मज़हब ही सिखाता है आपस में बैर करना

स्तुति / समर्पण

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु में देव शुभकार्येषु सर्वदा।।

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता, या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर् देवैस्सदावन्दिता, सा माम् पातु सरस्वती भगवती निश्शेषजाड्यापहा।।

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

कायेन वाचा मनसेन्द्रिऐवा बुध्यात्मना वा प्रकृते स्वभावात।
करोमि यद् यद् सकलं परस्मै नारायणायेति समर्पयामि।।

पुस्तक समीक्षा 2006 संस्करण पर आधारित

श्री श्रुतिवन्त दुबे 'विजन', राष्ट्रपति पदक प्राप्त, राष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित, विद्यावाचस्पति (मा0), जिला अध्यक्ष इण्डियन प्रेस कौंसिल, जिला सीधी, मध्य प्रदेश, दिनांक 6 मार्च 2006

"मानोज रखित की कृति "मज़हब ही सिखाता है आपस में बैर करना" मेरे हाथ में है। अभी तक मैंने पढ़ा था मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर करना और अपने इस दृष्टिहीन ज्ञान को सगर्व प्रचारित भी करता आया हूँ। किन्तु आज समझा कि मैने तोतारटन्त इस पुस्तैनी अज्ञान को विरासत में पाया और श्रृंखला का सूत्र बनता रहा। "मैं" हूँ व्यक्ति, चर समष्टि का प्रतीक हूँ, एक सिम्बल हूँ। इसलिए यह अज्ञान भी व्यक्ति तक सीमित न होकर समूह का सच है।
कृति धर्म पर चढ़ी आदर्श की कलई को खोलती धर्म के काले चेहरे को उजागर करती है। लेखक की कलम धर्म का पोस्टमार्टम करती है तथा अंग-प्रत्यंग चिंतन के द्वार पर सोचने के लिए छोड़ देती है। ऐ वे सच्चाईयाँ हैं जो पाठक की सोच को बदल सकती हैं। अन्य मज़हबों की संकीर्णता, कट्टरता, दुराग्रहता तथा हिंसात्मकता का बयान करता लेखक सनातन धर्म की वैज्ञानिकता और सर्वग्राह्यता का भौतिक खुलासा करता है।
पुस्तक धर्म का फ़ोटोग्राफ़ है, लेखक एक फ़ोटोग्राफ़र। जो मज़हब के चेहरे को हू-बहू दर्शक के सामने रख दिया है। फ़ोटोग्राफ़र फ़ोटो में अपना कुछ नहीं देता। लेखक ने भी नहीं दिया, पर सोचने के लिए जगह दिया है। इसीलिए वह कहता है - मुझमें अब कोई इच्छा नहीं रही, कि मैं उन व्यक्तियों को समझाने में, अपना समय एवं अपनी उर्जा नष्ट करूँ, जो मेरी बात को समझने की स्थिति तक, अभी नहीं पहुँचे। ऐसे व्यक्ति इन लेखों कि महत्ता को तभी समझेंगे जब पानी सर तक आ पहुँचेगा, एवं डूबने की संभावना उन्हें बहुत ही निकट से दिखने लगेगी।
और लेखक का इच्छाराहित्य ही संगठन का प्राबल्य है। यही पाठक का आमंत्रण है जहाँ वह चिन्तन के लिए जगह पाता है। इस छोटी सी पुस्तक में बाइबिल ओल्ड व न्यू टेस्टामेन्ट, ईसाई गॉस्पेल, कुरआन और उनकी आयतें तथा सनातन धर्म का निष्पक्ष व निष्काम भाव से यथारूप, यथा आदेश एवं उपदेश प्रस्तुत किया गया है। मज़हब के खेमे में घुटती मानवीयता की पीड़ा ही लेखक का लेखन, सत्यकथन, अध्ययन एवं अध्यात्म है, लेखक की नज़रों ने मज़हब के खंजरों से असहायों, निरीहों, बेगुनाहों के कटते सिर देखा है, बस्तियों की जलती होली देखी है, खून की नदियों में उफ़ान देखा है। यही कारण है कि भावों का साधक चिन्तन के कर्म-मठ में साधनारत होकर सत्यधर्म के द्वार पर पहुँचता है। इस पहुँच में न खीझ है, न उदासी है, न कचोट है, न हथौड़ा प्रहार का कोई आग्रह। वह शान्त निर्लिप्त भाव से अपने अध्ययन के निष्कर्ष धर्मसार को पाठक के मन मस्तिष्क में निचोड़ देता है, जो धीरे-धीरे रिसता हुआ पाठक की सोई हुई चेतना को बिना आवाज के ही जागृत करता है। यह जागृति ही लेखक को अभीष्ट है।
लेखक कोई उपदेशक नहीं, पर मानव धर्म का रक्षक है। इसीलिए उसका पहला और अन्तिम संदेश - यदि अपने हितों की सुरक्षा चाहते हो तो पहले सनातन धर्म के हितों की रक्षा करो - है। यह कोई उपदेश नहीं, बल्कि आत्मक्लेश व धर्मक्लेश है।
अपने अध्ययन व चिन्तन से लेखक ने निष्कर्ष निकाला है कि - मज़हब ही सिखाता है आपस में बैर करना - सटीक एवम् तर्कसंगत है। पर सनातन धर्म ही मानव धर्म है जिसमें --सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया--के भाव-पुष्प चिन्तन-उद्यान में विहँसते रहते हैं।
कुल मिलाकर, कृति संप्रेषणीय, पठनीय एवम् संग्रहणीय है। पाठक पुस्तक खोजकर पढ़ें, मेरी अपील है।"

बस केवल एक झलक देख लें

बचपन से मैं सुनता आया था —

पवित्र बाइबिल की शिक्षायें

अनुवादक के रूप में मेरा कर्तव्य बनता है कि मैं, अपनी योग्यता के अनुसार, अंग्रेज़ी मूल से यथासम्भव उचित समानार्थक हिन्दी शब्दों एवं वाक्यों का चयन कर ही अनुवाद प्रस्तुत करूँ ताकि मूल भाव बरकरार रहे

निम्नोक्त उद्धरणों के स्रोत—होली बाइबल, वैटिकन / पोप द्वारा प्राधिकृत संस्करण किंग जेम्स वर्ज़न, पाइलट बुक्स, एथेन्स, जॉर्जिया, ब्रॉडमैन ऐंड हॉलमैन पबलिशर्स, बेलजियम, 1996, ISBN 0840036254

अंग्रेज़ी-हिन्दी अनुवाद हेतु प्रयुक्त शब्दकोश—अंगरेजी-हिन्दी कोश, फ़ादर कामिल बुल्के, काथलिक प्रेस, राँची, 1968 तथा राजपाल अंग्रेज़ी-हिन्दी शब्दकोश, डॉ हरदेव बाहरी, राजपाल एण्ड सन्ज़़, दिल्ली, 2005

ऑक्सफ़ोर्ड शब्दकोश बृहत संस्करण ISBN 0195654323 के अनुसार ईसाई बाइबिल (उच्चारण बाइबल) का प्रथम भाग ओल्ड टेस्टामेंट यहूदी मूल का है। यहूदी धर्म की शिक्षायें इसमें सन्निहित हैं जो ईसाई धर्म को भी मान्य हैं। ईसाई बाइबिल के किंग जेम्स वर्ज़न को ईसाई पोप की मान्यताप्राप्त है। इसमें सन्निहित शिक्षाओं में से हम कतिपय उद्धरण यहाँ प्रस्तुत करेंगे जो यहूदी तथा ईसाई धर्म के बारे में आपकी मान्यताओं को एक नई दिशा देगी।

यहूदी मूल का पवित्र बाइबिल—ओल्ड टेस्टामेंट—डिउटेरॉनॉमी

12:1 ये हैं (बाइबिल के) गॉड (ईश्वर) के विधान (कानून) जिनका तुम पालन करोगे तब तक जब तक तुम इस पृथ्वी पर जिओगे। 12:2 तुम पूरी तरह विनाश कर दोगे उन सभी स्थानों का जिन पर तुमने अधिकार किया, यदि वहाँ के लोग किसी भी अन्य भगवान की पूजा करते हों, चाहे वे ऊँचे पर्वतों पर बसते हों, या पहाड़ियों पर, या फिर हरी-भरी वादियों में 12:3 और तुम उनके पूजा की वेदियों को विध्वंश कर दोगे, उनके पूजा के स्तम्भों को तोड़ दोगे, उनके उपवनों को जला दोगे, उनके देवी-देवताओं के अंकित चित्रों को चीर डालोगे, गढ़ी हुई मूर्तियों को काट डालोगे, उनका नाम तक वहाँ से मिटा डालोगे

