो! भगवद सिर्फ़ आपका ही नहीं वरन आपके सम्पूर्ण सहयोगी के समस्त परिवार का कल्याण करें। धन्यवाद! ऐसे धर्मद्रष्टा का। निस्संदेह आप पूज्यतम पवित्रतम एवं पुण्यतम हिन्दू-पुत्र हैं, जिन्होने हिन्दुओं को अगाह करते हुए चेताया है कि - ऐ हिन्दुओं! समय रहते जागो, पहचानो अपने धर्म को; अपने कर्म को; और अपने आचरण को, वरना तेरा सत्यानाश अवश्यम भावी है। सामने खतरा मंडरा रहा है। भोले-भाले हिन्दुओं को इन राजनीतिक दलों ने झूठे लुभावने बातों से खंड-खंड बाँट दिया है; जिसका परिणाम - गोदरा - कश्मीरी हिन्दुओं का वध एवं बंगलादेश तथा पाकिस्तान में हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन है। मान्यवर! धन्य हैं वो पिता जिनके आप पुत्र हैं। सचमुच कितनी भाग्यशालिनी है प्रातः स्मरणीय वो माता जिन्होंने आपके जैसा पुत्र को जन्म देने का गौरव प्राप्त किया है। वैसा पुत्र जिन्होने सम्पूर्ण हिन्दुसमाज को वास्तविक सत्यता से साक्षातकार करवाया है। महोदय! मनुष्य अपना चेहरा स्वयं नहीं देखता, उसे देखने के लिए दर्पण की आवश्यकता पड़ती है। अतएव आपको कोटिशः प्रणाम और प्रभु आपको ऐसी प्रेरणा देते रहें ताकि आप हमें वास्तविकता से साक्षातकार करवाते रहें।"