आतंकवाद का एक अन्य पहलू—राष्ट्र का इस्लामीकरण [ब]

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आतंकवाद का एक अन्य पहलू—राष्ट्र का इस्लामीकरण - तृतीय संस्करण [पठनीय प्रति] - अ  

क्या आपने इस विरोधाभास पर ध्यान दिया है?

क्या आपने इस बात पर गौर किया है? जब घाटकोपर बम विस्फोट के अपराधियों को सजा न दी गई तब हमारी विश्वस्त मीडिया ने उन अपराधियों को सजा दिलवाने लिए जनमत तैयार करने की कोई चेष्टा नहीं की और सारे मामले को दबा दिया यह आरोप लगाकर कि पुलिस निकम्मी है जो पर्याप्त सबूत न जुटा पायी। और जब संसद भवन पर आक्रमण के अपराधी को सजा दी गई तो हमारी वही विश्वस्त मीडिया इस बात की जी तोड़ कोशिश में लगी है कि उसकी सजा कम कर दी जाये। फाँसी लगने के पहले ही हमारी विश्वस्त मीडिया उस अफ़ज़ल को मुसलमानों की नज़रों में एक शहीद बनाये दे रही है।

क्या यह एक अपने ढंग का राष्ट्र द्रोह नहीं?

यह अफजल कौन है? यह वह व्यक्ति है जिसे भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने मृत्युदण्ड की सजा सुनाई है। उसे 20 अक्टूबर को फाँसी की सजा दी जाने वाली है। उसका दोष क्या था? भारतवर्ष के संसद भवन पर आक्रमण। क्या वह व्यक्ति राष्ट्रद्रोही नहीं है? क्या वे सभी, जो उसे किसी न किसी प्रकार से बचाना चाहते हैं सजा दिलाने से, क्या वे सभी अलग-अलग रूपों में राष्ट्र द्रोह के अपराधी नहीं हैं?

उनकी नज़रों में यह राष्ट्र द्रोह नहीं है - पर क्यों?

एक मुसलमान के लिए भारतवर्ष मुसलमानों की जागीर है और जब तक इसे मुस्लिम राष्ट्र घोषित नहीं कर दिया जाता तब तक उनकी लड़ाई चलती रहेगी क्योंकि वे लड़ रहे हैं अल्लाह के लिए। उनकी नजरों में यह एक पुण्य का काम है।

वे न केवल अल्लाह की सहायता कर रहे हैं, बल्कि अपनी भी सहायता कर रहे हैं, जन्नत (स्वर्ग) में अपनी सीट बुक करवाने में। लश्कर-ए-तयेबा का शाब्दिक अर्थ भी तो है निष्पाप पवित्र लोगों की सेना!

11 जुलाई 2006 - सीरीयल बम विस्फोट - मुम्बई - निष्पाप पवित्र लोगों की सेना के द्वारा

"संगठन लश्कर-ए-तयेबा - शब्दिक अर्थ, निष्पाप पवित्र लोगों की सेना। मुख्यालय पाकिस्तान।" स्रोत - Hindustan Times 24-9-2006 p1

आइये इन निष्पाप पवित्र लोगों की सेना के कुछ कारनामें देखें और उन्हें समझे। इस "निष्पाप पवित्र" शब्द को व्यंग के रूप में न देखें। वे जो अपने आपको "निष्पाप पवित्र" समझते हैं, वे इस शब्द को बड़ी गम्भीरता से लेते हैं। इसमें उनका कोई दोष नहीं क्योंकि कुरआन उन्हें यही सिखाता है। उनके लिए कुरआन खुदा की आवाज़ है। आप चाहे वेदों को ईश्वर की वाणी समझें या न समझें, मुसलमान कुरआन को अल्लाह का पैगाम मानते हैं। ईसाई-अंग्रेज़ी शिक्षा-पद्धति ने चाहे आपके दिमाग को चाट कर, आपको हिंदू कम, और तथाकथित आधुनिक ज्यादा बना दिया हो, पर आम मुसलमान ने कभी ईसाई-दीमकों को विश्वास के योग्य नहीं माना, और उन्हें अपना दिमाग चाटने का मौका नहीं दिया। चाहे आप नाम के लिए हिंदू रह गये हों, और अपने-आपको जन-समुदाय के समक्ष हिंदू कहने में गौरव-बोध न करते हों, पर वे अब भी मुसलमान हैं, और उन्हें इस बात का फ़क्र भी है। 

"प्रोफ़ेसर आज़म चीमा उर्फ़ बाबा - प्रोफेसर एवं लश्कर-ए-तय्येबा के सेनापति। निवास पाकिस्तान। कार्य भार (1) फैज़लाबाद में इस्लाम के प्रोफ़ेसर (2) बहवलपुर में निष्पाप पवित्र लोगों की सेना के प्रशिक्षक।" विवरण Times Of India 9-10-2006 p3 

इस भुलावे में न रहिए कि ये आतंकवादी केवल भाड़े के टट्टू होते हैं - मिलिए प्रोफ़ेसर साहब से जो उन निष्पाप पवित्र लोंगों के सरगना हैं

तो मिलिए प्रोफ़ेसर साहब से जो उन निष्पाप पवित्र लोंगों के सरगना हैं। इस भुलावे में न रहिए कि ये आतंकवादी केवल भाड़े के टट्टू होते हैं, जो पैसों के लिए कत्ल भी कर सकते हैं।

एक समय था जब सिक्यूलर बुद्धिजीवी एवं सिक्यूलर मीडिया ने इस बात को काफी उछाला था, ताकि आप धोखे में रहें। पर जब से अमरीका को लात पड़ी है, बिन लादेन की, तब से अमरीकी मीडिया ने इन आतंकवादियों को बड़ा बदनाम कर रखा है। इसलिए आज आपके सिक्यूलर बुद्धिजीवी, एवं सिक्यूलर मीडिया आपसे यह नहीं कह पाती है कि आतंकवादी केवल भाड़े के टट्टू हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि आज यदि वे वही बात कहना चाहेंगे, तो आप यह ताड़ जायेंगे कि वे आतंकवादी नहीं, बल्कि वे सिक्यूलर बुद्धिजीवी एवं सिक्यूलर मीडिया वाले स्वयं भाड़े के टट्टू थे जो पेट्रो-डॉलर के बदले में, झूठ का प्रचार कर आपको धोखे में रखा करते थे।  

आज की लड़ाई कई मोर्चों पर लड़ी जाती है जिसे समझना आपके लिए बहुत जरूरी है

वे आपको यों धोखे में क्यों रखा करते थे? इससे उन्हें क्या हासिल होता जिन्होंने आपके इन विश्वस्त सिक्यूलर बुद्धिजीवी एवं सिक्यूलर मीडिया को खरीद कर इस झूठ का प्रचार करवाया? आज की लड़ाई कई मोर्चों पर लड़ी जाती है। कुछ मोर्चे ऐसे होते हैं जो दिखते हैं। कुछ मोर्चे ऐसे होते हैं जो नजर में नहीं आते पर उनका प्रभाव बड़ा दूरगामी होता है। उनमें से एक मोर्चा वह है जो मानसिक स्तर पर लड़ा जाता है। इसके द्वारा जन-मानस को प्रभावित किया जाता है।

इसके भी दो पहलू होते हैं। एक वह जिसका उद्देश्य होता है नेतृत्व की सोच को प्रभावित करना। दूसरा वह जिसका उद्देश्य होता है आम जनता की सोच को प्रभावित करना।

नेतृत्व से तात्पर्य यहाँ केवल राजनीतिक नेताओं तक ही सीमित नहीं है। इनमें वे सभी शामिल हैं जो राष्ट्र को, एवं जन साधारण को, किसी न किसी क्षेत्र में, दिशा दे सकते हैं, अथवा प्रभावित कर सकते हैं।

नेतृत्व में भी दो वर्ग होते हैं। एक - जो आसानी से बिकाऊ नहीं होता है। दूसरा वर्ग वह है जो बिकाऊ होता है, और यह हर जगह होता है, आज अमरीका में भी और इंग्लैण्ड, जापान में भी। अतः केवल अपने नेतृत्व को दोष देकर अपने मन की भड़ास न निकालें। समस्या को  समझने की चेष्टा करें, तभी उसका हल नजर आयेगा। 

जो बिकाऊ होता है, उसके सामने हड्डियाँ फेंक कर, उसे खरीद लिया जाता है, और उससे प्रचार करवाया जाता है। इन्हें चुना जाता है सावधानी से, यह ध्यान में रख कर कि उनकी समाज में कैसी साख है, लोग उन पर विश्वास करेंगे या नहीं। ऐसे लोग महंगे तो आते हैं, पर उनसे कराया गया प्रचार प्रभावी भी होता है।

इस प्रचार के लक्ष्य को समझें

इस प्रचार का लक्ष्य, नेतृत्व का वह वर्ग होता है, जिसे आसानी से खरीदा तो नहीं जा सकता, पर जिसकी नजर इतनी पैनी नहीं होती कि गहराई में जाकर दूध का दूध और पानी का पानी अलग करने की क्षमता रखता हो।

जब नेतृत्व के इस वर्ग, एवं जन-साधारण को, यह एहसास दिलाया जाता है, कि ये आतंकवादी केवल भाड़े के कातिल हैं, और उनका कोई मज़हब नहीं होता है, तो लोग उन्हें उतनी गम्भीरता से नहीं लेते हैं, जितनी गम्भीरता से उन्हें लेना चाहिए।

इसे एक दूसरे ढंग से सोच कर देखिए। रोज आप अखबारों में चोरी, डाके, कत्ल, इत्यादि की खबरें पढ़ते हैं। जब आप पढ़ते हैं कि उन चीजों का मकसद धन या आपसी वैमनस्य या पारिवारिक झगड़े हैं, तो उन्हें आप खबरों के रूप में या फिर मनोरंजन की दृष्टि से पढ़ लेते हैं, दोस्तों के साथ गप-शप में उनका जिक्र कर देते हैं, और बात यों ही आयी-गयी हो जाती है।

यही मानसिकता कि लोग ऐसी बातों को बहुत ज्यादा गम्भीरता से नहीं लेते हैं - इसी मानसिकता का लाभ उठाकर, ऐसे ही बिके हुए मार्क्ससिस्ट इतिहासज्ञों की एक जमात ने, यह परिकल्पना लोगों के मन में भर दी थी, कि मुसलमान आये भारत में, यहाँ के अपार धन को लूटने के लिए। अब चूँकि वह धन हमारा-आपका नहीं था, हम-आप उनके इन हमलों को उतनी गम्भीरता से नहीं लेते।

और यही सोच हमारे मनो-मस्तिष्क पर छा जाये - इस दृष्टि से उन इतिहासज्ञों ने इस बात को बार बार दोहराया, ताकि बच्चे जब तक पढ़-लिख कर बड़े हों, तब तक इस बात पर पूरी तरह से विश्वास करने लगें।

अब जरा गौर से सोचकर देखिए कि कितनी दूर की कौड़ी उठा लाये थे वे

अब सोचिए, अगर इन्हीं बच्चों ने बचपन से "सच्चाई" को जाना होता कि मुसलमान आये थे, धन लूटा था, पर उनका पहला मकसद हिंदुओं का कत्ले-आम करना था, काफिरों को मुसलमान बनाना था, हिंदू लड़कियों और औरतों को अपने हरम में भरना था, और उन हिंदू कन्याओं से जो बच्चे पैदा होते वे मुसलमान ही कहलाते, और इस प्रकार भारत की इस धरती को मुसलमानों का वतन बना डालते - तो क्या हमारे हिंदू बच्चे बड़े होकर इतने लापरवाह बनते, अपने धर्म की रक्षा करने के मामले में, जैसा कि आज हम उन्हें पाते हैं?