13:6 यदि तुम्हारा सगा भाई जो है तुम्हारी अपनी माँ का बेटा, या तुम्हारा पुत्र, या तुम्हारी पुत्री, या तुम्हारी पत्नी जो तुम्हारे हृदय में बसती हो, या तुम्हारा वह मित्र जो तुम्हारी अपनी आत्मा के समान है — इनमें से यदि कोई तुम्हें चुपके से फुसलाए कि चलो हम चल कर दूसरे धर्म के भगवान की पूजा करें जो न तुम्हारे भगवान हैं न तुम्हारे पूर्वजों के 13:8 न तुम अपनी सहमति दोगे, न तुम उसकी बात सुनोगे, न तुम्हारी नज़र में उसके प्रति दया होगी, न तुम उसे क्षमा करोगे, न तुम उसे छुपाओगे 13:9 तुम उसे अवश्य ही मार डालोगे, तुम्हारा हाथ वह पहला हाथ होगा जो उसे मृत्यु के द्वार तक पहुँचाएगा, उसके पश्चात दूसरे लोगों के हाथ उस पर पड़ेंगे 13:10 और तुम उसे पत्थरों से मारोगे ताकि वह मर जाए क्योंकि उसने तुम्हें तुम्हारे अपने भगवान से दूर ले जाने की चेष्टा की

20:16 उन शहरों को जिनका तुम्हें तुम्हारे भगवान ने उत्तराधिकारी बनाया, उन शहरों के लोगों में से किसी को भी साँस लेता न छोड़ना 20:17 उन्हें पूर्णतया नष्ट कर देना।

32:24 उन्हें भूख से तड़पाओ और जलती हुई आग की लपटों को निगल जाने दो उनके शरीरों को, उनकी मौत अत्यंत दुःखद हो, मैं भी भेजूँगा जानवरों को जिनके दाँत उनके शरीरों पर गड़ेंगे और साँपों को जिनका विष उन्हें धूल चटाएगा 32:25 बिना तलवार के उनके दिलों में आतंक भर दो, नष्ट कर दो जवाँ मर्दों को, कुमारियों को, माँ का दूध पीते नन्हे बच्चों को, और वृद्धों को जिनके बाल पक चुके हों।

यहूदी मूल का पवित्र बाइबिल—ओल्ड टेस्टामेंट—ईसाइयाह

13:16 उनकी आँखों के सामने उनके बच्चों को पूरी शक्ति के साथ उठा कर पटको ताकि उनके टुकड़े-टुकड़े हो जायें, उनकी पत्नियों का बलात्कार करो।

यहूदी मूल का पवित्र बाइबिल—ओल्ड टेस्टामेंट—नम्बर्स

31:17 बच्चों में प्रत्येक नर का कत्ल कर डालो और प्रत्येक उस स्त्री का भी जिसने किसी पुरुष के साथ सहवास किया हो 31:18 पर उन सभी मादा बच्चों को जिन्होंने किसी पुरुष के साथ सहवास न किया हो, उन्हें अपने लिए जीवित रखो

यहूदी मूल का पवित्र बाइबिल—ओल्ड टेस्टामेंट—एक्सोडस

23:24  तुम दूसरों के गॉड (ईश्वर) के सामने न तो झुकोगे और न उनकी सेवा करोगे, बल्कि उन्हें पूरी तरह से विध्वंश कर दोगे, उनकी मूर्तियों तोड़-फ़ोड़ कर नष्ट कर दोगे।

34:13 तुम उनकी पूजा की वेदियों ध्वंश कर दोगे, उनकी मूर्तियों को तोड़ दोगे, उनके उपवनों को काट डालोगे 34:14 तुम किसी भी दूसरे भगवान की सेवा न करोगे क्योंकि लॉर्ड, जिसका नाम ईर्ष्यालु है वह एक ईर्ष्यालु ग़ॉड हैं।

यहूदी मूल का पवित्र बाइबिल—ओल्ड टेस्टामेंट—नाहुम

1:2 गॉड ईर्ष्यालु हैं, और लॉर्ड बदला लेते हैं; जब लॉर्ड बदला लेते हैं तो वह क्रोधोन्मत्त हो जाते हैं; लॉर्ड प्रतिशोध लेंगे अपने विरोधियों से; वे अपना क्रोध बरसाते हैं अपने शत्रुओं पर।

ईसाई मूल का पवित्र बाइबिल—निउ टेस्टामेंट—मैथ्यू

संत मैथ्यू ईसा मसीह के बारह मुख्य शिष्यों में से एक थे और उन्होंने ईसा से जो सुना और सीखा उसे गॉस्पेल में लिपिबद्ध किया। गॉस्पेल कहते हैं ईसा की जीवनी एवं उनकी शिक्षाओं के संकलन को। सुनिए ईसा की कथनी मैथ्यू की जबानी —

10:34 न सोचो कि मैं आया हूँ विश्व में शांति लाने के लिए, मैं आया हूँ शांति के लिए नहीं बल्कि तलवार लिए 10:35 क्योंकि मैं आया हूँ आदमी को अपने पिता के विरुद्ध खड़ा करने, पुत्री को माता के विरुद्ध, बहू को सास के विरुद्ध 10:36 मनुष्य का शत्रु होगा उसका अपना परिवार

ईसाई मूल का पवित्र बाइबिल—निउ टेस्टामेंट—ल्यूक

संत ल्यूक बाइबिल में एक गॉस्पेल (ईसा की शिक्षाओं) के लेखक हैं।

12:51 तुम समझते हो कि मैं आया हूँ इस धरती को अमन चैन देने? मैं तुम्हें बताता हूँ - नहीं। मैं आया हूँ बँटवारा करने 12:52 क्योंकि अब से घर में पाँच बटे होंगे - तीन दो के विरुद्ध - दो तीन के विरुद्ध 12:53 पिता होगा पुत्र के विरुद्ध - पुत्र होगा पिता के विरुद्ध - माँ होगी पुत्री के विरुद्ध - पुत्री होगी माता के विरुद्ध - सास होगी बहू के ख़िलाफ़ - बहू होगी सास के ख़िलाफ़।

14:26  यदि एक व्यक्ति मेरे पास आता है और वह अपने पिता से घृणा नहीं करता - एवं माता से, पत्नी से, संतानों से, भाई-बहनों से, एवं अपने-आप से भी - तो वह मेरा शिष्य नहीं बन सकता

ईसाई मूल का गॉस्पेल ऑफ थॉमस

संत थॉमस ईसा मसीह के बारह मुख्य शिष्यों में से एक थे और उन्होंने ईसा से जो सुना और सीखा उसे गॉस्पेल में लिपिबद्ध किया। सुनिए ईसा की कथनी थॉमस की जबानी —

16 ईसा ने कहा संभवतः लोग सोचते हैं कि मैं आया हूँ विश्व में शांति स्थापना हेतु - वे नहीं जानते कि मैं आया हूँ इस धरती पर फूट डालने के लिए - आग, तलवार और युद्ध फैलाने के लिए - जहाँ पाँच होंगे एक परिवार में - वहाँ तीन होंगे दो के विरुद्ध और दो होंगे तीन के विरुद्ध - पिता होगा पुत्र के विरुद्ध और पुत्र पिता के - और वे डटे रहेंगे क्योंकि वे दोनों अपने आप में अकेले होंगे

56 जो अपने पिता से घृणा नहीं करेगा और अपनी माता से भी, वह मेरा शिष्य नहीं बन सकता। वह जो अपने भाइओं एवं बहनों से घृणा नहीं करेगा, और अपना क्रॉस नहीं ढोयेगा जैसा कि मैंने किया है, वह मेरे योग्य न बन पायेगा।

पवित्र कुरआन की शिक्षायें

निम्नोक्त उद्धरणों के स्रोत— (1) कुरआन मजीद, हिंदी अनुवाद मुहम्मद फ़ारुक खाँ, अँग्रेज़ी अनुवाद मु0 मा0 पिक्थाल, मक्तबा अल-हसनात, दरिया गंज, नई दिल्ली, 2003, ISBN 818663200X (2) कोलकाता उच्चन्यायालय में प्रस्तुत की गई रिट याचिका 227 ऑफ 1985, द कैलकटा कुरान पेटिशन, वॉयस ऑफ इंडिया, नई दिल्ली, 1999, ISBN 8185990581 (3) कुरआन मजीद, हिंदी अनुवाद हज़रत मौलाना अब्दुल करीम पारेख साहब, एजुकेशनल पबलिशिंग हाउस, लाल कु आँ दिल्ली, इंडिया रिलिजस बुक सेंटर, नागपुर (4) एमिनेंट हिस्टोरियन्स, अरुण शोउरी, ए एस ए, नोयडा, 1998, ISBN 8190019988(5) अ हिंदू विउ ऑफ द वर्ल्ड, एन एस राजाराम, वॉयस ऑफ इंडिया, नई दिल्ली, 1998, ISBN 8185990522

