हिन्दू राष्ट्र के संदर्भ में

मन के आँगन में तैरते कुछ सोच  

12 ‎दिसंबर ‎2009, ‏‎21:06:26
हिन्दू राष्ट्र को हमें इतना शक्तिशाली बनाना है कि कोई भी इसकी ओर आँख उठाकर देखने की हिम्मत तक न करे
7 मार्च 2012, 10:28 प्रातः / 13 मार्च 2012, 06:29 प्रातः भारतीय समय
मैं हिन्दू राष्ट्र की बात कर रहा हूँ, हिन्दी राष्ट्र की नहीं; और दोनों में बहुत बड़ा पार्थक्य (अंतर) है — असत्य के आधार पर हिन्दू राष्ट्र नहीं बन सकता — मानवी तोतों की कहानी, एक मूक दर्शक की जबानी
स्वार्थ से प्रेरित किसी भी सृजन का फल उत्तम नहीं होता (स्वार्थ केवल स्वतः का ही नहीं बल्कि समुदाय का भी हो सकता है)
यह न केवल समाज के लिए बल्कि हिन्दू राष्ट्र के लिए भी घातक हो सकता है अतः इसका विरोध प्रत्येक कदम पर तथा दृढ़ता के साथ होना चाहिए
रविवार 5 अगस्त 2012 भारतीय समय 15-51
हिन्दू राष्ट्र के प्रणेताओं में शत्रु तथा मित्र की सही पहचान होनी आवश्यक है। शत्रु के प्रति मित्रवत व्यवहार करने की मूर्खता कदापि नहीं करनी चाहिए। हमारा कोई भी कार्य शत्रु को आर्थिक, राजनैतिक, अथवा किसी अन्य रूप से लाभान्वित करे यह हमारे हित में नहीं।

उदाहरण -
चीन तथा पाकिस्तान ने सदा से हमारे साथ शत्रुवत व्यवहार किया है।
चीन का सामान अपने यहाँ आयात कर उन्हें आर्थिक रूप से अधिक सक्षम बनाना, इत्यादि।
पाकिस्तान के साथ समझौता एक्सप्रेस चालू करना, उनके कलाकारों को हमारे यहाँ बुलाना, उन्हें इस बात का मौका देना कि वे हमारी अंदरूनी खबरों को ले जायें, यहाँ के मुसलमानों को बरगलायें तथा अपनी गंदी संस्कृति की छाप हम पर छोड़ते हुए हमारा धन पारितोषिक स्वरूप अपने वतन ले जायें, हमारे यहाँ छुप-छुपा कर बँटवारे के विष बोते जायें।

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दोगले राष्ट्रों के साथ दूरी बनाये रखना तथा उनपर कभी भरोसा न करना

उदाहरण -
अमेरिका जो दिखाता हमसे दोस्ती पर निभाता पाकिस्तान से, सो भी एक बार नहीं बल्कि बार-बार लगातार

संस्कृत एक मात्र भाषा है जिसमें राष्ट्रभाषा बनने की योग्यता है