इसी प्रकार से यदि आपको "सच्चाई" का भान होता कि इस्लाम ने उन्हें किस ढाँचे में ढाला है, और उनकी प्रेरणा का स्रोत वास्तव में क्या है, और उससे भी "कड़वी सच्चाई" कि उनका एक-मात्र मकसद आप सभी को अल्लाह का बंदा बनाना है, तो आप इस मामले को इतनी कम गम्भीरता से नहीं लेते, जिसके आप आदी बन चुके थे, या फिर यों कहिये कि "आदी बना दिये गये थे, झूठे प्रचार का सहारा लेकर"।

अब इसके एक दूसरे अहं पहलू पर ध्यान दीजिए

इसे एक दूसरे ढंग से सोचें। अमरीका में बसे हुए हिंदुओं को देखिए। वे अपने आपको ईसाइयों से घिरा हुआ पाते हैं तो उन्हें बुरा नहीं लगता। वे अपने आपको मुट्ठी भर पाते हैं तो भी उन्हें बुरा नहीं लगता। पर जब वे अपने बच्चों को ईसाई बन जाते हुए देखते हैं तो उन्हें बड़ा झटका लगता है। पर क्यों?

धर्म मनुष्य का अपना सबसे गहरा (अंतरंग) एवं सबसे व्यक्तिगत मामला होता है। धर्म उसे मिलता है तभी जब वह पैदा होता है। बाकी चीजें तो यहाँ की होती हैं जिन्हें वह एक-एक करके बटोरता है। जब दूसरे व्यक्ति का धर्म बदलता है, तो उसे तकलीफ़ नहीं होती, पर जब उसकी अपनी संतान, अपना धर्म बदलता है तो उसे चोट अवश्य ही लगती है। उससे भी अधिक तिलमिलाहट उसे तब होती है जब उसे मजबूरी में अपना धर्म त्यागना पड़ता है। वह अपना ऐसा कुछ खो देता है जो उसका अंतरंग, बहुत ही अपना, पूर्णतया व्यक्तिगत हो, वह सम्पत्ति जो ईश्वर-प्रदत्त है (ईश्वर की दी हुई)।

अब यदि यह सच्चाई आपसे छुपाई न गई होती, तो भी क्या आप इन सारी बातों को इतनी कम गंभीरता से लेते?

इसी प्रकार यदि हिंदू यह सच्चाई जानता कि हर मुसलमान का एक सपना यह होता है कि जिस धरती पर वह जीता है, कम से कम वह धरती तो दार-अल-इस्लाम (मुसलमानों का वतन) हो। यह एक सपना उसे अपने धर्म से मिलता है। यह सपना उसे कुरआन देता है। यह सपना उसका अपना नहीं, बल्कि उसके अल्लाह की माँग है।

वह आपके आस-पास रहेगा। वह आपका दोस्त होगा। वह आपकी हर जरूरत पर मदद भी करेगा। कारण - आज वह दार-अल-हर्ब (काफिरों का वतन) में जो रहता। वह अपना सपना कभी आपको नहीं बतायेगा। आप उसके उस सपने को तभी जान पायेंगे जब वह इस स्थिति में पहुँच जायेगा कि वह अपने उस सपने को अंजाम दे सके6

6 जब-जब वह ऐसी नाकाम कोशिश करेगा तो आपके नेता, मीडिया एवं शिक्षक उसे हिंदू-मुस्लिम दंगे का नाम दे देंगे। आप इस नाम के कुछ इतने अभ्यस्त हो चुके हैं कि इसमें आपको कुछ सर-फिरे लोगों की हिंसा और राजनीतिक नेताओं की चाल के सिवा कुछ भी और नजर नहीं आयेगा। यह प्रवृत्ति आपको समस्या की जड़ तक कभी पहुँचने नहीं देगी। फिर एक दिन ऐसा भी आयेगा जब उनकी वह कोशिश नाकाम न होगी, बल्कि सफल होकर रहेगी। तब आपके सोचने समझने के लिए कुछ और न बचेगा। कारण तब यह धरती भी दार-अल-इस्लाम (मुसलमानों का वतन) बन चुकी होगी। 1-1-2008

यह जो आतंकवादी कहलाता है, वह देखने में....

"रहील अब्दुल शेख रहील - लश्कर-ए-तय्येबा के सेनापति।" ~ "फ़ैज़ल शेख उर्फ़ आबू अमीन - लश्कर-ए-तय्येबा के पश्चिम भारत प्रभाग के सेनापति। 11 जुलाई 2006 मुम्बई बम विस्फोट की योजना का सूत्रधार एवं संचालक। निवास मुम्बई। वेश-भूषा - एक आधुनिक "आम" शहरी नौजवान की, हजामत किया हुआ दाढ़ी सफाचट, जीन और टीशर्ट पहनने वाला, रे-बैन के चश्में पहनने वाला, काँधों तक लम्बे बाल रखनेवाला, पल्सर मोटर्बाइक चलाने वाला और महंगी ब्रांड के सिगरेट पीने वाला।"  विवरण - Times Of India 9-10-2006 p3

यह जो आतंकवादी कहलाता है, वह देखने में, हमारे-आपके जैसा भी होता है। उसकी पहचान इतनी आसान नहीं, क्योंकि वह आप-हम में से कोई एक भी हो सकता है। भेड़ के वेश में भेड़िया वाली कहावत का अर्थ समझने के लिए आपको बहुत दूर जाने की आवश्यकता नहीं होगी।

"फ़ैजल शेख (बांद्रा का निवासी उम्र 31), उसका भाई मुजम्मिल शेख (कम्प्यूटर सॉफ़्टवेयर इंजिनियर उम्र 22) गिरफ़्तार, फ़ैजल के पास पाये गए 15,000 सऊदी रियाल जो उसे भेजे गए थे आजम चीमा के द्वारा पाकिस्तान से।" Hindustan Times 21-9-06 p5
"एहतेशाम सिद्दिकी - पहली बार गिरफतार किया गया जब वह रायगढ़ में मेकैनिकल इंजिनियरिंग का छात्र हुआ करता था। उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ का निवासी। सिमी (स्टुडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया) का सदस्य। उर्दू दैनिक का उप-संपादक एवं सिमी सदस्य दानिश रियाज के साथ सैफ मंजिल मुम्बई में रहने लगा। रियाज़ गिरफ्तार किया गया, फिर एहतेशाम भी। एहतेशाम फैज़ल से मिला था जब पहले फ़ैज़ल मीरा रोड में रहता था। मीरा रोड स्टेशन पर ट्रेन बम विस्फोट का संदिग्ध अपराधी एहतेशाम।" विवरण Times Of India 8-10-06 Times City

यह आवश्यक नहीं कि आतंकवादी कोई अलग प्रकार का जीव होता है। वह आपके बेटे या फिर बेटी के दोस्तों में से भी एक हो सकता है। आपके बच्चों की तरह इंजिनियर या डाक्टर बनता हुआ दिख सकता है। हमारे सिक्यूलर बुद्धिजीवी और हमारी सिक्यूलर मीडिया, जिनके हृदय में आजकल "अफ़ज़ल" के प्रति इतना प्रेम-भाव उमड़ रहा है, वे भी तो इसी बात की दुहाई दे रहे हैं न, कि अफ़जल भी एक अच्छा डॉक्टर बन सकता था, या बन सकता है, यदि उसके साथ नरमी बरती जाये।

माना कि यह मुश्किल अवश्य है एक हिंदू के लिए इसे समझना—पर आज नहीं समझेंगे तो कल इसकी कीमत चुकायेंगे

एक बात स्पष्ट रूप से समझने की कोशिश कीजिए, यद्यपि मानता हूँ कि एक हिंदू के लिए इस बात को समझना बहुत ही मुश्किल है। पर यदि आज आप समझने की चेष्टा नहीं करेंगे तो उसकी कीमत भी कल आपको ही चुकानी पड़ेगी।

वह बात यह है कि एक मुसलमान के लिए दोनों चीजें एक साथ संभव है जो एक हिंदू के लिए असंभव है। एक मुसलमान एक अच्छा डॉक्टर हो सकता है, एक अच्छा इंजिनियर हो सकता है, एक अच्छा वैज्ञानिक हो सकता है, एक अच्छा फ़िल्मी कलाकार हो सकता है, एक अच्छा इंसान हो सकता है। और, साथ ही, इस्लाम की हर माँग को पूरा करने वाला भी हो सकता है।

इस्लाम की माँग है यह ~ कुरआन के अल्लाह का आदेश है यह ~ कि इस धरती को काफ़िर-विहीन बना दो, काफ़िरों का नामों-निशाँ मिटा दो, हर काफ़िऱ को अल्लाह का बंदा (मुसलमान) बना दो। इसके लिए तुम्हें छुप कर इंतजार करना पड़े, उस घड़ी का जब तुम उन पर अचानक हमला बोल सको, तो यह भी जायज है। हर जरिया जायज है, छुप कर इंतजार करना, पीछे से वार करना, धोखे से मार डालना, कुछ भी नाजायज नहीं है, कुछ भी गलत नहीं है, क्योंकि यह सब तुम कर रहे हो, अल्ल्लाह की खातिर 7