कुर'आन सूरा 2 अल'बकरा

आयत 193 तब तक उनसे लड़ते रहो जब तक मूर्ति पूजा बिल्कुल खत्म न हो जाये और अल्लाह का मज़हब सबपर राज करे  216 लड़ना तुम्हारी मजबूरी है, चाहे तुम कितना भी नापसंद करो इसे (ISBN 8185990581)  

टिप्पणी— सूरा (अध्याय) अल'बकरा (शीर्षक) आयत (श्लोक)

कुर'आन सूरा 4 अन'निसा

आयत 91 वे जो पीठ मोड़ लें, उन्हें पकड़ो जहाँ भी उन्हें पाओ, और उन्हें हिंसा पूर्वक कत्ल कर डालो (ISBN 8190019988)

आयत 56 वे जो अल्लाह के आदेश को नहीं मानते हैं, हम उन्हें आग में झोंक देंगे और जब उनकी चमड़ी पिघल जाए तो हम उनकी जगह नई चमड़ियाँ डाल देंगे ताकि उन्हें स्वाद मिले यंत्रणा का। अल्लाह सबसे अधिक शक्तिमान हैं एवं विवेक पूर्ण हैं (ISBN 818663200X)

कुर'आन सूरा 8 अल'अन्फ़ाल

आयत 12 जो मेरे अनुयायी नहीं हैं, मैं उनके हृदयों में आतंक भर दूँगा। उनके सर धड़ से अलग कर दो, उनके हाथ और पाँव को इस कदर जखमी कर दो कि वे किसी भी काम के लायक न रह जायें 15 से 18 तक वो तुम नहीं, बल्कि अल्लाह था, जिसने हिंसापूर्ण ढंग से उन्हें मार डाला। वह तुम नहीं थे जिसने उन पर दृढ़ता पूर्वक प्रहार किया। अल्लाह ने उन पर दृढ़ता पूर्वक प्रहार किया ताकि वह तुम जैसे अनुयायी को भरपूर पुरस्कार दे सके 39 तब तक उन पर हमला करते रहो जब तक मूर्ति पूजा का नामों निशाँ न मिट जाये और सब अल्लाह के मज़हब के अधीन न हो जायें 67 पैगंबर, युद्ध बंदी तब तक न बनायेगा, जब तक वह, उस जमीन पर कत्लेआम न कर ले (ISBN 8185990581)

कुर'आन सूरा 9 अत'तौबा

आयत 2-3 अल्लाह एवं उनके पैगंबर मुक्त हैं, किसी भी दायित्व से, मूर्ति पूजकों के प्रति... उन्हें ऐसी सजा दो कि वे शोक ग्रस्त हो जायें (ISBN 8185990581)

आयत 5 जब हराम महीने बीत जायें तो मूर्तिपूजकों को कत्ल कर डालो जहाँ भी पाओ उन्हें। छिप कर घात लगाये बैठे रहो उन पर आक्रमण करने के लिए। उन्हें घेर लो और बन्दी बना लो। यदि उन्हें मूर्तिपूजक होने का पछतावा हो और वे इस्लाम कबूल कर लें, नमाज़ पढ़ें, ज़कात (कर) दें तब उनका मार्ग छोड़ दो। अल्लाह ने उन्हें क्षमा किया और उन पर दया की (ISBN 8185990522)

आयत 7 अल्लाह और उनके पैगंबर मूर्ति पूजकों को विश्वास की दृष्टि से नहीं देखते 39 ऐ मुसलमानों, अगर तुम युद्ध न करो तो अल्लाह तुम्हें कड़ी सजा देगा और तुम्हारी जगह पर दूसरे आदमी को लायेगा 41 चाहे तुम्हारे पास हथियार हों या न हो, चल पड़ो और लड़ो अल्लाह की खातिर, अपने धन और अपने शरीर के साथ 73 ओ पैगंबर! जो मुझमें विश्वास नहीं करते, उनसे युद्ध छेड़ो। उन पर कठोर बनो। उनका अंतिम ठिकाना नरक है, एक दुर्भाग्य पूर्ण यात्रा का अंतिम चरण (ISBN 8185990581)

आयत 111 अल्लाह ने खरीद लिया है, अल्लाह पर विश्वास करने वालों से (अर्थात मुसलमानों से), उनकी जिन्दगी और उनकी धन-सम्पत्ति क्योंकि (जन्नत) स्वर्ग उनका होगा - वे लड़ेंगे अल्लाह के लिए, हिंसा पूर्वक कत्ल करेंगे अल्लाह के लिए, और कट मरेंगे अल्लाह के लिए। यह वचन है अल्लाह का तोराह में (यहूदियों का धर्मग्रंथ), गॉस्पेल में (ईसा की जीवनी एवं शिक्षायें), एवं कुरआन में, जिससे वह (अल्लाह) बधें हैं। अल्लाह से बेहतर कौन पूरा करता है अपनी प्रतिज्ञा? आनन्द मनाओ कि यह जो सौदा तुमने किया है (अल्लाह से) यही तुम्हारी सबसे बड़ी उपलब्धि है (ISBN 818663200X)

आयत 123  मुसलमानों, तुम्हारे आस-पास जो भी गैर-मुसलमान बसते हैं, हमला बोल दो उन पर, उन्हें जताओ कि तुम कितने कठोर हो (ISBN 8185990581)

कुर'आन सूरा 22 अल'हज़्ज़

आयत 19-22 आग के परिधान (वस्त्र) बनाये गए हैं उनके लिए जो इस्लाम को नहीं अपनाते। उबलता हुआ पानी उनके सर पर डाला जायेगा ताकि उनकी चमड़ी भी पिघल जाए और वह सब भी पिघल जाए जो उनके पेट में है (अँतड़ियाँ भी)। उन पर कोड़े बरसाये जाएँ, आग में तपते हुए लाल लोहेके बने कोड़ों से (ISBN 8185990581)

कुरआन सूरा 33 अलअहज़ाब

आयत 36 जब अल्लाह एवं उसके पैगंबर ने निर्णय कर लिया है, किसी भी बात पर, तो किसी मुसलमान मर्द या औरत को यह हक नहीं कि वह उस बारे में, कुछ भी कह सके (ISBN 818663200X)

कुर'आन सूरा 47 मुहम्मद

आयत 4 से 15 जब तुम्हारा सामना हो गैर-मुसलमानों से, युद्धभूमि पर, उनके सर काट डालो। जब तुम उन्हें कुचल डालो तो कस कर बाँधो। उनसे धन वसूल करो। उनके हथियार डलवा दो। तुम ऐसा ही करोगे। यदि अल्लाह ने चाहा होता तो वह स्वयं उन्हें नष्ट कर देता, तुम्हारी सहायता के बिना। पर उसने यह आदेश दिया है, ताकि वह तुम्हारी परीक्षा ले सके। और वे जो अल्लाह के लिए लड़ते हुए कट मरेंगे, अल्लाह उनके काम को व्यर्थ न जाने देगा। वह उन्हें जन्नत में बुला लेगा। अल्लाह का वचन है यह। मुसलमानों, यदि तुम अल्लाह की सहायता करते हो, तो अल्लाह तुम्हारी सहायता करेगा, और तुम्हें मज़बूत बनायेगा। पर जो अल्लाह का न होगा वह अनन्त काल तक नरक में सड़ेगा। अल्लाह केवल मुसलमानों की ही रक्षा करेगा। गैर-मुसलमानों का कोई भी रखवाला नहीं। जो सच्चे धर्म (इस्लाम) को अपनायेंगे उन्हें अल्लाह जन्नत में दाखिल करेगा। जो मुसलमान नहीं बनेंगे, वे वही खायेंगे जो जानवर खाते हैं, नर्क उनका घर होगा... वे वहाँ अनन्त काल तक रहेंगे, और खौलता हुआ पानी पिएँगे जो उनकी अँतड़ियों को चीर देगा (ISBN 8185990581) 

कुर'आन सूरा 48 अल'फ़तह

आयत 29 मुहम्मद अल्लाह के पैगंबर हैं। जो उनका अनुसरण करते हैं वे गैर-मुसलमानों के प्रति बेरहम होते हैं पर एक दूसरे (मुसलमानों) के प्रति कृपालु होते हैं (ISBN 8185990581)

