मज़हब ही सिखाता है आपस में बैर करना [पाठकों की राय]

महामण्डलेश्वर डॉ स्वामी शिवस्वरूपानन्द सरस्वती, हरिद्वार, 12-3-2006
"आपकी दूसरी पुस्तक "मज़हब ही सिखाता है आपस में बैर करना" बहुत ही अच्छी लगी। आपने कुरान की सभी आयतें प्रमाण के रूप में दी हैं। आज समय बदला है अतः हमें भी बदलना होगा, अब सन्यासी समाज को भी माला के साथ भाला, समाज संगठन की विशेष आवश्यकता है; अतः हिन्दू धर्म पर होने वाले आघातों के प्रति जवाब देना होगा, नही तो संस्कृति हिन्दू धर्म समाप्त हो जायेगा। ईसाई मुसलमानों का हर कीमत पर विरोध भी करना होगा, नही तो वह दिन दूर नहीं जब हिन्दू बाहुल्य देश भारतवर्ष पर मुसलमानों का शासन होगा और हम पुनः गुलाम बन जायेंगे। ... आपके प्रयास की पुनः पुनः सराहना करते हुए आपसे आग्रह है कि अपने कार्य को आगे बढ़ाते रहें तथा हम सभी को भी अवगत कराते रहें। आपका शुभेच्छु।"
स्वामी संकल्पानन्द सरस्वती, आर्य समाज, मुम्बई, अप्रैल 2006
"मैने इसे आद्योपान्त पढ़ा हूँ। पुस्तिका तथ्यात्मक है और भण्डाफोड़ करने वाली है। आपने जो उद्धरण दिये हैं, वे बहुत मार्मिक एवं हिन्दु जाति के प्रत्येक घटक को जानने योग्य है। आपका ब्रीद (तथ्य) वाक्य "तुम्हारी आज की उदासीनता तुम्हारे कल के आने वाली सन्तानों को बड़ी महंगी पड़ेगी" बहुत चेतावनी देने वाला है। आपने इसे अन्यान्य भाषा में छपवाने हेतु भी लिखा है। मैं इसे मराठी में छपा सकता हूँ। आप जैसे धर्मप्रेमी, मानवतावादी एवं सत्यासत्य का निर्णय करने वाले लोग चाहिए। मैं आपको धन्यवाद देता हूँ। अस्तु!"
 स्वामी नर्मदानन्द सरस्वती 'हरिदास', जबलपुर,  प्र, 26-5-2006
"आपकी रचित पुस्तिका 'मज़हब ही सिखाता है आपस में बैर करना' प्राप्त हुई जिसे अवलोकन कर बहुत प्रसन्नता हुई। आपने बड़े विचार पूर्वक अपने विषय का पूर्णता से प्रतिपादन किय है तथा इस तरह जनमानस को एक नई दृष्टि देते हुए जागृत करने का आपका यह प्रयास सर्वथा अनूठा एवं स्वागत योग्य है। वर्तमान समय में ऐसे ही जागृति पूर्ण क्रान्तिकारी विचारों के प्रचार प्रसार की परमावश्यकता है, एतदर्थ ऐसे सत्प्रयास के लिए बहुशः साधुवाद। हमारी शुभकामनायें सदैव आपके साथ हैं।"
साधु अमृतवदनदास, स्वामीनारायण संस्था, मुम्बई, 22-2-2006  
"आपका भारतीय संस्कृति के प्रति प्रेम और सत्य बात का उद्घाटन करने का उत्साह, आनन्द, प्रशंसनीय है। आपका यह कार्य और ऊँचाई प्राप्त करे एवं देश की अधिक सेवा हो इसलिए भगवान स्वामीनारायण एवं परम पूज्य प्रमुखस्वामी महाराज के चरणों में प्रार्थना सह शुभेच्छा।"
 साधु डॉ राधेश्याम 'योगी', गाँधी शांति प्रतिष्ठान केन्द्र, जालौन,  प्र, 4-3-2006
"पुस्तक अद्वितीय है - साहसिक कदम है।"
श्री शरद शर्मा, संपादक, अयोध्या संवाद, अयोध्या,  प्र, 12-2-2006
"आप द्वारा लिखित बिंदु समाज राष्ट्र को सजग करने में अहम भूमिका निभा रहा है, वही हिन्दु समाज को अपने प्रति आत्म-चिंतन के लिए प्रेरित भी कर रहा है। आप जैसे लेखकों के द्वारा ही भारतीय संस्कृति आज भी इतनी समस्याओं से जूझने के बाद भी सुरक्षित है। आपका मार्गदर्शन इस देश की भावी पीढ़ी के लिए परम आवश्यक है। जन-जन को राष्ट्र के प्रति सजग करने का जो पवित्र कार्य आपने अपने हाथों में लिया है उसकी जितनी भी प्रशंसा की जाय कम है। आप द्वारा भेजी गयी पत्रिकाओं को राष्ट्र कार्य में संलग्न व्यक्तियों के हाथों में पहुँचा दी है। अयोध्या के अनेक संत धर्माचार्य समाज को सही दिशा देने में निरन्तर तत्पर हैं। ऐसे में आपकी पत्रिकायें उनका और भी मार्गदर्शन करने में सहायक सिद्ध होगी।"  
श्री आनन्द
मुझे आपके द्वारा लिखित पुस्तकें 3 पुस्तकें 1. मजहब ही सिखाता है आपस में बैर करना 2. राम मंदिर तुम्हें पुकारता 3. हमारे न्यायाविद् ......  महोदय यह पुस्तकें हमारे भ्राता डा0 ओमप्रकाश जी के करकमलों द्वारा हमारे गृह जनपद बाराबंकी से दशहरा की छुट्टियों में पढ़ने के लिए प्राप्त हुर्इं। पढ़कर अति प्रसन्नता हुई और इस बात की अनुभूति हुई कि अभी भी कोई हिन्दू इस धरा पर हिन्दू धर्म के उत्थान के लिए मौजूद है। आपके द्वारा प्रस्तुत किए गए साक्ष्य चीख-चीख कर उत्तर दे रहें हैं कि किस तरह ईसाई एवं इस्लाम धर्म के धर्म ग्रन्थ हिन्दू धर्म का खुला विरोध कर रहे हैं। हम हिन्दुओं को दिग्भ्रमित करने हेतु बाईबिल एवं कुरान को जिस रूप में प्रस्तुत किया गया है वह मात्र छलावा है। आपने हमारी आँखें खोल दी हैं और हमें यह अहसास हो रहा है कि अब वह समय गया है कि हम अपने धर्म के प्रति जागरूक होना होगा वरना हिन्दू धर्म का अस्तित्व मिटाने के लिए ये बाज ताक लगाए हुए हैं। जरा सी पलक झपकी कि ये उसका ग्रास बनाना चाहेंगे।

TTF ट्रूटाइप फ़ॉन्ट्स से OTF (ओपन टाइप फ़ॉन्ट्स) यूनिकोड में रूपांतर सॉफ़्टवेयर द्वारा। अतः मशीनी रूपांतर से उत्पन्न हुई कतिपय गलतियों की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है।