7 पढ़ें कुरआन अपने अनुयायियों को क्या सिखाता है

हिंदू इस बात की कल्पना भी नहीं कर सकता कि दूसरों को हिंदू बनाने के लिए सब कुछ मान्य है, कत्ल भी करना, धोखा भी देना, पर-स्त्री को लूट का माल समझना, इत्यादि। जबकि मुसलमान के लिए यह सब मान्य है क्योंकि यह सब अल्लाह का आदेश है और कुरआन में दर्ज है। उससे भी बड़ी बात, मुसलमान के लिए यह सब मान्य है क्योंकि पैगम्बर मुहम्मद ने यह सब किया और उसका व्योरा हदीस में दर्ज है। मुसलमान के लिए कुरआन अल्लाह की आवाज़ है तो पैगम्बर अल्लाह का जीता-जागता नमूना, और इस लिए जो कुछ पैगम्बर ने किया वह अल्लाह का किया हुआ माना जाता है।

आप मे से कुछ बहस करने में बड़े माहिर होते हैं

आप मे से कुछ ऐसे भी होते हैं जो बहस करने में बड़े माहिर होते हैं। सो आप कहेंगे कि यह जरूरी नहीं कि हर मुसलमान कुरआन में दर्ज अल्लाह के आदेशों में विश्वास करे, और हदीस में दर्ज पैगम्बर मुहम्मद के द्वारा किए गये कामों का आदर करे। ठीक है, परख कर देख लीजिए। जिन-जिन मुसलमानों पर आपका इतना भरोसा है, उनसे कहें कि वे खुले-आम यह बयान दे कि वे मुसलमान हैं और कुरआन में दर्ज अल्लाह के आदेश में विश्वास नहीं करते हैं, और हदीस में दर्ज पैगम्बर मुहम्मद के किए गये कामों को गलत मानते हैं। आपको स्वयं जवाब मिल जायेगा। प्रश्न यह है कि क्या आपमें हिम्मत है यह पूछने की? या फिर आप हमसे ही बहस करने में अपनी बहादुरी मानते हैं?

"अज़रुल इस्लाम उर्फ़ मुन्ना - रहील अब्दुल शेख रहील का गहरा विश्वस्त व्यक्ति 26 वर्षीय अज़रुल इस्लाम। भारत-बाग्लादेश के सीमारेखा के दोनों तरफ जिसकी सहज गति है। फोन एवं इमेल के संदेश पहुँचाता संदिग्ध व्यक्तियों को। आवश्ययकता पड़ने पर देश के बहुत गभीर स्थलों में भी जाता अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए। मुम्बई सिरीयल बम विस्फोट, मालेगाँव बम विस्फोट एवं औरंगाबाद में पकड़े गये अस्त्रों के मामले संदिग्ध अपराधी। रहील के साये की तरह रहने वाला, बहुत ही साधन-सम्पन्न, एवं अत्यन्त पैने दिमाग वाला (सम्भवतः रहील से भी एक कदम आगे)। लश्कर का सदस्य, ड्राइवर पेशे से, अपने माता-पिता के साथ रहता था नारयलवाड़ी मज़गाँव में, रहील के साथ बांग्लादेश को भागा मई 2006, उसके पहले इस्लाम गया था शेख के साथ मालेगाँव में, जहाँ रहील शेख मिला था "सिमी" के लोगों से उन्हें जरूरी हिदायतें देने के लिए। औरंगाबाद में 9 मई को जो अस्त्र-शस्त्र एवं विस्फोटक पदार्थ पकड़े गए बहुत बड़ी मात्रा में, उस मामले में भी इस्लाम उलझा हुआ था। जब पुलिस ने रहील शेख के ग्रांट रोड वाले घर पर छापा मारा तो वह दो मंजिल से कूद कर भागा था और इस चक्कर में उसने अपनी टाँग तोड़ डाली थी, जिसके लिए इस्लाम ने उसकी चिकित्सा की व्यवस्था करवायी, उसे छुपा कर बांग्लादेश पहुँचाया और वहाँ उसके रहने का बंदोवस्त कराया। इस्लाम ने उसके भांडुप में छुपने का इंतजाम किया, बांद्रा के निवासी फ़ैजल शेख से पंद्रह हजार रुपयों का इंतजाम किया, रहील के टूटे टाँग की प्लास्टरिंग के लिए। वहाँ से वे दोनों मालेगाँव गए, फिर उत्तर प्रदेश, और उसके बाद बांग्लादेश जहाँ उसने अपने ससुराल में रहील के पनाह की व्यवस्था की।" विवरण - Hindustan Times 20-9-06 p2

तो यहाँ आप देखते हैं कि ये गद्दार शादी मनाते हैं दूसरे इस्लामी राष्ट्रों में जाकर, फिर हमारे देश में आकर गद्दारों की फ़ौज बढ़ाते हैं, ढेरों बच्चे पैदा कर।

"बम विस्फोटों में सक्रिय रूप से भाग लेने वालों की शिनाख्त की गई है इन नामों से - फ़यक, ज़क्ज़ी, ज़ंब्रुद्दीन, बशीर, फ़ज़ल, अकलक, बसुभाई। ये असीरगढ़ (म प्र) होते हुए बाँग्लादेश अथवा पाकिस्तान में भाग गए हैं। असीरगढ़ का सिद्दिकी दक्षिण मुम्बई के तेमकर मुहल्ले में रहा करता था। उसने इन सातों के रहने, खाने, भागने एवं बम विस्फोटों के लिए योजना बनाने में मदद की थी। तेमकर मुहल्ला दाऊद इब्राहिम का गढ़ है जिसने 1993 में सीरीयल बम विस्फोटों की योजना बनाई थी।" विवरण - Hindustan Times 24-9-2006 p 1

मेरा मानना है कि सभी मुसलमान भारत को अपना ही वतन मानते हैं और कोई भी मुसलमान अपने इस वतन के साथ गद्दारी नहीं करता—पूछिए कैसे?

आप में से अधिकांश मानते होंगे कि सभी मुसलमान इस देश को अपना मानते हैं, केवल थोड़े से गद्दार हैं। मैं मानता हूँ कि सभी मुसलमान इस देश को अपना मानते हैं और कोई भी इस देश के साथ गद्दारी नहीं करता। बड़ा अजीब लगता है न? ठीक है, मैं आपको समझाता हूँ, पर अपने ढंग से। इसमें एक ऐसी चीज छुपी हुई है जिसे समझना आपके लिए बहुत जरूरी है।

आप सिद्दिकी का मामला ही लीजिये। आप कहेंगे वह उन गिने-चुने गद्दारों में से एक था जिसने आतंकवादियों को आश्रय दिया, खिलाया-पिलाया, उन्हें सारे ठिकाने बताये ताकि वे बम विस्फोट की योजना को अंजाम दे सकें।

अब इसी बात को सिद्दिकी नजर से देखें। उसकी नजर में यह देश भारतवर्ष उसका अपना देश है और उसे इसमें कोई संदेह नहीं है। केवल एक परेशानी है। उसके चारों ओर काफ़िर ही काफ़िर बसते हैं, और यह उसके अल्लाह को मंजूर नहीं। जो उसके अल्लाह को मंजूर नहीं, वह सिद्दिकी को कैसे मंजूर हो सकता है? उसे अल्लाह का सपना जो पूरा करना है। इसे दार-अल-इस्लाम (मुसलमानों का वतन) जो बनाना है।

यह उसका जन्मसिद्ध अधिकार है। जिस धरती पर वह पैदा हुआ, वह धरती उसकी अपनी है। वह न तो उस धरती के साथ गद्दारी कर सकता है, न अल्लाह के साथ। उसे आज अल्लाह ने वह काम सौंपा है जो उसे अल्लाह की खातिर करना है।

वह खुद तो इन काफ़िरों का नामो-निशाँ मिटा सकता नहीं, तो वह क्या करे। आज अल्लाह ने उसे एक मौका दिया है, और उसके पास ऐसे लोगों को भेजा है जो ढेर सारे काफ़िरों का कत्ले-आम कर सकते हैं।

उसे केवल इतना करना है कि वह उन्हें पनाह दे, पुलिस एवं दूसरों की नजर से छुपा कर रखे, उनके खाने-पीने का बन्दोबस्त करे ताकि वे सातों अल्लाह के काम में तन-मन से लगे रहें, और उन्हें वह सारी खबरें देता रहे जिनकी उनको आवश्यकता हो इस कत्ले-आम को अंजाम देने के लिए, और जब कत्ले-आम हो चुके तो उनके भागने का बन्दोबस्त करे ताकि वे फिर आकर नया कत्ले-आम कर सकें, अल्लाह ने चाहा तो उसी सिद्दिकी की एक बार फिर से मदद लेकर, या फिर किसी नये सिद्दिकी के यहाँ पनाह लेकर। जो भी होगा अल्लाह ही उसका बन्दोबस्त कर देगा, उसे तो बस अल्लाह की मर्जी पूरी करनी है, जो वह रोज कुरआन पढ़ कर सीखता है।

मेरे भाइयों, इस बात को अच्छी तरह समझ लो। मुसलमान जो यहाँ पैदा हुए हैं, जो इस धरती का नमक खाकर पले-बढ़े हैं, उन्हें इस धरती को अपना ही बनाये रखना है। वे तुम हो, ऐ काफ़िरों, जो उनके इस वतन को उनका नहीं रहने दे रहे हो। वे जब भी अपनी नज़रें उठा कर देखते हैं, तो इस सर-जमीं पर, बस तुम ही तुम, काफ़िरों को चहुँ-ओर फैला पाते हैं। इस धरती से तुम्हारा सफ़ाया कर, वे केवल अपनी वतन-परस्ती का सबूत दे रहे हैं। जो वतन उनका अपना है, वहाँ, तुम काफ़िरों का क्या काम? तुम काफ़िर सब इतने बद-जात हो, कि बस उनके इस वतन में, चारों ओर फैले हुए हो। तुम्हें उनके इस वतन में, जहाँ वे पैदा हुए हैं, वहाँ काफ़िर बन कर रहने, और जीने, का कोई हक नहीं।