कुर'आन सूरा 60 अल'मुम्तहना

आयत 4 शत्रुता एवं घृणा ही रहेगी हमारे बीच तब तक जब तक तुम केवल अल्लाह के बंदे न बन जाओ (ISBN 8185990581)

कुर'आन सूरा 66 अत'तहरीम

आयत 9 ओ पैगंबर! जो मुझमें (अल्लाह में) विश्वास नहीं करते, उन पर हमला करो और उनके साथ कठोरता से पेश आओ। नर्क उनका निवास होगा, दुर्भाग्य पूर्ण उनका भाग्य होगा (ISBN 8185990581)

कुर'आन सूरा 69 अल'हक्का

आयत 30-33 उसे पकड़ो और उसे बाँधो। जलाओ उसको नर्क की आग में और उसके बाद बाँधो उसे एक जंजीर से, जो हो सत्तर क्युबिट लंबा, क्योंकि उसने अल्लाह को नहीं स्वीकारा, जो हैं सबसे ऊपर (ISBN 8185990581)

हिन्दू धर्म की शिक्षायें

निम्नोक्त उद्धरणों के स्रोत— (1) श्रीमद्भगवद्गीता, गीता प्रेस, गोरखपुर (2) अ हिंदू विउ ऑफ द वर्ल्ड, एन एस राजाराम, वॉयस ऑफ इंडिया, नई दिल्ली, 1998, ISBN 8185990522 (3) चान्ट्स ऑफ इंडिया, पंडित रवि शंकर, ऐंजेल रेकॉर्ड्स, 2002 (4) सेलेक्शंस फ़्रॉम हिंदू स्कृप्चर्स - मनुस्मृति, प्रोफ़ेसर जी सी असनानी, पुणे, 2000, ISBN 8190040049

श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 9 श्लोक 29

मैं सब भूतों में समभाव से व्यापक हूँ, कोई मेरा अप्रिय है और न प्रिय है; जो भक्त मुझको प्रेमसे भजते हैं, वे मुझमें हैं और मैं भी उनमें प्रत्यक्ष प्रकट हूँ

ऋग्वेद 1-164-46

ब्रह्माण्डीय सत्य एक है परन्तु प्रज्ञावान उसे भिन्न-भिन्न ढंग से अनुभव करते हैं; जैसे इंद्र, मित्र, वरुण, अग्नि, शक्तिशाली गरुत्मत, यम एवं मतरिस्वन (ISBN 8185990522)

शिवमहिम्ना स्तोत्र 3

जिस प्रकार से अनगिनत नदियाँ भिन्न-भिन्न मार्गों से, सीधे या टेढ़े-मेढ़े रास्तों से, बहती हुई अंत में जाकर उसी सागर से मिलती हैं, उसी प्रकार सभी इच्छुक  तुम (ईश्वर) तक जा पहुँचते हैं, अपनी-अपनी चेष्टाओं के द्वारा, अपनी-अपनी रुचि और योग्यता के अनुसार (ISBN 8185990522) 

तैत्रीय उपनिशद, ब्रह्मवल्लि एवं भृगुवल्लि, शांति मंत्र

ईश्वर हम सभी की रक्षा करें। ईश्वर हम सभी का पोषण करें। हम सभी साथ काम करें, एक होकर मानवता की भलाई के लिए। हमारा ज्ञान ज्योतिर्मय हो एवं अर्थपूर्ण हो। हममें एक-दूसरे के प्रति घृणा न हो। चारों तरफ शांति हो, शांति एवं सम्पूर्ण शांति हो (चान्ट्स ऑफ इंडिया)

तैत्रीय अरण्यक, चतुर्थ प्रश्न, प्रवर्ग्य मंत्र, 42वा अनुवाक

पृथ्वी पर शांति हो, आकाश में शांति हो, स्वर्ग में शांति हो, सभी दिशाओं में शांति हो, अग्नि में शांति हो, वायु में शांति हो, सूर्य में शांति हो, चंद्रमा में शांति हो, ग्रहों में शांति हो, जल में शांति हो, पौधों में शांति हो, जड़ी-बूटियों में शांति हो, पेड़ों में शांति हो, गाय-बैलों में शांति हो, बकरियों में शांति हो, घोड़ों में शांति हो, मानवों में शांति हो, ब्रह्म में शांति हो, उन व्यक्तियों में शांति हो जिन्होंने ब्रह्म को पाया हो, शांति हो, केवल शांति हो। वह शांति मुझमें हो, केवल शांति! उस शांति के द्वारा अपने-आपमें शांति स्थायी कर सकूँ, और सभी द्विपादों में एवं चतुर्पादों में। ईश्वर करें मुझमें शांति हो, केवल शांति (चान्ट्स ऑफ इंडिया)

सर्वे शाम

सब का भला हो। सब के लिए शांति हो। सभी पूर्णता के योग्य हों एवं सभी उसकी अनुभूति करें जो शुभ हो। सभी आनन्दित हों। सभी स्वस्थ हों। सभी के जीवन में वह हो जो भला है एवं कोई भी कष्ट में न हो (चान्ट्स ऑफ इंडिया)

तैत्रीय उपनिषद, शिक्षावल्लि, 10वा अनुवाक

देवी-देवताओं एवं पूर्वजों के प्रति अपने दायित्वों की अवहेलना न करो। तुम्हारी माता तुम्हारे लिए एक देवी स्वरूप हों। तुम्हारे पिता तुम्हारे लिए एक देवता स्वरूप हों। तुम्हारे गुरु तुम्हारे लिए एक देवता स्वरूप हों। तुम्हारे अतिथि तुम्हारे लिए एक देवता स्वरूप हों। जहाँ भी तुम दोष रहित कर्मों को किए जाते हुए देखो, केवल उन्हीं का अनुसरण करो, अन्य कर्मों का नहींहम जो तुम्हारे गुरु हैं, जब तुमने देखा है हमें अच्छे कर्म करते हुए तो केवल उन्हीं कर्मों का अनुसरण करो (चान्ट्स ऑफ इंडिया) 

बृहद अरण्यक उपनिषद, प्रथम अध्याय, तृतीय ब्रह्मणा, 28वा मंत्र

हे ईश्वर! कृपया मुझे ले चलो नश्वर से अनश्वर की ओर। ले चलो अज्ञान से ज्ञान की ओर। ले चलो मुझे आवागमन की प्रक्रिया से मुक्त कर मोक्ष की ओर। शांति हो, शांति एवं सम्पूर्ण शांति (चान्ट्स ऑफ इंडिया)

मनु स्मृति

7-90 जब राजा अपने शत्रु से युद्ध भूमि पर लड़े तो वह किसी ऐसे अस्त्र का प्रयोग न करे जो छुपा हुआ हो, कँटीले तारों से बुना हुआ हो, विष बुझा हो, अथवा जिसके फलक से आग लपलपा रही हो 7-91 राजा उस पर वार न करे जो युद्ध भूमि छोड़ कर भाग रहा हो अथवा डर के मारे पेड़ पर चढ़ गया हो। राजा उस पर वार न करे जो नपुंसक हो, या जिसने विनय पूर्वक दोनों हाथ जोड़ लिए हों, अथवा जो युद्ध भूमि से पलायन कर रहा हो, या जिसने घुटने टेक दिए हों और कहता हो कि मैं तुम्हारी शरण में हूँ 7-92 न उस पर जो सो रहा हो, या जिसके कवच खो गए हों, अथवा जो नग्नावस्था में हो, या फिर जिसने हथियार डाल दिए हों, न उस पर जो युद्ध में भाग न लेता हुआ केवल एक दर्शक मात्र हो, न उस पर जो एक दूसरे शत्रु से युद्ध कर रहा हो 7-93 न उस पर जिसके अस्त्र टूट चुके हों, न उस पर जो शोक में डूबा हुआ हो, न उस पर जो भीषण रूप से घायल हो, न उस पर जो आतंकित हो, न उस पर जो युद्ध क्षेत्र से भाग रहा हो। राजा के ध्यान में रहे एक गौरवपूर्ण योद्धा की आचरण-संहिता (ISBN 8190040049)

लेखक के बारे में

मैं न तो किसी संगठन का सदस्य हूँ, न किसी राज नैतिक दल का, न किसी धार्मिक पंथ का। मैं किसी संस्था के बंधनों में अपने को जकड़ा हुआ पाना नहीं चाहता हूँ। न ही मुझमें कोई अभिलाषा है राजनीति के दलदल में फँसने की। मेरे लेखन में यदि कोई त्रुटि पाएँ तो समझें कि वह जान बूझकर नहीं हुआ और उसे ठीक करने के लिए आप मुझे सदा तैयार पाएँगे। हिंदी मेरी मातृभाषा नहीं है अतएव आशा है कि आप मेरी भाषा संबंधी भूलों को क्षमा करेंगे।