"कश्मीर से अब्दुल अहद और घानी मुहम्मद ~ जो कुछ ही समय पहले तक मुम्बई में सिक्योरिटि गार्ड के रूप में काम करते थे ~ 11 जुलाई के बम विस्फोटों के सिलसिले में गिरफ्तार किए गये हैं। अब्दुल हमीद भी कुछ ही समय पहले तक मुम्बई में सिक्योरिटि गार्ड के रूप में काम करते थे ~ तीन हफ्ते पहले कश्मीर से गिरफ्तार किए गये ~ जहाँ उसका सम्पर्क रहा था लश्कर-ए-तय्येबा के कमांडर रहील अब्दुल शेख रहील के साथ।" विवरण Hindustan Times 27-8-06 p5
"शब्बीर अहमद मुशिउल्लाह और नफ़ीज़ अहमद जमीर अहमद अन्सारी ~ ये दो लश्कर-ए-तय्येबा लड़ाकू ~ 11 जुलाई बम विस्फोट के सिलसिले में गिरफ्तार किये गए।" विवरण - Hindustan Times 14-8-2006 p1

यह खेल खत्म नहीं हुआ अभी

"तौफ़ीक अकमल हाशमी, माहिम विस्फोट का संदिग्ध अपराधी, अल-बदर का डिविज़िनल कमांडर" Times Of India 16-10-2006 p3
"संगठन-शक्ति के अनुसार, लश्कर-ए-तयेबा, जैस-ए-मोहम्मद, हिज़बुल मुजाहिदीन के बाद, अल-बदर का नाम चौथे स्थान पर आता है। अल-बदर 1971 से कश्मीर में कार्यरत रही है। अल-बदर के फ़हाद उर्फ़ नेदुथान्नि उर्फ़ मोहम्मद कोया (उम्र 24) और मोहम्मद अली हुसैन उर्फ़ जहांगीर उर्फ़ अफ़गान उर्फ़ आसिफ़ खान उर्फ़ ज़ेहारी उर्फ़ कासिम (उम्र 24) पकड़े गये, जो बैंगलोर के विधान-सोउधा एवं विकास-सोउधा जैसे महत्वपूर्ण केन्द्रों को बम से उड़ा देने की तैयारी में थे। वे दक्षिण भारत के महत्वपूर्ण स्थानों का भी सर्वेक्षण कर रहे थे इस उद्देश्य से कि उन्हें भी एक-एक करके बमों से उड़ा दिया जाये। फहाद के पास से एक सी-डी भी बरामद हुआ जिससे कर्नाटक के महत्वपूर्ण स्थानों (उच्च न्यायालय सहित) को बम से उड़ा देने की साजिश का व्योरा मिला। फ़हाद कराची विश्वविद्यालय से विश्लेषणात्मक रसायन शास्त्र में स्नातकोत्तर पदवी प्राप्त है।
अली हुसैन गुसपैठिया था। वह कश्मीर की लीपा घाटी से अपने 10 अल-बदर साथियों समेत 2002 में घुसा। फ़हाद अपने बाप के साथ केरल आया था दिसम्बर 2005 में। वीज़ा समाप्त होने के पश्चात फ़हाद यहीं रह गया था। फ़हाद के पास सऊदी अरब, पाकिस्तान एवं भारत के विभिन्न स्थानों एवं व्यक्तियों से, जो उनके हमदर्द रहे हैं, हवाला एवं वेस्टर्न यूनियन मनी ट्रांसफर के द्वारा धन पहुँचता रहा, जिसका व्योरा पुलिस के पास है।" विवरण - Times Of India 28-10-2006 pp 1, 9

फ़हाद 10 महीने पहले यहाँ आया। उसने अपने पनाह की जगहें खोज लीं, यहीं भारत में उन मुसलमानों के पास, जो कहलाते तो थे भारत के नागरिक, पर जिनकी निष्ठा थी मुस्लिम-राष्ट्र के प्रति।

हम क्यों दिल खोल कर ऐसे लोगों को वीज़ा देते हैं? और अगर देते भी हैं तो क्यों नहीं, इतना पैसा हरेक से जमा करवा लेते हैं, वीज़ा देते समय, कि उनके ही खर्चे पर, हर समय, उनके पीछे सी-आई-डी लगी रहे, उनकी हर गतिविधि पर नजर रखने के लिए।

आप कहेंगे कि हर मुसलमान को शक की नज़रों से देखना अनुचित है

आप कहेंगे कि हर मुसलमान को शक की नज़रों से देखना अनुचित है। ठीक है, जो मुसलमान यह दावा करते हैं कि उनकी निष्ठा इस राष्ट्र के प्रति है, उन्हें ही इस बात की जिम्मेदारी लेने दीजिए, कि वे एक-एक करके उन गद्दार मुसलमानों को घर से बाहर निकालेंगे, जो पनाह देते हैं उन कातिलों को। जो कौम हमारे लिए बार-बार, लगातार, हमारे जान-माल के लिए खतरा पैदा कर रहा है, उन्हीं को जिम्मेदारी सौंपिए, कि वे उन कातिलों का सफाया कर, अपनी निष्ठा का सबूत दें।

पर उनसे यह माँग करेगा कौन? क्या वे राजनीतिज्ञ जो वोट के लालची हैं? या, फिर वे सिक्यूलर बुद्धिजीवी जिनकी निष्ठा केवल धन, यौन-लिप्सा और अपने-अपने क्षेत्र-विशेष में सत्ता की पकड़ पर है? या फिर वे सिक्यूलर मीडिया दिग्गज जिनकी ऊँची, आधुनिक जीवन-शैली की आधार-शिला टिकी है, उन आस्थाओं पर, जिनका उद्गम-स्थल कम-से-कम राष्ट्र-प्रेम तो नहीं है। 

यह जो राजनीतिक व्यवस्था है, जिसे हम बड़े गौरव से जनतंत्र कहते हैं, इसे हम पर थोपा गया था, उन लोगों के द्वारा, जिनके ज्ञान व समझ की परिधि थी, उनकी ईसाई-अंग्रेज़ी शिक्षा-पद्धति का छोटा सा दायरा। उन्होंने यह न समझा, कि एक पिद्दी सा देश इंग्लैण्ड, जिस राजनैतिक व्यवस्था से बँधा है ~ वह व्यवस्था हमारे इस विशाल देश में, जिसमें इतनी विविधता है जिसकी तुलना सम्भवतः विश्व के किसी भी देश से नहीं की जा सकती है ~ उस पर, उस पिद्दी से देश की व्यवस्था को लादना, कहाँ तक की बुद्धिमानी होगी?

बीते हुए कल को भुला कर एक नये इतिहास की रचना का सपना देखेंगे?

बड़े भोले हैं वो (या फिर धूर्त?), जो कहते हैं आपसे, कि भुला दो बीते हुए कल को, और चलो एक नये इतिहास की रचना करें। वे नहीं चाहते कि आप सीखें अपने बीते हुए कल से। वे चाहते हैं कि आप अपने आपको खुला छोड़ दें ताकि आप पर होने वाले आघातों का सिलसिला जारी रहे। ये सभी, अपने आपको सिक्यूलर कहने वाले, आपके दिग्दर्शक, नेता, बुद्धिजीवी, मीडिया दिग्गज - क्या आपको सही राह दिखला रहे हैं? वे आपके सच्चे हितैशी हैं, या कुछ और? उनकी निष्ठा इस राष्ट्र के प्रति है, या फिर किसी और के प्रति? पूछें ये सभी प्रश्न अपने आपसे। उत्तर के लिए आपको कहीं और नहीं जाना पड़ेगा, उत्तर स्वयं उभरेगा आपके मनो-मस्तिष्क के क्षितिज पर, यदि है आपमें अखण्ड प्रेम इस हिंदू राष्ट्र के प्रति, इस हिंदू संस्कृति के प्रति, अपनी जड़ों के प्रति, अपने ऐतिह्य के प्रति। पर ये प्रश्न उनके लिए बेमानी हैं जो अपनी जड़ों से कट चुके हैं।

दीपावली 2005 - सीरीयल बम विस्फोट - दिल्ली

"मोहम्मद चीपा और फ़िरोज़ घासवाला - दीपावली 2005 नई दिल्ली के सरोजिनी नगर में हुए बम विस्फोट के संदिग्ध अपराधी। ये दोनों आज़म चीमा से भी मिले थे बहवलपुर में प्रशिक्षण के लिए।" विवरण - Times Of India 9-10-2006 p 3

आप टैक्स भरते हैं इन देशद्रोहियों के लिए (मुम्बई सीरीयल बम विस्फोट काण्ड मंगलवार 2 मार्च 1993)

•           257 मरे, 713 घायल
•           30 करोड़ की सम्पत्ति नष्ट
•           37 मुकदमे दायर मुम्बई, ठाणे एवं रायगढ़ जिले के विभिन्न पुलिस स्टेशनों में
•           123 व्यक्तियों पर मुकदमा चला
•           13,000 पन्नों में दर्ज सबूत पेश किये गये 684 प्रत्यक्षदर्शी गवाह पेश किए गए
•           38,070 प्रश्न पूछे गए उन अभियुक्तों के बयान दर्ज करते समय 
•           13 लाख प्रति महीने का औसत खर्च
•           18 करोड़ खर्च हो चुके हैं अब तक केवल इन पर चल रहे मुकदमों पर

विवरण - Times Of India Mumbai Mirror 16-10-2006 p 4

एयर इंडिया बिल्डिंग एयर इंडिया बिल्डिंग

झवेरी बाज़ार झवेरी बाज़ार

1993-03-02-Mumbai-Bomb-Blast-Stock Exchange स्टॉक एक्सचेंज

Petrol Pump near Shiv Sena Bhavanशिवसेना भवन के पास पेट्रोल पंप

जरा सोचिए, इन देशद्रोहियों को केवल सजा देने की प्रक्रिया में 18 करोड़ खर्च हो चुके हैं अब तक, जो आपकी (जनता की) जेब से गये कर के रूप में। यदि आपको स्वयं कर नहीं भी देना पड़ा हो, तो किसी और को तो देना ही पड़ा होगा, और उसका कर का एक हिस्सा आप पर भी खर्च हो सकता था, यदि सरकार को इन कातिलों को सजा दिलवाने में इसे खर्च न करना पड़ता। जहाँ तक इन कातिलों का सवाल है, वे तो कभी कर देते ही नहीं, बल्कि कर चोरी करते हैं तस्करी (स्मगलिंग) जैसे काम करके।

सभी अभियुक्तों को सजा सुनाते-सुनाते और भी जाने कितने करोड़ों खर्च होंगे, और उनमे से कुछ तो छूट भी जायेंगे क्योंकि वकीलों की पैंतरे बाजी से कइयों के जुर्म साबित न किए जा सकेंगे। सजा सुनाने के बाद हमारे सिक्यूलरिस्ट बुद्धिजीवियों एवं सिक्यूलरिस्ट मीडिया वालों के मन में अचानक प्रेम उमड़ने लगेगा, जैसा कि अभी-अभी हुआ है अफ़जल के मामले में।

फिर मीडिया जोर-शोर से प्रचार करना शुरु करेगी कि जनता की माँग है कि नरमी बरती जाये। वे जो स्वयं चाहते हैं उसे जनमत के रूप में प्रस्तुत करेंगे। वे जनमत शब्द का प्रयोग बार-बार, लगातार, कुछ यों करते रहेंगे कि सबको लगेगा जैसे देश के अधिकांश लोग नरमी बरतने के पक्ष में है। साथ में वे इस बात का भी प्रचार करना नहीं भूलेंगे कि इस जनमत के विरुद्ध यदि कोई है तो वह है साम्प्रदायिक मनोवृत्ति वाले कुछ हिंदू संगठन। जबकि सच्चाई यह होगी कि जनमत शब्द का वास्तविक अर्थ उनके अपने शब्दकोश में होगा - उन मुट्ठी भर लोगों का मत जो अपने आप को सिक्यूलर कहने में अपना बड़प्पन मानते हैं, और जिनकी नजर में केवल हिंदू ही एक सांप्रदायिक जीव है, जबकि मुसलमान एवं ईसाई सिक्यूलर हैं।

इस प्रकार ये सिकयूलर कहलाने वाले लोग, अपने कब्जे में की हुई मीडिया की शक्ति का दुरुपयोग कर, न्याय की प्रक्रिया में टांग अड़ाने में सफल हो जायेंगे, और फिर राष्ट्रपति महोदय, "इस भारी जनमत" के दबाव में आकर, इस मामले की सुनवाई करने की इच्छा जाहिर करते हुए, सजा को मुल्तवी कर देंगे, और यों बात एक बार फिर लटकती रह जायेगी।

उन कातिलों ने जान-माल की जो हानि करनी थी वह तो कर ही दी, फिर उन्हें सजा देना भी, अपने आप में, एक प्रकार की ऐयाशी बन कर रह गयी। 1993 में उन्होंने कत्लेआम किया, दाऊद और मेमन तो पाकिस्तान और दुबई में मौज मना रहे हैं, 13 वर्ष बीत चुके हैं, और जनता की कमाई टैक्स के रूप में खर्च होती जा रही है।

टी बी मॅकाले तो मर कर भूत बन गया, पर हमारे देश में टी बी की तरह घुन लगा गया। 1835 में उसने दो बड़े काम किए। एक - ईसाई मिशनरियों की बटालियन लेकर आया और हमारी प्राचीन उन्नत हिंदू शिक्षा-पद्धति को घुन की तरह चाट गया, और उसकी जगह ईसाई-अंग्रेज़ी शिक्षा-पद्धति हम पर लाद गया, जिसने हमें दिमागी तौर पर उनका गुलाम बना दिया।

मुसलमानों को ईसाइयों का अच्छा तजुर्बा था, क्योंकि वे दोनों एक-दूसरे के साथ जिहाद-क्रूसेड का खेल खेलते, सदियों से "खून की होली" मनाते रहे थे। उन्होंने ईसाइयों को विश्वास की नजरों से नहीं देखा, अपने बच्चों को मदरसों में पढ़ाया, और अपनी संतानों को दिमागी तौर पर गुलाम होने से बचा लिया। हिंदू सभी पर विश्वास करता, सभी को अपने जैसा मानता, सभी से प्रेम करता रहा, और यहीं मार खा गया। अंग्रेज़ तो चले गये पर अपनी औलाद छोड़ गये जो ईसाई तो न बन सके, न ही उन्हें हिंदू रहने दिया उनके ईसाई "फ़ादरों" ने, बस त्रिशंकू की भाँति अधर में लटकते हुए, सिक्यूलरिस्ट बन गये।

दूसरा बड़ा काम जो टी बी मॅकाले ने किया वह था - हमारी प्राचीन एवं उन्नत न्याय-पद्धति को जड़ से उखाड़ फेंका, और उसकी जगह अपनी (ईसाई-अंग्रेज़ों की) बनाई हुई न्यायपालिका हम पर थोप गया, जिसका उद्देश्य न्याय करना कम था, अपना फैसला सुनाना ज्यादा था, चाहे उसमें न्याय हो या न हो।

उस न्यायपालिका का एक और बड़ा मकसद था - न्यायाधीशों एवं वकीलों को धनी बनाना, गाँव के भोले-भाले लोगों की जेब खाली करा कर। अंग्रेज़ों के जमाने में न्यायाधीशों के ठाठ थे, और वकील बड़े पैसेवाले धनवान हुआ करते थे। आज भी अमरीका में वह वकील ही होता है जो सबसे ज्यादा धन कमाता है।

भारत में भी आज, उसी ईसाई-अंग्रेज़ी न्याय-पद्धति की पैदावार, वे वकील जो इन और इन जैसे कातिलों को छुड़ाने में माहिर होते हैं, वे सभी बड़े धनी होते हैं, और अपने आप कोे "प्रोफेशनल" कहते हैं। इस ईसाई-अंग्रेज़ी शिक्षा-पद्धति की एक बड़ी विशेषता यह है कि कानून के दायरे में रह कर, आप जितनी बड़ी बेईमनी कर सको, और इसके जरिये जितना ज्यादा धन कमा सको, उतने ही बड़े प्रोफेशनल कहलाओगे, और उतने ही इज्जतदार माने जाओगेे। इसी को उनके शब्दकोश में सफलता कहते हैं, और यह केवल वकालत के प्रोफेशन तक ही सीमित नहीं है।

यह एक विशेष अंतर है, जिस प्रकार से हिंदू शिक्षापद्धति धन कमाना सिखाती है, और जिस प्रकार से ईसाई शिक्षा-पद्धति धन कमाना सिखाती है। एक मे हृदय की ईमानदारी को महत्व दिया जाता है, और दूसरे में कानून के दायरे में रहकर जो "ईंमानदारी जैसी दिखे" उसे महत्व दिया जाता है।    

सैंकड़ों ऐसे उदाहरण पड़े हैं मेरे पास

"अब्दुल गनी इस्माइल तुर्क ने अपना जुर्म कबूल किया। 12 मार्च 1993 को 2 बज कर 45 मिनट पर मुम्बई के वर्ली स्थित सेंचुरी बाज़ार के बाहर उसने बम विस्फोट किया जिसके परिणाम स्वरूप 88 व्यक्तियों की जानें गईं, 159 घायल हुए एवं 2.5 करोड़ की सम्पत्ति का नुकसान हुआ। उसका आरम्भिक लक्ष्य था निकट-स्थित पासपोर्ट कार्यालय को उड़ाना और यदि वह यह कर पाता तो इससे भी कहीं अधिक जान और माल की हानि होती। इसके सिवा उसने सेकड़ी (रत्नागिरि) में अस्त्रों के उतरवाने में भी मदद की थी। अब्दुल गनी इस्माइल तुर्क टाइगर मेमन का ड्राइवर हुआ करता था। जिस दिन सारे बम फूटे, उस दिन माहिम स्थित अल-हुसैनी बिल्डिंग जहाँ मेमन अपने परिवार सहित रहा करता था, वहाँ उसने गाड़ियों में आर-डी-एक्स लादने में मदद की। उसके इकबाले-जुर्म के अनुसार, अमरोलिया रज़ाक नाम के एक व्यक्ति ने, उसका प्रथम परिचय करवाया था मेमन के साथ। तुर्क जब सऊदी अरब में ड्राइवर के रूप में काम करता था, तब 1985 में वह अमरोलिया से मिला।" विवरण - Hindustan Times 20-9-2006 p1
"टाडा कोर्ट ने सजा दी दाऊद फन्से उर्फ टक्ल्या (83) एवं शरीफ़ पारकर उर्फ़ दादा (73)। इन्होंने विस्फोट के पहले टाइगर मेमन को रायगढ़ जिले में अस्त्र-शस्त्र एवं आरडीएक्स पहुँचाने में मदद की।" विवरण - Hindustan Times 23-9-2006 p 5
"मछुआरे - अब्बास दाऊद शेखदरे और शाहजहाँ इब्राहिम शेखदरे - इन्होंने अपने जालपोतों (trawlers) के द्वारा टाइगर एवं उसके आदमियों को अस्त्र-शस्त्र एवं विस्फोटक पदार्थ पहुँचाये। इनका तीसरा साथी यशवंत नागु भोइण्कर सम्भवतः पहले हिंदू रहा हो और मुसलमान बनने के बाद अपना नाम न बदला हो या फिर किसी भयंकर मजबूरी का शिकार बनाया गया हो। सबसे आश्चर्य की बात है हमारे अँग्रेज़ी समाचार पत्रों ने जोर-शोर से यह ऐलान नहीं किया कि एक हिंदू आतंकवादी भी पकड़ा गया। उनकी यह चुप्पी इस बात का परिचायक है यह व्यक्ति हिंदू के लिबास में, हिंदू नाम की खाल ओढ़े मुस्लिम रहा होगा। वे तीनों रायगढ़ से थे।" विवरण - Times Of India Mumbai Mirror 11-10-06 p13
"लंदन - मुम्बई के एक मुसलमान प्रवासी, एवं अल-कायेदा के एक नेता, के सत्रह वर्षीय पुत्र अब्दुल पटेल को, इंग्लैण्ड से अमेरीका जाने वाले हवाई जहाजों को उड़ा देने की योजना, के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया है।" विवरण - Hindustan Times 14-8-2006 p1

क्या आतंकवाद का साया कभी दूर होगा?

10-10-2006 समय 13:04:53 एक SMS आया मेरे मोबाइल पर "हमें अपना स्वतंत्रता दिवस निर्भयतापूर्वक मनाने का स्वातंत्र्य कब मिलेगा? क्या आतंकवाद का साया कभी दूर होगा?" प्रसाद करकरे

यह होगा तभी ....