मैं हिंदू पैदा हुआ, मैं हिंदू हूँ और हिंदू ही रहूँगा। मेरे इष्टदेव श्री सिद्धि विनायक गणपति को मैंने प्रत्येक स्थान पर पाया चाहे वह मंदिर हो, या मस्जिद, या गिरजा। अपने पाकिस्तानी ड्राइवर मलिक के साथ मैं शारजाह के मस्जिद में गया और उसके बगल में बैठ कर अपने इष्टदेव को याद किया, जबकि उसने अपनी नमाज़ पढ़ी। तंज़ानियन-ओमानी हमूद हमदून बिन मुहम्मद के घर पर, उनके परिवार के साथ, एक ही बहुत बड़ी थाली में से, हम सभी ने एक साथ भोजन किया, उनके एक करीबी रिश्तेदार की मौत के बाद, मस्जिद से लौट कर। मुम्बई में एक कैथोलिक चर्च के मास के दौरान मैं गिरजे में मौजूद था। कैनेडा के एक प्रोटेस्टेंट चर्च में सरमन के समय मैं उपस्थित रहा। मुम्बई में यहूदियों के सिनगॉग एवं पारसियों के टेम्पल में मैं गया। कैनेडा के एक बौद्धों के मंदिर में मैंने मेडिटेशन किया।

एक हिंदू, यह नहीं सोचता, कि मेरा ईश्वर ही अकेला सच्चा ईश्वर है, और बाक़ी सभी के ईश्वर, झूठे ईश्वर हैं, जैसा कि यहूदी सोचते हैं, ईसाई सोचते हैं, मुसलमान सोचते हैं जिसका मुझे तब ज्ञान न था। मोहनदास करमचन्द (महात्मा ?) गांधी तथा उनकी देखा देखी अनेक हिन्दू धर्मगुरुओं ने जो कहा उसे मैं सत्य समझता रहा। चाहे कहीं भी मैं रहा, हिंदू भारतवर्ष या मुस्लिम मिड्ल-ईस्ट या मुस्लिम फ़ार-ईस्ट या ईसाई वेस्ट, मैंने सभी धर्मों को एक जैसा जाना, और माना। मैंने जाने कितने लोगों को नौकरी के लिए चुना पर कभी यह न सोचा कि वह हिंदू था, या मुसलमान, या ईसाई। उन दिनों मेरी सोच, धर्मों की भिन्नता की ओर न जाती, क्योंकि मैं इस संदर्भ में अनजान था। मैं जानता नहीं था कि विभिन्न धर्म वास्तव में क्या सिखाते हैं। मैं एक ऐसी काल्पनिक दुनिया में जीया, जिसमें सभी धर्म समान हुआ करते थे!

अभी भी मैंने उस कड़वी सच्चाई को न जाना था, क्योंकि मैंने इस बात की आवश्यकता कभी न महसूस की थी, कि मुझे स्वयं विभिन्न धर्मों का अध्ययन करना चाहिए। मैं बड़ा सुखी था, उन ज्ञानियों पर पूर्णतया विश्वास कर, जिन्होने मुझे उस महान असत्य का पाठ पढ़ाया, कि सभी धर्म समान हैं, एवं सभी धर्म प्रेम और शांति की शिक्षा देते हैं। उन्होंने ऐसा क्यों किया? क्या वे स्वयं अज्ञानी थे, और उसी अज्ञान को, अपने अनुयायियों में बाँटते रहे थे? या फिर सत्य की प्रतीति थी उन्हें, पर किसी निहित स्वार्थ की पूर्ति हेतु, वे असत्य को सत्य का रूप देते रहे थे?

जीवन के पचास वर्ष बीत चुके थे, और तब जाकर मैं बैठा, विभिन्न धर्मों की शिक्षाओं का अध्ययन करने। मैंने पाया कि, ये शिक्षाएँ बहुत ही स्पष्ट रूप से झलकती हैं उन धर्मों के अनुयायियों की सोच, एवं आचरण में। गहराई में गया, तो मैंने जाना किस प्रकार से, प्रत्येक धर्म ने, मानव इतिहास, एवं वर्तमान की घटनाओं को रूप दिया। मैंने देखा कि धर्म, इतिहास एवं वर्तमान की घटनाओं के बीच एक गहरा, और सीधा संबंध है। संदेश बहुत ही स्पष्ट था, हम इन जानकारियों को नज़र अंदाज तो कर सकते हैं, पर अपनी ही क्षति करके। अब मैं बाँटना चाहता हूँ, अपनी इन नई जानकारियों को, केवल उनके साथ, जिन्हें परवाह हो इनकी।

मैं एक ऐसे परिवार में जन्मा था, जिसमें अध्यात्म, एवं उच्च शिक्षा का प्रचलन, अनेक पीढ़ियों से रहा था। मेरे पिता स्वर्णपदक प्राप्त इंजीनियर थे। पितामह डॉक्टर थे। प्रपितामह शिक्षाविद् एवं लेखक थे। प्रपितामह के पिता, व्यवसाय त्याग कर, अपने अंतिम जीवनकाल में, संसार में रह कर भी, एक योगी बन गए थे। सभी के अंश मुझे मिले। मातृपक्ष के पितामह एक जाने-माने शल्यचिकित्सक थे। परंपरा के अनुसार, मेरा जन्म, मातृपक्ष के पितामह के घर, बाँकुड़ा (पश्चिम बंगाल) में 25 जनवरी 1952 को हुआ था। इस प्रकार मैं एक हिंदू बंगाली परिवार में जन्मा, पला और बड़ा हुआ। एक समय था जब मैं श्री राम कृष्ण परम हंस देव का अनन्य भक्त भी रहा था।

विश्वविद्यालय की पदवी, एवं भारतवर्ष तथा विदेश से, तीन व्यवसायिक योग्यताओं को प्राप्त कर, मुझे कई देशों के निगमित क्षेत्र में, उच्च स्तर पर, व्यापक प्रशासनिक कार्यभार सँभालने का, अवसर भी मिला। इस बीच मुझे, बीस विभिन्न देशों के नागरिकों के साथ, निकट संपर्क में कार्य करने का, एवं उन्हें जानने का भी, समुचित अवसर मिला। पचीस वर्षों तक, अथक परिश्रम करने के पश्चात, अब मैंने कार्य निवृत्त होकर, एकांत वास का आश्रय लिया है।

मेरे आराध्य, श्री नारायण की दया से, मेरे जीवन की महत्वाकांक्षाएँ एवं सांसारिक आकांक्षाएँ पूर्ण हो चुकी हैं। अब मैं, अपने समय, एवं परिश्रम, के बदले में, कुछ भी नहीं चाहता। इस कारण, मैं कार्य में पूर्ण मनोयोग के साथ, एकांत ही चाहता हूँ। मेरा कार्य, केवल उन्हीं लोगों के लिए है, जो इसकी महत्ता को पहचानते हैं। मुझमें अब कोई इच्छा नहीं रही, कि मैं उन व्यक्तियों को समझाने में, अपना समय, एवं अपनी ऊर्जा नष्ट करूँ, जो मेरी बात को समझने की स्थिति तक, अभी नहीं पहुँचे। ऐसे व्यक्ति, इन लेखों की महत्ता को तभी समझेंगे जब पानी सर तक आ पहुँचेगा, एवं डूबने की संभावना उन्हें बहुत ही निकट से दिखने लगेगी। फिर भी मुझे अपना दायित्व, पूर्ण समर्पण की भावना के साथ, निभाते जाना है, एवं उस कर्म के परिणाम को, श्री नारायण को समर्पित करते हुए, आगे बढ़ते जाना है। आज यही मेरी पूजा है।

परिशिष्ट 2012 संस्करण

कोलकाता उच्चन्यायालय में प्रस्तुत की गई रिट याचिका 227 ऑफ 1985

कुरआन से कतिपय आयतों को संकलित कर कोलकाता के हिमांशु किशोर चक्रोबोर्ती ने प्रांतीय सरकार को एक पत्र लिखा (20 जुलाई 1984) यह अनुरोध करते हुए कि कुरआन पर प्रतिबन्ध लगाया जाये। अपने पत्र के साथ उन्होंने तीन परिशिष्ट संलग्न किए। प्रथम परिशिष्ट में कुरआन से 37 आयत उधृत किए गए थे जो क्रूरता का उपदेश देते हैं, हिंसा के लिए उकसाते हैं तथा सार्वजनिक शांति को भंग करते हैं। द्वितीय परिशिष्ट में कुरआन से 17 आयत उधृत किए गए थे जो धर्म के आधार पर शत्रुता की भावना को बढ़ावा देते हैं, तथा अन्य धर्मों के प्रति घृणा तथा वैमनस्यता की भावना को उकसाते हैं। तृतीय परिशिष्ट में कुरआन से 31 आयत उधृत किए गए थे जो अन्य धर्मों तथा उनकी धार्मिक आस्था का अपमान करते हैं।