हमें अपना स्वतंत्रता दिवस निर्भयतापूर्वक मनाने का स्वातंत्र्य तब मिलेगा जब यह दार-अल-हर्ब (काफ़िरों का वतन) दार-अल-इस्लाम (मुसलमानों का वतन) बन जायेगा। तो प्रतीक्षा करें, उस दिन की।

वैसे आपको बहुत लम्बी प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ेगी। हमारे देश के अधिकांशतः कर्णधार इसी चेष्टा में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जुटे हुए हैं। धीरे-धीरे वे उन सभी रास्तों को खोले दे रहे हैं जिनसे राष्ट्रद्रोहियों का प्रवेश सहज से सहजतर होता जा रहा है। बड़े-बड़े राजनेता इसमें शामिल हैं जिनके हाथ में आज सत्ता है। इस भुलावे में न रहिए कि वे काँग्रेसी हैं, या कॉम्युनिस्ट हैं या फिर तथाकथित हिंदू भाजपा है। इतना स्पष्ट जानिये कि इन सभी की जात एक ही है। ये सभी बे-पेंदे के लोटे होते हैं। कुर्सी और ऐश इन्हें सब से अधिक प्रिय होता है। इनके मौसेरे भाई-बहन हैं मार्क्ससिस्ट बुद्धिजीवी। उनकी भी अपनी ही एक जात है। उन्हें भी सत्ता बड़ी प्रिय है। वे राजनीतिक सत्ताधारियों से होड़ नहीं करते। उन्होंने अपनी अलग जगह खोज ली है। उनका वर्चस्व है शिक्षा के क्षेत्र में, अर्थात नई पीढ़ियों के दिमाग पर कब्जा करना। उन्होंने अपनी पकड़ कस रखी है मीडिया पर, अर्थात जन-जन की सोच पर कब्जा करना उनके अधिकार क्षेत्र में आता है।8

8 पढ़ें हमारे बुद्धिजीवी, हमारी मीडिया, हमारे न्यायाधीश - कहानी एक षड़यंत्र की

इतिहास साक्षी है

"हिंदू सिद्धराजा जयसिंह के उत्तराधिकारियों ने उनके (जयसिंह के) द्वारा गुजरात में मुसलमानों एवं उनके इबादत (पूजा) की जगहों को दिये गये संरक्षण को बनाये रखा। इस दौरान गुजरात के अनेक शहरों में मुसलमानों की आबादी एवं उनके मस्जिदों की संख्या बढ़ती गई, अनेक गुणा। इस बात के अनेक साक्ष्य हैं - विशेष कर खम्बाट, जुनागढ़ एवं प्रभास पट्टन से पाये गये अनेक शिला लेखों में। ये सभी शिलालेख 1299 के पहले के हैं। गुजरात मुसलमानों के शासन में आया उलुघ खान के 1299 में आक्रमण के पश्चात। ... ऐसा लगता है कि ये व्यापारी, सौदागर, नाविक एवं मुल्ला, हिंदू शासन के अंतर्गत पाये गए संरक्षण से संतुष्ट नहीं रहे। वे राह देखते रहे उस दिन की जिस दिन यह दार-अल-हर्ब काफ़िरों का वतन (जो था गुजरात) बन जायेगा दार-अल-इस्लाम (मुसलमानों का वतन)।"
Hindu Temples: What happened to them Vol. II The Islamic Evidence, Sita Ram Goel  

इतिहास दोहरा रहा है अपने आप को

जो कुछ भी आपके चारों तरफ हो रहा है, उन्हें अलग-अलग घटनाओं के रूप में न देख कर, एक बड़ी योजना के रूप में देखें, तो आपके सामने एक और छवि उभरेगी, जो आपको आने वाले कल के प्रति सचेत करेगी। कश्मीर में पंडितों के साथ जो कुछ होता रहा उस पर आपने अधिक ध्यान नहीं दिया जिसके दो कारण हैं। एक यह कि वह सब आपके अपने परिवार के साथ नहीं घटा। दूसरा यह कि आपकी मीडिया ने उसे आपके सामने महत्वहीन बनाकर प्रस्तुत किया। यही कारण है कि आपको वह कत्लेआम न दिखा जो पाकिस्तान, बांग्लादेश9 और चिटागॉन्ग में हुआ। यहाँ मैं भारत-विभाजन के समय की बात नहीं कर रहा हूँ। उस उथल-पुथल के बाद जब चारों तरफ सन्नाटा छा गया, उसके बाद की कहानी तो आप तक पहुँची ही नहीं। पहुँचती भी तो कैसे? एक मीडिया ही माध्यम बन सकता था आपको सचेत रखने के लिए। पर जब कुत्तों के सामने हड्डियाँ डाल दी जायें तो वे भौंकना भूल जाते हैं।

9 पढ़ें मुस्लिम इण्डिया विल बी लाइक दिस

आतंकवाद शब्द के प्रयोग से, कौन सी छवि उभरती है, आपके मन में?

समचार पत्रों में आप आतंकवादियों के बारे में बहुत कुछ पढ़ते हैं। टीवी पर आप आतंकवादियों के कारनामों की झलकियाँ देखते हैं। राष्ट्र के सत्ताधारी आपसे आतंकवाद के बारे में कुछ न कुछ कहते रहते हैं, आपको बहकावे में रखने के लिए। राष्ट्र के दिग्गज दिग्दर्शक (तथाकथित बुद्धिजीवी) आपको आतंकवाद के बारे में अपनी-अपनी राय बताते हैं, एवं जो कुछ आपसे छुपाना उचित मानते हैं उसे अपने-आप तक ही सीमित रखते हैं ~ इस प्रकार वे आपको उजाले ~ या फिर अंधकार ~ की ओर ले चलते हैं।

राष्ट्र की सोच को दिशा ~ सही या गलत दिशा ~ देने वाले मीडिया ~ प्रेस, टीवी, इत्यादि के धुरंधर आपको केवल उतना ही बताते हैं जितना बताना उनके उद्देश्यों की पूर्ति हेतु सहायक होता है, और वह सब कुछ बड़ी चतुराई से छुपा जाते हैं जिन्हें सामने लाना उनके छुपे हुए उद्देश्यों के लिए  घातक हो सकता है। जनसाधारण के विश्वास को जीतने के लिए, एवं उस विश्वास को बनाये रखने के लिए, वे उंगली उठाते हैं बार-बार राजनीतिज्ञों की ओर, उन्हें समस्त बुराइयों की जड़ बताते हुए।  

राजनीतिज्ञ पहले से ही बड़े बदनाम हैं अतः जनता को इसे पूर्ण सत्य मान लेने में कोई कठिनाई नहीं होती। इस प्रकार से ये मीडिया-दिग्गज जनता की दृष्टि अपनी ओर से हटा कर बे-ईमान राजनीतिज्ञों की ओर केन्द्रित किये रहते हैं। राजनीतिज्ञों की ओर उंगली उठाते समय वे इस बात का भी बड़ा ध्यान रखते हैं कि किस वर्ग के राजनीतिज्ञों को जनता की दृष्टि से हटा कर रखना उनके लिए हितकारी होगा एवं किस वर्ग के राजनीतिज्ञों पर अपनी सर्चलाइट डालना उनके दूरगामी उद्देश्यों में सहायक होगा। वह यह भी बखूबी जानते हैं कि किन खबरों को उछालना ~ औचित्य की सीमा से बाहर जाकर भी ~ उनके स्वार्थों की पूर्ति में सहायक होगा, एवं किन खबरों को दबाना ~ ताकि जनता उनसे बेखबर रहे ~ उनके कार्यक्रम के उद्देश्यों का पूरक होगा।

इस प्रकार राजनीतिज्ञों, बुद्धिजीवियों एवं मीडिया वालों ने मिल कर एक धारणा फैलायी है ~ (1) आतंकवाद का उद्देश्य है आतंक फैलाना (2) आतंकवादी वह होता है जो आतंक फैलाता है (3) आतंकवादी का कोई धर्म नहीं होता (4) आतंकवादियों की प्रेरणा का श्रोत किसी धर्म की शिक्षा में नहीं होता  (5) किसी धर्म में छुपा नहीं होता आतंकवाद का बीज।

यद्यपि तीनों ~ राजनीतिज्ञ, बुद्धिजीवी, मीडिया ~ का समुचित सहयोग रहा है इस घोर असत्य को फैलाने में पर इन तीनों में सबसे गम्भीर अपराध मीडिया का है। राजनीतिज्ञों एवं बुद्धिजीवियों की यह बात थोड़े से जनसमुदाय तक सीमित रह जाती यदि मीडिया ने इस असत्य को घर-घर तक न पहुँचाया होता। मीडिया ने ऐसा क्यों किया यह भी अपने-आपमें एक बड़ा जटिल विषय है और जो कुछ थोड़ा-बहुत ऊपर कहा गया है वह अपने-आप में कतई पर्याप्त नहीं है। इसके तह तक पहुँचने के लिए हमें अनेक पहलुओं पर गौर करना होगा एवं काफी गहराई में जाकर। 

आतंकवाद का बीज कहाँ छुपा हुआ है, उसे किसने उपजाऊ भूमि दी, किस-किस ने खाद डाली, किन्होंने उसे पर्याप्त जल देकर सींचा, इसे समुचित रूप से समझने के लिए आपको आवश्यकता होगी, मेरी अन्य पुस्तकों को पढ़ने की क्योंकि वे सभी किसी न किसी नये पहलू पर अवश्य आलोकपात करते हैं (पर वे सभी हिंदी में अभी उपलब्ध नहीं हैं, काफी कुछ समय लगेगा उनका हिंदी रूपान्तर करने के लिए)। 

एक लड़का खड्डे में गिरा तो......पर यहाँ सारा देश खड्डे में जा रहा है लेकिन

26-7-2006 समय 16:18:08 एक और एसेमेस आया मेरे मोबाइल पर "सोचिए ध्यान से - एक लड़का10 खड्डे में गिरा तो सारा देश संवेदनशील हो गया...!! सारा देश खड्डे में जा रहा है लेकिन कोई क्यों नहीं सोचता?" प्रसाद करकरे