14 अगस्त 1984 को हिमांशु किशोर चक्रोबोर्ती ने पुनः एक स्मरणपत्र भेजा उन्हीं अनुलग्नकों के साथ। उनके आधार पर चाँदमल चोपड़ा ने उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की। मुसलमानों ने इसके विरोध में सर्वत्र हिंसात्मक प्रदर्शन किए जिससे केन्द्रीय सरकार ने घबड़ा कर इस मामले में हस्तक्षेप किया। केंद्रीय सरकार की तरफ़ से महान्यायवादी (ऐटॉर्नी जनरल) ने उच्च न्यायालय के समक्ष यह दलील पेश की कि वे सभी आयतें अल्लाह से पैगंबर तक पहुँची अतः अल्लाह की मर्ज़ी पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता। केन्द्रीय सरकार के दबाव पर रिट को खारिज कर दिया गया तथा उस पर और सुनवाई नहीं हुई (अपील स्वीकार नहीं की गई)। स्रोत ISBN 8185990581

कोलकाता के हिमांशु किशोर चक्रोबोर्ती की उस पहल ने लोगों में एक नई चेतना का संचार किया तथा एक बहुत बड़े मिथ्या का पर्दाफ़ाश किया जिसका ताना-बाना तथाकथित महात्मा गांधी के सर्वधर्म समभाव रूपी ढकोसले के आधार पर बुना गया था। दुर्भाग्यवश उसी गांधी के अनेक अनुचर आज भी उसी मिथ्या के प्रसार में तत्पर हैं। जब हिन्दू राष्ट्र की स्थापना होगी तब ऐसे मिथ्याचारियों का निष्कासन आवश्यक होगा।

देश में दंगे क्यों होते हैं?

संभवतः इसी घटना से प्रेरित होकर दिल्ली में स्थान-स्थान पर अनेक पोस्टर लगाये गये जिनमें कुरआन से 24 आयतों को उधृत किया गया। हिन्दू रक्षा दल के सचिव तथा अध्यक्ष (जो उन दिनों अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के उपाध्यक्ष भी थे) को हिरासत में ले लिया गया। भारतीय दण्ड संहिता की धारा 153अ तथा 295अ के आधार पर वह रिट याचिका दायर की गई थी जिसमें सरकार से अनुरोध किया गया था कि कुरआन पर प्रतिबंध लगाया जाये पर हमारी केन्द्रीय सरकार ने मुसलमानों का पक्ष लिया था। और अब उन्हीं दो धाराओं के आधार पर इन दोनों हिन्दुओं को हिरासत में लिया गया तथा उनपर पर मुकदमा चलाया गया। धर्मनिरपेक्षता का कितना सुंदर उदाहरण ! हम हिन्दुबहुल राष्ट्र में तो रह रहे हैं पर मुसलमानों के रहमो-करम पर। 

दिल्ली मेट्रपालिटन मैजिस्ट्रेट का फ़ैसला

दिल्ली के मेट्रपालिटन मैजिस्ट्रेट ने फ़ैसला दिया कि उन्हें दोषी नहीं माना जा सकता है क्योंकि कुरआन मजीद के आयतों को ध्यानपूर्वक पढ़ने से यह स्पष्ट हो जाता है कि वे हानिकारक हैं तथा घृणा की शिक्षा देते हैं जिसके फलस्वरूप एक तरफ़ मुसलमान तथा दूसरी तरफ़ अन्य संप्रदायों के बीच वैमनस्य पनपता है। ज़ेड एस लोहाट, 31 जुलाई 1986, स्रोत ISBN 8185990581

इस्लाम पर स्वामी विवेकानन्द (1862-1902) के वक्तव्य

निम्नोक्त उद्धरणों के स्रोतकम्प्लीट वर्क्स ऑफ़ स्वामी विवेकानन्द, वॉल्यूम 1-8 (पुनरुधृत एमिनेन्ट इंडियन्स ऑन इस्लाम, डॉ के वी पालीवाल, नई दिल्ली)

सोचिए, उन लाखों-करोड़ों लोगों के बारे में जिनका कत्लेआम किया गया, मुहम्मद की शिक्षाओं के कारण, और उन माताओं के बारे में जिन्होंने अपनी संतानों को खोया, उन बच्चों के बारे में जो अनाथ हो गए, देश के देश जो उजड़ गए, लाखों-करोड़ों जो मारे गये (वॉल्यूम 1, पृष्ठ 184)

कुरआन का एक सिद्धांत है कि जो उसकी शिक्षाओं को न माने उसका कत्ल कर देना उस पर दया करने के समान है। ऐसा करना स्वर्ग प्राप्ति का निश्चित माध्यम है, जहाँ सुंदर हूरियाँ सभी प्रकार के इन्द्रिय-तृप्ति के साधन जुटायेंगी। सोच कर देखें, कितना खून बहाया गया होगा ऐसी मान्यताओं के कारण (वॉल्यूम 2, पृष्ठ 352-53)

मुसलमान आये कुरआन एक हाथ में और तलवार दूसरे – "कुरआन स्वीकार करो, या मृत्यु वरण करो; कोई दूसरा विकल्प नहीं तुम्हारे पास"। इतिहास आपको बताता है कितनी असाधारण रही उनकी सफलता। कोई न रोक पाया उन्हें छः सौ वर्षों तक, फिर एक समय आया जब उनकी गति रुद्ध हो गईयही होगा अन्य धर्मों का यदि वे इन्हीं राहों को चुनेंगे (वॉल्यूम 2, पृष्ठ 370)

ये अज्ञानी यह कहने का दुस्साहस करते हैं कि अन्य सभी पूरी तरह से गलत हैं, तथा केवल वे ही सही हैं। यदि उनका विरोध किया जाये तो वे लड़ने लगते हैं। कहते हैं कि हम कत्ल कर डालेंगे हर किसी को जो उन बातों में विश्वास नहीं करते जिनमें मुसलमान विश्वास करते हैं (वॉल्यूम 4, पृष्ठ 52)

मुसलमान सदा से मूर्ति पूजा के विरोधी रहे हैं पर देखा जाये तो वे हजारों सूफ़ी संतों को पूजते हैं (वॉल्यूम 4, पृष्ठ 121)

एक के बाद एक, सैलाब की भाँति वे आते रहे भारत की इस धरती पर, सब कुछ रौंदते हुए सैंकड़ो वर्षों तक, तलवारें चमकाते हुए, अल्लाह के फ़तह की गूँज आसमान को छूता हुआ, पर अन्त में न सैलाब रहा, न हमारे आदर्श बदले (वॉल्यूम 4, पृष्ठ 159) इस्लाम का सैलाब जिसने सारे विश्व को निगल डाला, अन्ततः उसे भारत आकर रुकना पड़ा (वॉल्यूम 5, पृष्ठ 528)  

जब मुसलमान यहाँ शुरू-शुरू में आये तो बाताते हैं कि हम साठ करोड़ हिन्दू थे (मुझे लगता है यह उक्ति थी सबसे पुराने मुसलमान इतिहासज्ञ फ़रिश्ता की)। अब हम बीस करोड़ रह गए हैं।  हर वह शख्श जो हिन्दू से मुसलमान बना, वह एक हिन्दू कम नहीं हुआ, बल्कि एक शत्रु बढ़ा। इस्लाम व ईसाई धर्म से विकृत हिन्दुओं में बहुसंख्यक वे हैं जो तलवार की नोंक पर विकृत किये गए तथा उनके वंशज (वॉल्यूम 5, पृष्ठ 233)   

इस्लाम, ईसाई धर्म पर रोबिन्द्रोनाथ ठाकुर (1861-1941)

इस धरा पर दो ऐसे धर्म हैं जिनमें अन्य सभी धर्मों के प्रति स्पष्ट शत्रुता व्याप्त है। ये हैं इस्लाम तथा ईसाई धर्म। ये अपना-अपना धर्म पालन करने में कतई संतुष्ट नहीं होते, बल्कि इन्होंने दृढ़ संकल्प कर रखा है कि वे अन्य सभी धर्मों को नष्ट कर देंगे। परिणाम स्वरूप उनके साथ शांति स्थापित करने का एक ही जरिया रह जाता है, उनका धर्म स्वीकार कर (अरिजिनल वर्क्स ऑफ़ रबिन्द्रनाथ, वॉल्यूम 24 पृष्ठ 375, विश्व भारती, 1982)