10 सम्भवतः आपको याद हो उस लड़के का नाम प्रिंस था जिसे बड़ा मीडिया कवरेज मिला

मुट्ठी भर भी आज भारी पड़ रहे हैं

अभी तो वे मुट्ठी भर (15 प्रतिशत) हैं और हम पाँच गुना, फिर भी उन्होंने हमारे नाक में दम कर रखा है। वे कितनी तेजी से बढ़ रहे हैं आपको इसकी चिंता नहीं है। वे सीमा पार से आ रहे हैं और हमारे साथ घुलमिल जा रहे हैं। उनके चेहरे, उनके डील-डौल हमारे जैसे, उनका रंग हमारे जैसा। उन्हें अपने से अलग कर पाना मुश्किल हो रहा है। उनकी पहचान कैसे करें यह समझना आसान नहीं। उनके हमदर्द भी हैं यहाँ इतने सारे, उनके अपने भाई-बंद, उनके नेता जिनकी पहुँच काफी है और जो यह भी जानते हैं कि इस्लाम के नाम पर आवाज दी तो ये सारे सड़क पर आ जायेंगे, अपनी एकता और अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने। वे यह धमकी देने से भी नहीं चूकते कि यदि बीस करोड़ मुसलमान सड़क पर आ जायें तो....(आपने पढ़ा ही होगा हाल ही में भिवंडी के आबू आज़मी ने क्या कहा)। कुछ की हिम्मत तो इतनी बढ़ गई है कि वे उत्तर प्रदेश की तरह "मुस्लिम प्रदेश" की माँग करने लगे हैं (अब यह मत कहिये कि आपने यह खबर पढ़ी ही नहीं)।

आने वाले कल की छवि

29-10-2006 समय 00:52 प्रसाद करकरे का एसेमेस जो आया अभी-अभी मेरे मोबाइल पर

"बढ़ते हुए मुस्लिम जनसंख्या का प्रभाव -
1947 शुभ दीपावली
2000 हैपी दीवाली
2010 दीवाली मुबारक
2020 शब-ए-दीप-मुबारक
2030 दीपवाले अली का सालाना उर्स मुबारक"

आपकी समस्या

यह सत्य है कि आप अकेले कुछ भी नहीं कर सकते इन सब के बारे में, फिर आपको चिंता है अपने परिवारों की भी, क्योंकि आपने अंग्रेज़ी पढ़कर ईसाई पद्धति से सिंगल-फैमिली बना कर रहने की कला सीख ली है और जॉयंट-फैमिली सिस्टम को बुराई मानकर तिलांजली दे दी है, जिसके परिणाम स्वरूप आप आज अपने-आपको "अकेला" पाते हैं, पति-पत्नी दोनों नौकरी करते हैं, बच्चे अकेले स्कूल जाते हैं और आपको चिंता लगी रहती है। ऐसी हालत में आप यह सोचना भी नहीं चाहते कि कल क्या होगा, आपका सारा ध्यान आज को सुरक्षित बना रखने में लगा होता है। आने वाली पीढ़ियों का क्या हश्र होगा, वहाँ तक आपकी सोच जा ही नहीं पाती।

इसके सिवा भी बहुत सी बाते हैं, जैसे कि आपके जेहन में कुछ कचरा भरा हुआ है जो आपको इस तरह की सोच देता है जैसे कि ये सभी आज के मुसलमान तो कल हिंदू ही थे न? यहाँ कल की सोचते हुए आप अनेक पीढ़ियों पीछे चले जाते हैं और वहीं से अपना भाई-चारा जोड़ने लगते हैं। आपकी इतनी बड़ी सी बुद्धि में इतनी छोटी सी बात समाती ही नहीं कि उस सुदूर अतीत से आज तक की यात्रा तय करते हुए उनमें कितना बदलाव आ चुका है जो उनके आचरण से ही झलकता है, यदि आपमें उसे देख पाने की योग्यता होती।

आप, कम से कम, इतना तो कर सकते हैं

तो लौटते हैं उसी बात पर कि आप अकेले कुछ नहीं कर सकते आज की स्थिति को नई दिशा देने में, पर इतना तो कर सकते हैं कि सोये न रहें, जागें, और सोचें, आपस में इस विषय पर बात-चीत करें, जब दोस्तों, सगे-संबंधियों से मिलें तो इन बातों कि चर्चा करें ताकि जागरूकता बढ़े। सप्ताह के अंत में छुट्टी के दिन दोस्तों, सगे-सम्बंधियों को खाने पर बुलायें और इस विषय को छेड़ें।

जो बच्चे किशोरावस्था में प्रवेश कर चुके हों उन्हें भी साथ लें इस विषय पर बात करते समय, अन्यथा ये बच्चे बड़े होकर कल के जिम्मेदार हिंदू बनने के बजाय, आजकल की हवा में पल-बढ़ कर अपने-आप को धर्मनिरपेक्षतावादी कहने में अधिक गर्व महसूस करेंगे, जबकि उन्हें सब धर्मों के बारे में सही ज्ञान कुछ न होगा, और जो झूठा ज्ञान उन्हें दिया गया है एवं हिंदू धर्म के बारे में जो विकृत छवि उनके सामने रखी गई है, उन्हीं बैसाखियों के सहारे वे अपनी जिंदगी गुजार देंगे, और अपनी अगली पीढ़ी को वही दिशा अपने विरासत के रूप में दे जायेंगे।

आप सभी इन विषयों पर जितनी बात करेंगे, जितना सोचेंगे उतनी ही आपकी जागरूकता बढ़ेगी। अधिकांशतः व्यक्ति हिचकिचायेंगे, इन बातों पर चर्चा से दूर रहना चाहेंगे, पर आपको उन्हें घसीटना होगा, उनमें रुचि पैदा करनी होगी। आप अगर लगे रहेंगे तो आपकी चेष्टा रंग लायेगी। आप यदि आसानी से हार मान लेंगे तो कुछ न होगा।

बंकिम चन्द्र चैटर्जी के "आनन्द मठ" (1906) कीशताब्दी की सुबह

"गर सच में ज़िंदा ज़ज़्बा-ए-वतन हो। हो हर जुबाँ पे "वन्दे मातरम", हाथों में कफ़न हो।।" 
शायर असर वर्मा (प्रेषक - प्रसाद करकरे 7-9-2006 समय 7:23:29 (एक और एसेमेस मेरे मोबाइल पर)

क्या खूब - इसे न्याय कहते हैं हम!

"मुम्बई उच्च न्यायालय ने बृहस्पति वार को कहा कि सिद्धिविनायक मंदिर के चारों तरफ जो सुरक्षा दीवार बनाई गई है उसे तुड़वा देना होगा चाहे इससे मंदिर को खतरा क्यों न हो। जन सुरक्षा की आड़ में कानून को तोड़ा नहीं जा सकता। पुलिस की जिम्मेदारी है कि वह जनता की सुरक्षा करे कानून के अंदर रहकर।" विवरण - Hindustan Times 5-10-2006 p1, p3

यह है न्याय एवं विधान की परिभाषा हमारे तथाकथित आदरणीय न्यायाधीशों की नज़र में। कतिपय हिंदू-विरोधी लोगों को मंदिर की सुरक्षा व्यवस्था फूटी आँखों नहीं भायी और उन्होंने पी-आई-एल (जन-हित में मुकदमा) दायर कर दिया। उनका कहना है कि इस दीवार के कारण उन्हें यातायात में परेशानी होती है।

उनकी एक परेशानी की झलक मुझे भी मिली थी कुछ समय पहले। 26 जुलाई 2006 की बात है। किसी व्यक्तिगत कार्य से प्रभादेवी गया हुआ था। वहाँ से मुझे फिर ऑपेरा हाउस की तरफ जाना था। अचानक मेरे ध्यान में आया कि मैं मंदिर के इतने पास हूँ तो मुझे एक बार दर्शन अवश्य करने चाहिए। मैंने टैक्सी वाले से कहा कि टैक्सी घुमाओ और मुझे मंदिर पर छोड़ दो। वह मुझे एक स्थान पर ले गया और उसने कहा कि इसके अंदर टैक्सी मना है, आप पैदल चले जाइये। मैं बहुत दिनों के बाद आया था और मुझे बड़ा अजीब लगा कि टैक्सी वाले ने  मुझे मंदिऱ के पिछवाड़े उतारा जबकि सदा से मैं मंदिर में प्रवेश सामने से किया करता था। चलते-चलते दो-चार पुलिस वालों से भी पूछा की यह सब बदलाव क्यों, तो उन्होंने बताया कि सुरक्षा हेतु यह व्यवस्था है। चलना मुझे थोड़ा सा ही पड़ा। इससे कहीं ज्यादा लम्बी लाईन लगती देखी है मैंने प्रत्येक मंगलवर को, सालों तक, सारे मुम्बई से औरतें-मर्द आकर भोर के तीन-चार बजे से (बहुधा सारी-सारी रात) लाईन में खड़े रहते थे और उनका नम्बर आता था अनेक घंटों के बाद।

जब मैं मंदिर से लौट रहा था तो अचानक एक बिल्डिंग से एक टैक्सी निकली और मुझसे आगे निकल गई। टैक्सी खाली थी और मेरी नजर उसके ड्राइवर पर पड़ी जिसकी दाढ़ी, टोपी और पहनावा मुझे साफ बता रहा था कि वह मुसलमान था। मैं दो कदम आगे बढ़ा तो सामने से तीन पुलिस वाले आते दिखाई दिए। उनमें एक अफसर-सा दिखा तो उसे रोक कर मैंने पूछा कि इस टैक्सी को कैसे अंदर आने दिया जब कि मेरे टैक्सी वाले ने मुझे बताया था कि टैक्सी ऐलाउड नहीं है। उन्होंने मुझे बड़े प्रेम से समझाया कि वह व्यक्ति टैक्सी का मालिक है और इसी बिल्डिंग में रहता है। मैने नजर उठाकर उस टैक्सी की तरफ देखा जो सिक्योरिटी-गेट पर रुकी थी और मुझे एहसास हुआ कि उसे चेकिंग के बाद छोड़ा जा रहा था। स्वाभाविक है कि उसे दर रोज टैक्सी निकालते और लाते वक्त चेकिंस से गुजरना पड़ता होता। यह बात उसे पसन्द नहीं होगी क्योंकि वह बेधड़क, चाहे जो मर्जी, टैक्सी के अंदर लेकर नहीं आ सकता है। उसके ऊपर बन्दिश है, लगाम है। अब मेरी समझ में आया कि क्यों, कुछ लोगों को, सिक्योरिटि चेकिंग पसंद नहीं है।  

उन्हें बताया जाये कि सुरक्षा आवश्यक है तो वे मन ही मन कहेंगे कि कैसी सुरक्षा, किससे सुरक्षा? यदि कातिलों (तथाकथित आतंकवादियों) की ओर उंगली उठायी जाये तो वे सोचेंगे कि ये सब गलत थोड़े ही कर रहे हैं। वे तो बस इस्लाम के बताये राह पर चल रहे हैं। वे सच्चे मुसलमान हैं, कोई कातिल नहीं, कोई गुनाहगार नहीं।    

"मुम्बई पुलिस ने एक दर्जन से अधिक पत्र लिखे मंदिर के अधिकारियों को, उन्हें सावधान करते हुए कि एक "अघोषित युद्ध" छेड़ा गया है आतंकवादियों के द्वारा। इस वर्ष अप्रैल में यह दीवार चुनी गई छह करोड़ की लागत से।" विवरण - Hindustan Times 5-10-2006 p3

मुकदमा दायर करने वालों का कहना है कि जो सड़क जनता के लिए बनी है उसके एक छोटे से हिस्से पर मंदिर की सुरक्षा के लिए दीवार बनवाना गैर-कानूनी है। और न्यायाधीश कहते हैं कि हफ्ते भर के अंदर वह कानून हमें दिखाओ जिसके तहत तुमने यह दीवार खड़ी की है, अन्यथा इस दीवार को गिरा दो। अप्रैल मे बनी इस दीवार को तुड़वाने के लिए छः महीनों में ही न्यायालय जाग गई है और न्याय देने को व्याकुल हो बैठी है। फिर जब दीवार तोड़ दी जायेगी, कातिल हमला करेंगे, अनेक जानें जायेंगी, तब न्यायाधीश सोने जायेंगे, और तेरह वर्षों के बाद उनकी नींद टूटेगी, ठीक वैसे जैसे 1993 के कातिलों को आज 2006 में सजा सुनाई जा रही है।

तब कहेंगे जो भगवान अपनी रक्षा नहीं कर सकता वह हमारी रक्षा क्या करेगा?