एक बहुत ही महत्वपूर्ण घटक जो हिन्दू-मुस्लिम एकता को वास्तविक बनाना लगभग असंभव कर देता है, वह यह कि मुसलमान अपनी राष्ट्रभक्ति को कभी भी एक राष्ट्र के दायरे में बाँध कर नहीं रख सकता। मैंने बहुत स्पष्ट रूप से मुसलमानों से एक प्रश्न किया था – यदि कोई मुसलमान राष्ट्र भारत पर आक्रमण करता है तो क्या वे अपने हिन्दू पड़ोसियों के साथ खड़े होंगे उस धरती को बचाने के लिए जो हिन्दुओं का भी है और उनका भी। मुझे जो उत्तर उनसे मिले, मैं उनसे संतुष्ट न हो पाया। यहाँ तक कि मुहम्मद अली ने घोषणा की है कि किसी भी स्थिति में एक मुसलमान को यह अधिकार नहीं—चाहे जो भी उसका राष्ट्र हो—कि वह अन्य मुसलमान के विरुद्ध खड़ा हो (टाइम्स ऑफ़ इन्डिया में रबिन्द्रनाथ का इण्टरव्यू18-4-1924 कॉलम थ्रू इंडियन आइज़ ऑन द पोस्ट खिलाफ़त हिन्दू-मुस्लिम रायट्स पुनरुधृत एमिनेन्ट इंडियन्स ऑन इस्लाम)

इस्लाम पर श्रीमती एनी बेसेंट (1847-1933) के वक्तव्य

महान मानवतावादी नेत्री तथा भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस की भूतपूर्व अध्यक्षा का कथन – खिलाफ़त के बाद बहुत कुछ बदल गया। भारत के ऊपर अनेकों अत्याचारों में से एक था यह। खिलाफ़त के ज़िहाद को बढ़ावा देने से मुसलमानों में हिन्दुओं के प्रति दबी हुई घृणा अपने नग्न तथा निर्लज्ज रूप में बाहर आ गयी ठीक वैसे ही जैसे पुराने दिनों में हुआ करती थी। वास्तविकता की राजनीति में हमने एक बार फिर देखा मुसलमानों के तलवार का मज़हब; सदियों की भुलाई हुई सच्चाई को धीरे-धीरे बाहर आते देखा; वही पुरानी अलगाववाद, जज़िरुत-अरब का दावा—अरब द्वीप के रूप में—जहाँ एक गैर-मुसलमान के गंदे पाँव न पड़ें; हमने सुना मुस्लिम नेताओं द्वारा घोषणा कि यदि अफ़गान के मुसलमान भारत पर हमला करें तो भारत के मुसलमान अपने हम-मज़हब का साथ देंगे और उन हिन्दुओं का कत्ल करेंगे जो अपनी मातृभूमि की रक्षा हेतु अपने शत्रु से लड़ेंगे। हमें यह देखने पर बाध्य होना पड़ा कि मुसलमानों की पहली निष्ठा मुस्लिम राष्ट्रों के प्रति, अपनी मातृभूमि के प्रति नहीं; हमने यह जाना कि उनकी सबसे गहरी आशा है अल्लाह के वतन की स्थापना, उस ईश्वर के जगत की नहीं जो संसार का पिता हो, जो समस्त जीवों से प्रेम करता हो, बल्कि एक ऐसे अल्लाह की जिसे मुसलमान देखते हैं एक ऐसे व्यक्ति की नज़रों से जो उन्हें अल्लाह का ऐसा पैगंबर प्रतीत होता है जिसे अल्लाह ने अपनी कमान सौंप रखी हो। मुसलमान नेतृत्व का अब यह दावा है कि मुसलमान केवल अपने उस पैगंबर का कानून मानेंगे जो उस राष्ट्र के कानून से ऊपर है जिसमें वे रहते हैं। यह राष्ट्र के नागरिकों में शांति तथा सुव्यवस्था एवं राष्ट्र के स्थायित्व के लिए घातक है। यह उन्हें बुरा नागरिक बनाता है क्योंकि उनकी राजभक्ति बाहरी राष्ट्र के प्रति है। मलबार ने हमें सिखाया कि मुस्लिम राज का आज भी क्या अर्थ है और हम भारत में एक और खिलाफ़त राज नहीं देखना चाहते। जो मुस्लिम मलबार (केरल) से बाहर रहते हैं, उनमें मोपलाओं (मलबार के मुसलमानों) के प्रति कितनी सहानुभूति रही है इसका प्रमाण हमें मिला जब उन्होंने अपने मजहबी भाइयों के बचाव की व्यवस्थायें कीं। मिस्टर गांधी ने स्वयं कहा कि उन्होंने वैसा ही किया जैसा उनके विश्वास के अनुसार उनके मज़हब ने उन्हें करना सिखाया। मुझे भय है कि यह सत्य है, पर एक सभ्य देश में ऐसे लोगों के लिए कोई स्थान नहीं जो यह मानते हैं कि उनका मज़हब उन्हें कत्ल, लूट, बलात्कार, जलाना अथवा उन लोगों को अपनी धरती से बेदखल करना जो अपने पूर्वजों का धर्म त्यागने को तैय्यार न हों। ये ठग मानते हैं कि उनके इस अल्लाह ने उन्हें यह आदेश दिया है कि वे गला घोंट दें विशेषकर उन यात्रियों का जो धन के साथ यात्रा कर रहे हों। ऐसे अल्लाह के कानूनों को इस बात की इजाजत नहीं होनी चाहिए कि वे एक सभ्य देश के कानूनों का उल्लंघन करें। बीसवीं सदी के लोगों को चाहिए कि वे या तो ऐसे व्यक्तियों को शिक्षित करें जो इस प्रकार की मध्ययुगीय सोच को प्रश्रय देते हैं अथवा उन्हें देश निकाला दे दें। भारत की स्वतंत्रता के संबंध में सोचते समय मुसलमान राज की हानिकारिता को ध्यान में रखना होगा (द फ़्यूचर ऑफ़ इण्डियन पॉलिटिक्स, पृष्ठ 301-305, पुनरुधृत पाकिस्तान ऑर पार्टीशन ऑफ़ इण्डिया, अंबेडकर, 1945, पृ 275-276, पुनरुधृत एमिनेन्ट इंडियन्स ऑन इस्लाम)

इस्लाम पर शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय (1876-1938)

यदि मुसलमान कहें कि हम हिन्दुओं के साथ एकता चाहते हैं तो यह धोखे के सिवा कुछ नहीं। कोई कहता है कि मुसलमान भारत आये केवल लूटने के लिए, अपना राज स्थापित करने के लिए नहीं। पर वे केवल लूट से ही संतुष्ट नहीं थे, उन्होंने हिन्दू मंदिरों को ढहा दिया, भगवान की मूर्तियों को तोड़ा, हिन्दू स्त्रियों का बलात्कार किया। सत्य तो यह है कि वे अन्यों के धर्म एवं मानवता का निरादर करने तथा सर्वाधिक क्षति पहुँचाने से कभी नहीं चूके। जब मुसलमान हमारी धरती के शासक बन गये तब भी वे अपनी इस घृणित मानसिकता से बाहर नहीं निकल सकेतथाकथित उदार राजा अकबर ने भी हिन्दुओं को बलात्कार एवं यंत्रणा से नहीं बख्शा। यह स्पष्ट है कि बलात्कार एवं यंत्रणा की तहज़ीब उनके जन्मजात स्वभाव का अंग बन चुकी है। जब मुसलमान अपने मज़हब की ऊँची उड़ान से नीचे गिरेंगे तब शायद उन्हें अहसास हो कि यह सब ऐसा जंगलीपन था जिसकी तुलना नहीं हो सकती। परंतु मुसलमानों को अभी भी बहुत लंबा रास्ता तय करना है इसके पहले कि उन्हें इस बात की समझ आये। उनकी आँखें कभी नहीं खुलेंगी यदि सारा संसार एकजुट होकर उन्हें सही सबक न सिखाये (वर्तमान हिन्दू-मुस्लिम समस्या, शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय, संपादित दिपंकर चट्टोपाध्याय, प्रकाशक पान्चजन्य प्रकाशनी, 10 के-एस रे मार्ग, कोलकाता, पुनरुधृत एमिनेन्ट इंडियन्स ऑन इस्लाम)

इस्लाम पर सर जोदुनाथ सॉरकार (1870-1958) का कथन

विश्वप्रसिद्ध इतिहासज्ञ ने लिखा — क़ुरान के कानून के अनुसार एक मुसलमान राजा तथा उसके पड़ोसी गैर-मुसलमान राजा के बीच कभी शांति संभव नहीं। गैर-मुसलमान राज्य दार-उल-हर्ब है एवं उससे युद्ध छेड़ना जायज है। मुसलमान राजा का यह कर्तव्य है कि वह उन्हें (गैर-मुसलमान को) लूटे एवं उनका कत्ल करे तब तक जब तक वे सच्चे धर्म (इस्लाम) को स्वीकार न कर लें और वह राज्य दार-उल-इस्लाम (केवल इस्लाम की धरती) न बन जाये, जिसके बाद वे उसके (मुसलमान राजा के) संरक्षण के अधिकारी बनेंगे (शिवाजी ऐण्ड हिज़ टाइम्स, पृष्ठ 479-480, प्रकाशक ओरिएन्ट लॉन्गमैन, पुनरुद्धृत एमिनेन्ट इंडियन्स ऑन)

इस्लाम पर योगी ऑरोबिन्दो घोष (1872-1950) के वक्तव्य

आप मैत्रीपूर्ण ढंग से जी सकते हैं उन लोगों के साथ जिनका धर्म सहिष्णुता / उदारता के सिद्धांत पर बना हो, पर उन लोगों के साथ आप कैसे जीयेंगे जिनका सिद्धांत है "हम आपको नहीं सहेंगे"? यह निश्चित है कि हिन्दू-मुस्लिम एकता का आधार यह नहीं हो सकता कि मुसलमान तो हिन्दुओं का धर्मपरिवर्तन करते जायें पर हिन्दुओं को यह अधिकार न हो कि वह किसी मुसलमान को हिन्दू बनाये (संध्या-वार्ता श्री ऑरोबिन्दो के साथ, 23-7-1923 को रेकॉर्ड की गई ए-बी पुरनानी द्वारा, प्रकाशित श्री ऑरोबिन्दो आश्रम ट्रस्ट, 1995, पृष्ठ 291, पुनरुद्धृत एमिनेन्ट इंडियन्स ऑन इस्लाम, पृष्ठ 40)

18-4-1823 एक शिष्य द्वारा प्रश्न पूछे जाने पर श्री ऑरोबिन्दो ने उत्तर दिया "मुझे खेद है कि (पण्डित मदनमोहन मालवीय तथा चक्रवर्ती राजागोपालाचारी) हिन्दू-मुस्लिम एकता के विषय में अंधभक्ति दिखा रहे हैं। सच्चाई से मुँह मोड़ने से कुछ होगा नहीं। एक दिन ऐसा आयेगा जब हिन्दुओं को मुसलमानों के साथ युद्ध करना ही पड़ेगा और उन्हें इसके लिए तैयारी करनी चाहिए। हिन्दू-मुस्लिम एकता का अर्थ यह नहीं होना चाहिए कि हिन्दू पराधीनता स्वीकार कर ले। प्रत्येक बार हिन्दू की उदारता ने मुसलमानों की ही चलने दी। सबसे अधिक उचित होगा कि हिन्दुओं को अपने-आपको संगठित करने का अवसर दिया जाये और हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रश्न अपने-आप सुलझ जायेगा। अन्यथा हमें सुला दिया जायेगा इस गलत संतोष के आधार पर कि हमने एक कठिन समस्या का समाधान कर लिया, जबकि वास्तव में हमने उसे केवल कल के लिए ताक पर रख दिया (पूर्वोक्त संदर्भ, पृष्ठ 289)

29-6-1926 एक शिष्य ने पूछा "यदि भारत की यही नियति है कि हम सभी परस्पर-विरोधी तत्वों को आत्मसात कर लें, तो क्या हम मुस्लिम तत्व को भी आत्मसात कर पायेंगे?" श्री ऑरोबिन्दो ने उत्तर दिया "क्यों नहीं? भारत ने यूनानियों, ईरानियों तथा अन्य राष्ट्रों के तत्वों को अपने-आपमें आत्मसात कर लिया। परंतु यह तभी होता है जब अन्य पक्ष हमारे केन्द्रीय सत्य को मान्यता दे और वह भी ऐसे कि वे तत्व अपनी विदेशी पहचान खोकर हमारे साथ एक हो जायें। मुस्लिम संस्कृति का आत्मीयकरण इसी आधार पर आरंभ हुआ तथा संभवतः यह प्रक्रिया और भी आगे जाती। पर इस प्रक्रिया को संपूर्ण करने हेतु यह आवश्यक था कि मुस्लिम मानसिकता में भी कुछ परिवर्तन आते। विरोध बाह्य जीवन में है, एवं जब तक मुसलमान सहिष्णुता नहीं सीख लेता तब तक, मैं नहीं सोचता कि आत्मीयकरण संभव होगा। हिन्दू तत्पर है सहिष्णुता के लिए। वह नई सोच का स्वागत करता है। उसकी संस्कृति में यह अद्भुत योग्यता है बशर्ते उसके केन्द्रीय सत्य को स्वीकारा जाये (पूर्वोक्त, पृष्ठ 282)   

30-12-1939 हिन्दू-मुस्लिम संबंधों पर श्री ऑरोबिन्दो ने कहा "मैंने चित्तरंजन दास को (1923 में) कहा था कि अंग्रेज़ों के जाने से पहले इस हिन्दू-मुस्लिम समस्या का हल निकालना होगा अन्यथा गृहयुद्ध के गंभीर संकट की संभावना है। वह भी इस बात से सहमत हुए तथा इसका समाधान चाहते थे (पूर्वोक्त संदर्भ, पृष्ठ 696, पुनरुद्धृत एमिनेन्ट इंडियन्स ऑन इस्लाम, पृष्ठ 42-43)

मुगलस्तान—एक चेतावनी

मुस्लिम-बहुल पाकिस्तान तथा बांग्लादेश की खुफ़िया एजेन्सियों (आई-एस-आई एवं डी-जीएफ़-आई) द्वारा भारत के एक बड़े हिस्से को काटकर मुगलस्तान बनाने की परियोजना, जिसकी आधारशिला "ऑपरेशन जिब्राल्टर (1965)" की असफ़लता के पश्चात, भूतपूर्व पाकिस्तानी राष्ट्रपति ज़िया-उल-हक द्वारा "ऑपरेशन टूपैक (1988)" के अंतर्गत रखी गई।

मुघलस्तान

इसके उद्देश्य थे (अ) भारत को टुकड़ों में बाँटना (ब) खुफ़िया नेटवर्क की सहायता से भारत में तोड़-फोड़ करना (स) नेपाल तथा बांग्लादेश की असुरक्षित सीमाओं का लाभ उठाकर सैन्य संचालन केन्द्रों का निर्माण कर सामरिक गतिविधियों को दिशा देना तथा इन सभी दुष्कृत्यों में भारत में बसे एवं घुसपैठी मुसलमानों की सहायता लेना। जब मुसलमान भारत आये तो उनका एक ही सपना था—इस धरती को इस्लाम का वतन बनाना। उनकी वह कोशिश आज भी जारी है जिसमें सहभागी बनेंगे इस धरती का नमक खाने वाले मुसलमान जैसा कि खिलाफ़त मूवमेन्ट के सरगना कुख्यात अली ब्रदर्स ने कहा था कि किसी भी स्थिति में एक मुसलमान को यह अधिकार नहीं—चाहे जो भी उसका राष्ट्र हो—कि वह अन्य मुसलमान के विरुद्ध खड़ा हो (टाइम्स ऑफ़ इन्डिया 18-4-1924)

भारत में मुस्लिम जनसंख्या1 का बढ़ता हुआ सैलाब ले डूबेगा हिन्दू जनसंख्या के भारत में घटते हुए अनुपात को।

1 यथोचित विवरण किसी आगामी खण्ड में कारण इस विषय पर अपने-आपमें एक छोटी-सी पुस्तिका लिखी जा सकती है।

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कई वर्ष पहले जब यह पुस्तिका लिखी गई थी, उन दिनों यूनिकोड का प्रचलन नहीं था। इस कारण तब TTF ट्रूटाइप फ़ॉन्ट्स का प्रयोग किया गया था। अब उन अक्षरों का OTF (ओपन टाइप फ़ॉन्ट्स) यूनिकोड में रूपांतर एक सॉफ़्टवेयर द्वारा किया गया है। यह ग्यारह हज़ार की सॉफ़्टवेयर अच्छा काम करती है पर सभी सॉफ़्टवेयरों की अपनी-अपनी सीमायें होती हैं। अतः कतिपय गलतियों की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है।