पोथी पढ़ कर जब लोग विद्वान बन जाते हैं तो कुछ ऐसी ही बातें कहते हैं। बचपन में एक कहानी पढ़ी थी मैंने, जो आपने भी कभी न कभी पढ़ी ही होगी। एक बड़े नामी-गरामी स्वामीजी हुआ करते थे। उनके आज लाखों अनुयायी11 हैं। उनमें से आज भी अनेक अनुयायी पुस्तकें लिख कर हिन्दू देवी-देवताओं का मजाक उड़ाते हैं। ये सभी बड़े ज्ञानी-गुणी जन हैं जो अपने संस्थापक स्वामीजी का नाम रोशन कर रहे हैं।

कहते हैं कि वही स्वामीजी जब एक बच्चे थे तब उन्होंने अपने पिता को शिवजी की पूजा करते हुए देखा था। सामने मिठाई रखी हुई थी, जैसा हम हिंदू पूजा के लिए करते हैं। इतने में एक चूहा आकर एक मिठाई उठा ले गया। वह बच्चा जब बड़ा होकर स्वामी बना तो हिन्दुओं को बताने लगा कि तुम्हारा भगवान तो पत्थर है जो अपने हिस्से की मिठाई तक नहीं बचा सका, तो वह तुम्हें क्या बचायेगा? यह बात उन लोगों को जँच गई जिन्होंने ईसाई-अंग्रेजी पद्धति में पढ़ाई की थी क्योंकि उनके स्कूल में उनके "फ़ादर" भी यही कहते थे। इस प्रकार उस बच्चे ने बड़े होकर कुछ हिंदुओं को तोड़ कर अपनी तरफ कर लिया और एक नई जमात शुरू कर दी। अंग्रेजी मीडिया ने उसे हिंदू समाज का सुधारक घोषित कर दिया। वे इस ताक में थे कि हिन्दुओं में से ही कोई उनका अपना-सा दिखने वाला हिंदुओं को बताये कि तुम्हारा भगवान नकली है तो इससे ईसाइयों का काम आसान हो जायेगा।12

उसी सोच की एक आधुनिक-सी पुनरावृत्ति हो रही है आज। सिद्धिविनायक मंदिर की सुरक्षा को क्षीण कर दिया जाये, सुरक्षा दीवार को ढहा कर। आतंकवादियों के लिए मंदिर में बम रखवाना आसान कर दिया जाये। जब मंदिर उड़ा दिया जाये तो यह कहा जाये कि देखो हिंदुओं, तुम्हारा यह भगवान अपनी रक्षा तो कर नहीं सकता, वह तुम्हारी रक्षा क्या करेगा? यह तो नकली भगवान है, बस पत्थर का टुकड़ा है।

11 वैसे यह अलग बात है कि वे सभी अनुयायी आज आपस में सर टकरा़ रहे हैं और एक-आध सदी के अंदर वे सभी ~ उनका समाज और उनके महर्षि ~ इतिहास के पात्र बन जायेंगे
12 विषद विवरण के लिए पढ़ें - कौन अपना कौन पराया / सिक्के का दूसरा पहलू  

हिंदू के लिए न्याय अलग और मुसलमान, ईसाई के लिए न्याय अलग

सिद्धिविनायक मंदिर की आतंकवादियों से सुरक्षा के लिए, मुम्बई पुलिस के परामर्श पर बनायी गई सुरक्षा दीवार "सिक्यूलरों" की नजर में खटकती है। सो उन्होंने बहाना पेश किया कि आस-पास रहने वाले लोगों को इस दीवार के कारण असुविधा हो रही है एवं गाड़ियों के यातायात पर थोड़ा समय अधिक लग रहा है। उनका कहना है कि यह दीवार गैर-कानूनी है, और कानून के रखवाले सिक्यूलर न्यायाधीश ने अपनी मुस्तैदी दिखाते हुए तुरंत अपना निर्णय भी सुना दिया, यद्यपि उसके ही कोई सप्ताह भर बाद हमें एक और खबर पढ़ने को मिली कि देश के सर्वोच्च न्यायालय ने फटकार दी है (इस सिलसिले में नहीं) कि एक करोड़ से अधिक मुकदमे अभी तक पड़े सड़ रहे हैं जिन पर कोई निर्णय नहीं दिया गया है।

क्या आप कभी मुम्बई के प्रसिद्ध मेट्रो सिनेमा के पास से गुजरे हैं? वहाँ करीब ही, ठीक रास्ते के बीचो-बीच एक बड़ा सा मस्जिद खड़ा है जिससे गाड़ियों के यतायात पर सर्वदा असर पड़ता है। हमारे न्यायाधीश महोदय मुम्बई में रहते हैं पर क्या वह कभी इस रास्ते से नहीं गुजरे? यह तो कुछ ऐसा रास्ता है जहाँ से शहर की तरफ जाने वाला लगभग हर व्यक्ति कभी न कभी अवश्य ही गुजरता है। तो प्रश्न उठता है कि क्या हमारे सिक्यूलर नागरिकों को जिन्होंने वह मुकदमा सिद्धिविनायक मंदिर के विरुद्ध दायर किया और जिस न्यायाधीष ने उस सुरक्षा-दीवार को गैर-कानूनी घोषित किया, उनमें से किसी को भी सपने में भी यह खयाल नहीं आया कि मेट्रो का वह मस्जिद भी गैर-कानूनी है? ऐसी दोगली सोच क्यों हमारे ईसाई-अँग्रेज़ी शिक्षा-पद्धति में पढ़े-पले संभ्रांत नागरिकों की?

क्या आपको याद है कि कुछ समय पहले (संभवतः पिछले एक वर्ष के दौरान) मुम्बई के स्वनाम-धन्य (संभवतः उच्च) न्यायालय ने मुम्बई पुलिस को निर्देश दिया था कि सभी सड़क पर बने हुए (तथाकथित गैर-कानूनी) हिंदू, मुस्लिम एवं ईसाई पूजा स्थलों को तुड़वा दिया जाये। सैंकड़ों हिन्दू मंदिर फटाफट तोड़ दिए गए। मुस्लिम और ईसाई पूजा स्थल तोड़े नहीं जा सके। गलती पुलिस की नहीं थी, हमारे न्याय की प्रक्रिया की थी, जो मुस्लिम-ईसाई-सिक्यूलर मिल कर "स्टे-ऑर्डर" ले आये। उसके पश्चात न्यायालय, इस विषय पर (सड़क पर बने पूजा स्थलों को तोड़ने के अपने आदेश पर), कुम्भकर्ण निद्रा में चली गई। आदेश देने के पहले क्या उन्हें यह नहीं मालूम था कि ऐसा ही होने वाला है, क्योंकि सदा ऐसा ही होता रहा है, जबसे हमारे दो महामानवोंज्ञान ने इस प्रथा का आरम्भ किया। प्रश्न यह है कि इस (तथाकथित हिंदू बहुल) राष्ट्र में कानून हिंदू के लिए अलग कि "उसे सदा सहते रहना पड़े" और मुस्लिम-ईसाई के लिए अलग कि "उन्हें सदा छूट मिलती रहे"।

13 उन दो महामानवों के छुपे चेहरों की कहनी आगे आने वाली पुस्तकों में

आपका अगला कदम

ज्ञान आँखें खोलता है, आपको अपने कर्तव्य का बोध कराता है। आपको सही और गलत के बीच पहचान करने की योग्यता देता है, और सत्य के पक्ष में खड़े होने की क्षमता देता है। ज्ञान आपको सत्य की रक्षा करने के लिए कटिबद्ध करता है। परन्तु अधूरा ज्ञान आपकी क्षति भी कर सकता है। अधूरा ज्ञान आपको उत्तेजित कर सकता है, और आपको ऐसे कार्य की ओर प्रेरित कर सकता है जो हलचल तो मचा दे, पर कोई स्थायी समाधान न दे। अतः एक-एक कदम आगे बढ़ायें। अभी तो आपकी यात्रा केवल आरम्भ हुई है। अनेक पड़ाव आने बाकी हैं।

राष्ट्र को मेरी पुकार

आज भारत-माता के वक्षस्थल से एक-एक बूँद खून रिसता जा रहा है...

भारत माता के संहारक

यह तब तक रिसता रहेगा जबतक एक भी कतरा खून का बचा रह जाता है भारत-माता के शरीर में...

कई वर्ष पहले जब यह पुस्तिका लिखी गई थी, उन दिनों यूनिकोड का प्रचलन नहीं था। इस कारण तब TTF ट्रूटाइप फ़ॉन्ट्स का प्रयोग किया गया था। अब उन अक्षरों का OTF (ओपन टाइप फ़ॉन्ट्स) यूनिकोड में रूपांतर एक सॉफ़्टवेयर द्वारा किया गया है। यह ग्यारह हज़ार की सॉफ़्टवेयर अच्छा काम करती है पर सभी सॉफ़्टवेयरों की अपनी-अपनी सीमायें होती हैं। अतः कतिपय गलतियों की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है।